राजनीतिक शुचिता को समझे माननीय

वाकई, यह खबर चौंकाने वाली है कि झारखंड के चार मंत्री अब भी बिना आवास के हैं. उन्हें सरकारी आवास तो मिला है, पर उसमें शिफ्ट नहीं कर पाये हैं, क्योंकि उन आवासों पर पूर्व मंत्री सहित अधिकारी अब भी जमे हुए हैं. दूसरों के लिए कायदा-कानून बनाने वाले जनप्रतिनिधि आखिर यह किस प्रकार का […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 17, 2013 3:25 AM

वाकई, यह खबर चौंकाने वाली है कि झारखंड के चार मंत्री अब भी बिना आवास के हैं. उन्हें सरकारी आवास तो मिला है, पर उसमें शिफ्ट नहीं कर पाये हैं, क्योंकि उन आवासों पर पूर्व मंत्री सहित अधिकारी अब भी जमे हुए हैं. दूसरों के लिए कायदा-कानून बनाने वाले जनप्रतिनिधि आखिर यह किस प्रकार का आदर्श स्थापित कर रहे हैं. किसी नियम को न मानना या कानून से परे जाकर कोई भी काम करना क्या हमारे राजनेताओं का शगल बनता जा रहा है.

इसमें कोई दो राय नहीं कि अपने नेता को देखकर ही कार्यकर्ता भी उसी नक्शेकदम पर चल पड़ते हैं. आये दिन राज्य के विभिन्न इलाकों से ऐसी खबरें खूब आती हैं कि फलां पार्टी के कार्यकर्ता या नेता ने फलां को पीट दिया या धमकी दी. कहीं किसी की जमीन पर कब्जा कर लेना या कब्जा की हुई जमीन को खाली नहीं करना, ऐसी खबरें भी आम हैं. क्या यह नहीं माना जाना चाहिए कि इस तरह की गतिविधियों में संलगA नेता-कार्यकर्ता अपने आलाकमान या अपने से वरिष्ठ नेताओं से ही प्रेरणा लेते हैं? ऐसे कामों से कोई अच्छी छवि नहीं बनती. जनता ऐसे नेताओं से मुंह बिदकाने लगती है.

झारखंड में राजनीति का ‘सरोवर’ पहले ही इतना गंदा हो चुका है कि राज्य से बाहर यहां की छवि बहुत अच्छी नहीं है. घपला-घोटाला, राजनीतिक अस्थिरता और सतही स्तर की राजनीतिक गतिविधियों ने झारखंड का कद छोटा ही किया है. यह कब संभव हो पायेगा कि यह राज्य राजनीतिक शुचिता का कोई मानदंड स्थापित करे? क्या इस राज्य के लोग अपने नेताओं से किसी ‘चमत्कार’ की उम्मीद कर सकते हैं? क्योंकि यहां अक्सर ही ‘करामात’ होते रहते हैं. झारखंड में आज भी कई ऐसे वरिष्ठ नेता हैं जिनसे प्रेरणा ली जा सकती है. यह इसलिए भी जरूरी है ताकि आने वाली पीढ़ी की राजनीति में रुचि बनी रहे. नयी पीढ़ी ऐसे भी राजनीति को लेकर थोड़ी अजमंजस में है. यह सोचना आवश्यक है कि कहीं ऐसा न हो कि नयी पीढ़ी का राजनीति से मोहभंग हो जाये और वह किसी वैकल्पिक व्यवस्था का रुख अख्तियार कर ले. यह एक गंभीर मसला है. सारी जवाबदेही आज के राजनेताओं पर है. उम्मीद की जानी चाहिए कि उनकी संचेतना लौटेगी.

Next Article

Exit mobile version