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भाषा पर भगवा राजनीति हावी

विश्व हिंदी सम्मलेन का 10वां आयोजन भोपाल में शुरू हो गया है. अच्छा लगता है, जब अपनी जुबान की भाषा पर विश्व भर से आये हिंदी के साहित्यकार और हिंदी के प्रेमी परिचर्चा करते हैं. लेकिन क्या ऐसे सम्मेलनों से हिंदी को समृद्ध हुई है? क्या ये विश्व के संपर्क की भाषा बन पायी है? […]

विश्व हिंदी सम्मलेन का 10वां आयोजन भोपाल में शुरू हो गया है. अच्छा लगता है, जब अपनी जुबान की भाषा पर विश्व भर से आये हिंदी के साहित्यकार और हिंदी के प्रेमी परिचर्चा करते हैं.
लेकिन क्या ऐसे सम्मेलनों से हिंदी को समृद्ध हुई है? क्या ये विश्व के संपर्क की भाषा बन पायी है? भोपाल सम्मलेन से बहुत अधिक हासिल नहीं होनेवाला है, क्योंकि कुछ खबरिया चैनलों पर दर्शाया गया है कि भोपाल में हिंदी के विभूतियों जैसे तुलसी, कबीर, प्रेमचंद, मैथलीशरण गुप्त, माखनलाल चतुर्वेदी के पोस्टर जरूर लगे हैं, लेकिन उनमें सबसे ऊंची तसवीर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री और देश के प्रधानमंत्री की लगी है.
इसका मतलब साफ है कि भाषा पर भगवा राजनीति हावी है, जो इस तरह के आयोजन के लिए शुभ नहीं है. यह विश्व हिंदी सम्मलेन हो रहा है या भाजपा का कोई अधिवेशन?
– बहादुर सिंह, टाटानगर

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