।।रंजन राजन।।
(प्रभात खबर से जुड़े हैं)
पिछले हफ्ते देश के दक्षिणी हिस्से से आयी एक महत्वपूर्ण खबर राष्ट्रीय मीडिया में बहस का हिस्सा नहीं बन सकी. हिंदुओं की धार्मिक परंपराओं में पुरुष वर्चस्व और अवैज्ञानिक सोच को चुनौती देनेवाली यह खबर दुनियाभर में सुर्खियां बटोर रही है. भारतीय समाज में बड़े बदलाव का वाहक बन सकनेवाली यह खबर आयी थी कर्नाटक के तटीय शहर मंगलोर से. महान समाज सुधारक, योगी एवं सिद्ध संत श्री नारायण गुरु की प्रेरणा से करीब एक सदी पहले मंगलोर के कुद्रोली में स्थापित प्रतिष्ठित श्री गोकर्णनाथेश्वर मंदिर में दो विधवा महिलाओं को पुजारी बनाया गया है. विधवाओं को धार्मिक व शुभ कार्यो से अलग रखने और श्वेत वस्त्र में जीने पर मजबूर करनेवाले रूढ़ीवादी समाज में उनके पुजारी नियुक्त होने को एक सामाजिक क्रांति का सूत्रपात माना जा रहा है. इसी कड़ी में राजस्थान सरकार ने भी घोषणा की है कि राज्य के मंदिरों में महिलाएं भी पुजारी, मैनेजर और सहायक बन सकेंगी.
इस पहल को उस सामाजिक क्रांति का दूसरा चरण भी कहा जा सकता है, जिसका सूत्रपात करीब सवा सौ साल पहले महान संत श्री नारायण गुरु (1854-1928) ने किया था. नारायण गुरु का आविर्भाव दक्षिणी राज्य केरल में ऐसे वक्त में हुआ था, जब वहां अस्पृश्यता घृणित रूप में मौजूद थी. कुछ जातियों के लोगों को न केवल अछूत माना जाता था, बल्कि उनकी छाया भी अन्यों को अपवित्र कर देती थी. एक समान आराध्य और धर्म को मानने के बावजूद इन लोगों को मंदिरों (और विद्यालयों) में प्रवेश से वंचित रखा गया था. ऐसे वक्त में नारायण गुरु इस सामाजिक जड़ता को तोड़ने और समाज में रचनात्मक बदलाव लाने में सफल रहे थे. तिरुअनंतपुरम के निकट आरूविपुरम में नेय्यार नदी के तट पर 1888 में शिव मंदिर की स्थापना के जरिये उन्होंने इस मान्यता को ठुकरा दिया कि मंदिर का पुजारी केवल ब्राह्मण ही हो सकता है. अन्य मंदिरों में जिनका प्रवेश वर्जित था, वे भी यहां निर्बाध आ सकते थे. यहां किसी के लिए कोई भेदभाव नहीं था, न जाति का, न धर्म का और न ही आदमी और औरत का. इस मंदिर के निकट ही श्री नारायण गुरु ने अपना आश्रम बनाया था. साथ ही एक संस्था बना कर मंदिर संपदा की देखरेख और श्रद्धालुओं के कल्याण की व्यवस्था की थी. इसे बाद में श्री नारायण धर्म परिपालन योगम् (एसएनडीपी) नाम से जाना गया. बाद के दशकों में इस संस्था ने अनेक मंदिर और शिक्षण संस्थानों की स्थापना की.
श्री नारायण गुरु 1904 में कोझीकोड के तटीय उपनगर वर्कला के सुंदर पर्वतीय क्षेत्र शिवगिरि आ गये. यहां उन्होंने दो मंदिरों और एक मठ की स्थापना की. 1928 में अपनी महासमाधि तक उन्होंने यहीं साधना की थी. शिवगिरि आकर ही गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने श्री नारायण गुरु के दर्शन किये थे और उनके कार्यो की सराहना की थी. शिवगिरि में 1932 से हर साल तीन दिवसीय (30 दिसंबर से एक जनवरी) सालाना आयोजन होता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु शामिल होते हैं. कहा जा सकता है कि आज के केरल में दिख रहे सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक विकास की नींव श्री नारायण गुरु और उनके द्वारा स्थापित एसएनडीपी ने रखी थी. श्री नारायण गुरु की शिक्षाओं को इस साल से केरल के स्कूली पाठ्यक्रम में भी शामिल किया गया है.
इसी श्री नारायण गुरु की प्रेरणा से उनके भक्तों ने केरल के पड़ोसी राज्यों में भी ऐसे मंदिरों की स्थापना की थी, जिसके दरवाजे सभी मनुष्यों के लिए खुले थे. इन्हीं में मंगलोर के कुद्रोली में 1912 में स्थापित प्रतिष्ठित श्री गोकर्णनाथेश्वर मंदिर भी है, जिसमें प्राण प्रतिष्ठा खुद श्री नारायण गुरु ने की थी. 1989 से 1991 के दौरान तत्कालीन केंद्रीय मंत्री जनार्दन पुजारी के नेतृत्व में इस मंदिर का पुनर्निर्माण कर इसे भव्य रूप दिया गया और तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इसका उद्घाटन किया था. इस मंदिर में गत नवरात्रि के दौरान दो विधवा महिलाओं, 67 साल की लक्ष्मी और 45 साल की इंद्रा को भव्य समारोह के साथ पुजारी नियुक्त किया गया. समारोह में सभी धर्मों के लोग शामिल हुए. नियुक्ति से पहले दोनों महिलाओं को पुजारी के रूप में काम करने के लिए चार महीने का प्रशिक्षण दिया गया. अब उन्हें मासिक वेतन मिलेगा और उनकी देखभाल की जिम्मेवारी मंदिर प्रबंधन की होगी. मंदिर प्रबंधन के इस पहल की देश-विदेश में व्यापक सराहना हो रही है. हालांकि, जैसा कि हर सुधारवादी कदम के बाद होता रहा है, कुछ स्थानीय कट्टरपंथी समूह इसके विरोध में भी उतर आये हैं. लेकिन, इस पहल को संरक्षण मिला है पूर्व केंद्रीय मंत्री जनार्दन पुजारी का, जिनका मानना है कि ‘केवल वैवाहिक स्थिति के कारण किसी महिला के साथ भेदभाव नहीं होना चाहिए और भारत के दूसरे मंदिरों को भी ऐसा ही करना चाहिए.’