अच्छी पहल से ही आते हैं अच्छे दिन
अच्छे अच्छे दिन केवल चुनावी दिनों में उपयोग में लाये जानेवाले जुमलों से नहीं आते और न ही बड़प्पन हांक कर जनता को सपने दिखाने से आते हैं. अच्छे दिन अच्छी पहल से आते हैं. सितंबर महीने के पहले दिन प्रभात खबर समाचार पत्र ने पहले पन्ने पर लुगनी की खबर के साथ तसवीर भी […]
अच्छे अच्छे दिन केवल चुनावी दिनों में उपयोग में लाये जानेवाले जुमलों से नहीं आते और न ही बड़प्पन हांक कर जनता को सपने दिखाने से आते हैं. अच्छे दिन अच्छी पहल से आते हैं. सितंबर महीने के पहले दिन प्रभात खबर समाचार पत्र ने पहले पन्ने पर लुगनी की खबर के साथ तसवीर भी प्रकाशित की.
उसे देख कर हृदय विदारित हो गया, मगर उस पर नहीं, जो बेबस और लाचार है, बल्कि खुद पर और उन पर जो सक्षम हैं, फिर भी उनके हाथ मदद को नहीं उठते. देश में कई ऐसी लुगनियां हैं, जिन्हें देख कर लोग रास्ता काट कर दूसरी दिशा में चल देते हैं. बाद में अत्यंत विचारशक्ति से परिपूर्ण इंसान बन कर चिंता जताते हैं कि पता नहीं भारत से गरीबी कब जायेगी.
हमें झारखंड की राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू का आभार व्यक्त करना चाहिए, जिन्होंने न सिर्फ लुगनी को आर्थिक सहायता प्रदान की, बल्कि उसके बच्चे को गोद भी ले लिया. उन्होंने एक राज्यपाल होने का कर्तव्य ईमानदारीपूर्वक निभा कर अच्छे दिनों को लाने के लिए एक सार्थक पहल की है. इसके साथ ही, वे झारखंड के जनमानस के लिए प्रेरणा की स्रोत भी बन गयीं.
वैसे तो सरकार की ओर से अपाहिज, दृष्टिहीन, गरीब और पोलियोग्रस्त लोगों के लिए करोड़ों रुपये की योजनाएं चलाती हैं, लेकिन लुगनी की बेबसी सरकार की इन योजनाओं की सच्चाई को बयान करती है. इस देश में अकेले एक लुगनी ही नहीं है, जो हवशियों की शिकार हुई है. ऐसी अनेक महिलाएं और लड़कियां हैं, जिन्हें शासन-प्रशासन और सामाजिक तौर पर ऐसी ही पहल की दरकार है.
जरूरत इस बात की नहीं है कि लोग दुष्कर्म पीड़िता के साथ सहानुभूति बरते, आवश्यकता इस बात की है कि वे न सिर्फ सहानुभूति बरते, बल्कि आर्थिक सामाजिक तौर पर उसकी मदद की पहल भी करें. एक वाक्य में कहा जाये, तो सच है कि एक सार्थक पहल अच्छे दिनों के आगमन का निमंत्रण है.
– विनीता तिवारी, रामगढ़