संस्कृति-इतिहास के वाहक हैं सिक्के
किसी भी राष्ट्र की मुद्रा उसकी आर्थिक और सांस्कृतिक समृद्धि की परिचायक होती है. मुद्रा बड़ी आसानी से एक-दूसरे के पास पहुंचती है. मुद्रा और सिक्कों को बनाते वक्त शायद इस बात का खास ध्यान रखा जाता है कि इससे देश की संस्कृति, इतिहास और सांस्कृतिक धरोहर पीढ़ी-दर-पीढ़ी तक पहुंचेगी. एक वक्त वह भी था […]
किसी भी राष्ट्र की मुद्रा उसकी आर्थिक और सांस्कृतिक समृद्धि की परिचायक होती है. मुद्रा बड़ी आसानी से एक-दूसरे के पास पहुंचती है. मुद्रा और सिक्कों को बनाते वक्त शायद इस बात का खास ध्यान रखा जाता है कि इससे देश की संस्कृति, इतिहास और सांस्कृतिक धरोहर पीढ़ी-दर-पीढ़ी तक पहुंचेगी.
एक वक्त वह भी था जब भारतीय सिक्कों में महानायकों की छवि चित्रित होती थी. कभी कोई न दिखनेवाली या बहुत कम नजर आनेवाली मुद्रा हाथ में आती, तो लोग उसे खर्च करने के बजाय सहेजते थे. पर अब ये दशकों पुरानी बात हो गयी.
अब ऐसे सिक्के नहीं दिखते, जिनमें राष्ट्र की पहचान झलकती हो. शायद हम अपनी विरासत, धरोहर और देश के निर्माण करनेवाले महानायकों को भूलते जा रहे हैं. आज एक रुपये में भुट्टे की जगह अंगूठा दिखता है.
– आनंद कानू, कोलकाता