आर्थिक सत्याग्रह!

विकास के लिए चर्चित राज्य गुजरात एक खास तरह के आंदोलन का साक्षी बनने जा रहा है. सरकारी नौकरियों और शिक्षा में पटेल समुदाय के लिए आरक्षण मांग रहे सरदार पटेल ग्रुप (एसपीजी) के नेताओं ने समुदाय के सदस्यों से कहा है कि सरकार पर दबाव बढ़ाने के लिए वे बैंकों में जमा धनराशि निकाल […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 11, 2015 12:33 AM
विकास के लिए चर्चित राज्य गुजरात एक खास तरह के आंदोलन का साक्षी बनने जा रहा है. सरकारी नौकरियों और शिक्षा में पटेल समुदाय के लिए आरक्षण मांग रहे सरदार पटेल ग्रुप (एसपीजी) के नेताओं ने समुदाय के सदस्यों से कहा है कि सरकार पर दबाव बढ़ाने के लिए वे बैंकों में जमा धनराशि निकाल लें. इसे ‘आर्थिक सत्याग्रह’ नाम दिया गया है.
खबरों के मुताबिक, पटेल समुदाय के सदस्यों के बैंक खातों की संख्या करीब 70 लाख है और हर खाते में औसतन 50 हजार रुपये हैं. ऐसे में अगर आह्वान सफल होता है, तो राज्य की अर्थव्यवस्था से 350 करोड़ रुपये की कार्यशील पूंजी झटके से निकल जायेगी. सत्याग्रह का यह रूप पहली नजर में विश्व-बाजार में चलनेवाले पूंजीगत दांव-पेच से प्रभावित लगता है.
किसी स्थान-विशेष के उत्पादन और विनिमय को प्रभावित करने के लिए निवेशक अपनी उड़ंता पूंजी झटके में निकाल लेते हैं. इसमें उनका उद्देश्य स्थान विशेष की बाजार-नीतियों को अपनी पूंजी के पक्ष में बनाने का होता है. पटेल समुदाय के लिए आरक्षण मांग रहे नेताओं ने भी पूंजी-प्रवाह को अवरुद्ध करने का यही तरीका अपनाया है और उसे लगता है कि इससे गुजरात सरकार को झुकाया जा सकता है. यह अभिनव प्रयोग कितना सफल होता है, यह अगले कुछ दिनों में साफ होगा, पर पटेल समुदाय की मांग से जाहिर है कि राज्य में विकास के बावजूद कुछ समुदायों में असंतोष है.
गुजरात की आबादी में 12 फीसदी की तादाद में मौजूद पटेल समुदाय परंपरागत तौर पर किसानी से जुड़ा रहा है. करीब एक सदी से इसने खेती से हासिल अधिशेष का निवेश छोटे और मंझोले उद्यमों में कर अपनी आर्थिक हैसियत ऊंची की है. गुजरात के हीरा और वस्त्र उद्योगों में इस समुदाय के सदस्य बतौर निवेशक तथा कामगार बड़ी संख्या में सक्रिय रहे हैं.
बीते एक दशक में गुजरात में कृषि की वृद्धि-दर सालाना 8 प्रतिशत की रही है, पर इसका फायदा छोटे और सीमांत किसानों को नहीं मिला है. गुजरात में पटेल समुदाय का हर तीसरा परिवार छोटे या सीमांत किसान की श्रेणी में आता है. खेती के सिकुड़ते आधार ने इस समुदाय के युवाओं को रोजगार के अन्य अवसरों की ओर देखने को बाध्य किया है.
हीरा उद्योग में आयी मंदी ने भी मध्यवर्गीय आकांक्षाओं वाले पटेल समुदाय के लिए कठिनाई पैदा की है. जाहिर है, आरक्षण-आंदोलन ने विकास-प्रक्रिया को समावेशी बनाने की जरूरत को नये सिरे से रेखांकित किया है.

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