ग्रामीण स्कूलों से जुड़ें आइआइटियन
विगत 12 सितंबर को प्रभात खबर के अभिमत पन्ने पर वरिष्ठ पत्रकार नरेंद्र कुमार सिंह का लेख ‘मीडिया के बहाने समय की पड़ताल’ पढ़ा़ नरेंद्र जी ने गांव के प्राथमिक विद्यालयों का उम्दा विश्लेषण किया है. फलत: मैं भी अपनी बात रखने से खुद को रोक न पाया़ मैं झारखंड के गोड्डा जिले के बहोरिया […]
विगत 12 सितंबर को प्रभात खबर के अभिमत पन्ने पर वरिष्ठ पत्रकार नरेंद्र कुमार सिंह का लेख ‘मीडिया के बहाने समय की पड़ताल’ पढ़ा़ नरेंद्र जी ने गांव के प्राथमिक विद्यालयों का उम्दा विश्लेषण किया है.
फलत: मैं भी अपनी बात रखने से खुद को रोक न पाया़ मैं झारखंड के गोड्डा जिले के बहोरिया गांव का रहनेवाला हूं. मेरी प्राथमिक शिक्षा गांव में हुई है. तत्पश्चात आवासीय विद्यालय नेतरहाट होते हुए 2011 में मैं आइआइटी-जेइइ में चयनित हुआ और भारतीय खनिज विद्यापीठ, धनबाद में पेट्रोलियम अभियंत्रिकी से मैंने स्नातक किया.
बहरहाल, बच्चों में संस्कार के बीज बोने में ‘माट’ साहब की भूमिका को आधुनिक शिक्षकों से अधिक प्रभावकारी एवं सम्माननीय मैं भी मानता हूं. मेरा विचार है कि भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों में अध्ययनरत एवं शिक्षोपरांत स्नातक के अधिकांश छात्र रोजगार की तलाश में ही अपना समय एवं ऊर्जा व्यतीत करते हैं. वे समाज एवं देश को अपनी सेवा देना चाहते हैं लेकिन निर्णयशून्यता होती है.
मैं ऐसी ग्रामीण युवा प्रतिभा, जो विज्ञान एवं गणित की गुणात्मक शिक्षा अर्जित करते हैं, को शिक्षा क्षेत्र से जोड़ कर सरकारी विद्यालयों को पुन: जीवंत करने का आइडिया सरकार तक पहुंचाना चाहता हूं. सरकार को करना बस इतना है कि जिले में अंचल स्तर पर एक-एक समर्पित अभियंता (आइआइटियन) को विद्यालयों में मेंटर की तरह स्थापित करे.
ये मेंटर पठन-पाठन में सहयोग करेंगे. प्रतिभाशाली बच्चों के लिए प्रेरणास्रोत ये आइआइटियन, धीरे-धीरे संभ्रांत परिवार के बच्चों को भी सरकारी स्कूलों से जोड़ सकेंगे. इसके परिणामस्वरूप निजी स्कूलों को रोकने में मदद मिलेगी और सरकारी व निजी विद्यालय के बीच की दूरी कम होगी.
– कमलाकांत, बहोरिया, गोड्डा