किसी समस्या का हल नहीं है हड़ताल
हड़ताल, अपनी मांग मनवाने की पुरानी प्रथा रही है. वेतन नहीं मिला तो हड़ताल. मांग पूरी नहीं हुई तो हड़ताल. शिक्षक ने छात्र को पीटा तो हड़ताल. बात-बात पर हड़ताल करना मानो देश की परंपरा बन चुकी है. और तो और, जिन पर देश चलाने की जिम्मेदारी है, वे भी हड़ताल को समस्या समाधान करने […]
हड़ताल, अपनी मांग मनवाने की पुरानी प्रथा रही है. वेतन नहीं मिला तो हड़ताल. मांग पूरी नहीं हुई तो हड़ताल. शिक्षक ने छात्र को पीटा तो हड़ताल. बात-बात पर हड़ताल करना मानो देश की परंपरा बन चुकी है.
और तो और, जिन पर देश चलाने की जिम्मेदारी है, वे भी हड़ताल को समस्या समाधान करने का जरिया मानते हैं. कभी राज्य में हड़ताल, तो कभी राष्ट्रव्यापी हड़ताल. भले ही हड़ताल जनहित को ध्यान में रख कर होती हो, पर इससे फायदा कम और नुकसान ज्यादा होता है.
हड़ताल के दौरान सबसे ज्यादा दिक्कत आम आदमी को होती है. आने-जाने लेकर, रोजमर्रा के काम निबटाने में हमारे पसीने छूट जाते हैं. उनकी हालत तो दयनीय हो जाती है, जो रोजाना मजूरी करके अपना गुजारा करते हैं. वैसे इस परेशानी का हल तो हालिया राजनैतिक माहौल में नहीं दिखता.
-आनंद कानू, सिलीगुड़ी