कालेधन पर कार्रवाई की इच्छाशक्ति जरूरी

विदेशी बैंकों में देश का कितना कालाधन है, इसका कोई आधिकारिक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है. परंतु, इस बात के पुख्ता प्रमाण हैं कि आजादी के बाद से ही देश का धन चोरी-छुपे विदेशी बैंकों में जमा होता रहा है. वाशिंगटन की संस्था ग्लोबल फाइनेंशियल इंटीग्रिटी का आकलन है कि 1948 से 2008 के बीच भारतीयों […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 17, 2013 3:31 AM

विदेशी बैंकों में देश का कितना कालाधन है, इसका कोई आधिकारिक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है. परंतु, इस बात के पुख्ता प्रमाण हैं कि आजादी के बाद से ही देश का धन चोरी-छुपे विदेशी बैंकों में जमा होता रहा है.

वाशिंगटन की संस्था ग्लोबल फाइनेंशियल इंटीग्रिटी का आकलन है कि 1948 से 2008 के बीच भारतीयों ने टैक्स चोरी की मंशा से जो धन विदेशों के बैंकों में जमा किया है, वह मौजूदा विनिमय दर से करीब 28 लाख करोड़ रुपये है. कालाधन वापस लाने के मुद्दे ने आंदोलन का रूप धरा, तो सरकार ने 2011 में तीन संस्थाओं को एक संयुक्त अध्ययन का जिम्मा सौंपा था, ताकि पता चल सके कि देश और देश के बाहर छुपाये गये कालेधन की मात्र कितनी है. इसके निष्कर्ष अभी सामने नहीं आये हैं, लेकिन दबे स्वरों में कालेधन की मात्र 35 लाख करोड़ रुपये बतायी जा रही है.

अगर यह सही है तो कालेधन की मात्र देश के जीडीपी के 30 फीसदी के करीब है. गौर करें कि सरकार संसाधनों की कमी का रोना रोते हुए जीडीपी का करीब एक फीसदी ही सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं पर खर्च करती है, जबकि महंगे उपचार और शिक्षा पर खर्च के कारण हर साल लाखों परिवार गरीबी रेखा से नीचे चले जाते हैं. कालाधन का पता लगाना टेढ़ी खीर साबित होता रहा है, क्योंकि विशिष्ट कानूनों की आड़ में विदेशों के बैंक धन जमा करनेवाले की पहचान छुपा लेते हैं. कर चोरी की समस्या वैश्विक है. इससे परेशान भारत सहित 58 देशों ने अब स्विट्जरलैंड से एक करार किया है.

इसमें स्विस बैंकों में धन जमा करनेवालों की जानकारी साझा करने पर स्विट्जरलैंड राजी हो गया है. हालांकि कालाधन जमाकर्ताओं की पहचान उजागर होना और उनसे टैक्स वसूली कर पाना तभी संभव होगा, जब भारत सरकार इस दिशा में सक्रियता से कदम उठाये. तीन साल पहले भी भारत और स्विट्जरलैंड के बीच इस तरह का एक द्विपक्षीय समझौता हुआ था. उस समझौते के नतीजे खास उत्साहवर्धक नहीं रहे हैं. साथ ही, भारतीयों का कालाधन स्विस बैंकों में ही नहीं, लिंचेस्टाइन और ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड जैसे टैक्स हैवन देशों में भी जमा है. जरूरी यह है कि अब कालेधन से संबंधित जानकारी जुटाने और कानून के अनुरूप कार्रवाई करने के लिए भारत सरकार इच्छाशक्ति दिखाये.

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