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रस्म अदायगी से हिंदी का भला नहीं

सितंबर के महीने में हिंदी दिवस को लेकर सरकारी स्तर पर तामझाम खूब होते हैं. सरकारी कार्यालयों से लेकर निजी संस्थानों में हिंदी के गुणगान व बखान की तैयारियां हो रही हैं. साल भर दूसरी भाषाओं का गुणगान करनेवाले और समय की जरूरत बता कर मातृभाषा से मोहभंग करानेवाले भी हिंदी के बखान करने की […]

सितंबर के महीने में हिंदी दिवस को लेकर सरकारी स्तर पर तामझाम खूब होते हैं. सरकारी कार्यालयों से लेकर निजी संस्थानों में हिंदी के गुणगान व बखान की तैयारियां हो रही हैं.
साल भर दूसरी भाषाओं का गुणगान करनेवाले और समय की जरूरत बता कर मातृभाषा से मोहभंग करानेवाले भी हिंदी के बखान करने की तैयारों में जुटे हैं. हिंदी के स्थान पर अंगरेजी शब्दों का बेधड़क उपयोग करनेवाले टेलीविजन से लेकर समाचार पत्रों तक में हिंदी दिवस को लेकर विशेष आयोजन किये जा रहे हैं. दरअसल, हिंदी के गौण होने की वजह हिंदी के ही वे ठेकेदार हैं, जो साल भर की कुंभकर्णी नींद के बाद सितंबर महीने में जागते हैं.
सितंबर में हिंदी को ठीक उसी तरह याद किया जाता है, जैसे पितृपक्ष में पूर्वजों को. हिंदी को समृद्ध बनाने की रस्म अदायगी से नहीं, बल्कि उसे आत्मसात करने से उसका कल्याण होगा.
– सौरभ पाठक, बुंडू

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