क्रिकेट की ताकत और डालमिया
अनुज कुमार सिन्हा वरिष्ठ संपादक प्रभात खबर भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआइ) के अध्यक्ष जगमोहन डालमिया की मौत के बाद उनके उत्तराधिकारी की तलाश हो रही है. उनका उत्तराधिकारी चुनना इतना आसान भी नहीं है. आज वर्ल्ड क्रिकेट में भारत की तूती बोलती है, इसके पीछे बीसीसीआइ की आर्थिक ताकत है और इसको इतनी बड़ी […]
अनुज कुमार सिन्हा
वरिष्ठ संपादक
प्रभात खबर
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआइ) के अध्यक्ष जगमोहन डालमिया की मौत के बाद उनके उत्तराधिकारी की तलाश हो रही है. उनका उत्तराधिकारी चुनना इतना आसान भी नहीं है.
आज वर्ल्ड क्रिकेट में भारत की तूती बोलती है, इसके पीछे बीसीसीआइ की आर्थिक ताकत है और इसको इतनी बड़ी आर्थिक ताकत बनाने में सबसे बड़ी भूमिका रही है डालमिया की. भविष्य में भी भारत (खास कर बीसीसीआइ) का यह रुतबा बरकरार रहे, इसके लिए सही व्यक्ति के चुनाव की चुनौती है.
आज वर्ल्ड क्रिकेट में भारत को दरकिनार कर कोई प्रतियोगिता नहीं हो सकती, कोई बड़ा संशोधन नहीं हो सकता. ऐसा इसलिए, क्योंकि आजकल क्रिकेट को आर्थिक ताकत नियंत्रित करती है और यह ताकत है बीसीसीआइ की. यह ताकत रातों-रात नहीं बनी है. इसके लिए अनेक लोगों का इसमें योगदान रहा है. इन्हीं लोगों में प्रमुख रहे हैं जगमोहन डालमिया.
डालमिया भले ही स्वयं एक बड़े क्रिकेट खिलाड़ी नहीं रहे हों (वे क्लब क्रिकेट खेला करते थे), लेकिन एक प्रशासक के तौर पर उन्होंने बीसीसीआइ को दुनिया का सबसे अमीर खेल संगठन बनाया. एक दौर था जब वर्ल्ड कप में इंग्लैंड की तूती बोलती थी. 1975 में पहली बार क्रिकेट का वर्ल्ड कप इंग्लैंड में हुआ था. दूसरी और तीसरी बार भी इंग्लैंड में ही हुआ. उन दिनों कोई सोच भी नहीं सकता था कि वर्ल्ड कप इंग्लैंड के बाहर भी कराना संभव होगा.
डालमिया 1979 आते-आते बीसीसीआइ से जुड़ चुके थे. बिजनेसमैन भी थे. किसी बिजनेस (खेल भी अब ऐसा ही होता जा रहा है) को आगे बढ़ाने की कला जानते थे. इसके लिए अच्छा अवसर था भारत में वर्ल्ड कप क्रिकेट के आयोजन का. उन्होंने एन केपी साल्वे और बिंद्रा के साथ मिल कर भारत में 1987 का वर्ल्ड कप कराने का प्रयास आरंभ किया.
इंग्लैंड ने इसका विरोध किया. डालमिया ने एसोसिएट्स देशों का साथ लिया और 1987 में भारत-पाकिस्तान में वर्ल्ड कप करा दिया. पहली बार इंग्लैंड के बाहर वर्ल्ड कप हुआ. इंग्लैंड का एकाधिकार टूटा था. उन्हीं दिनों यह तय हुआ कि रोटेशन के आधार पर वर्ल्ड कप हुआ करेगा, यानी इंग्लैंड के बाहर वर्ल्ड कप कराने का रास्ता खोलने में डालमिया की बड़ी भूमिका रही.
डालमिया के आने के पहले बीसीसीआइ कोई बहुत बड़ा ताकतवर (आर्थिक तौर पर) संगठन नहीं था. इसमें अगर सुधार आया तो डालमिया एक बड़े कारण थे. पैसा आया तो ब्रॉडकॉस्टिंग राइट से. इसके लिए डालमिया को लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी, लेकिन जब जीत हुई, तो बीसीसीआइ के पास पैसे बरसने लगे. एक अनुमान के अनुसार, आज बीसीसीआइ की संपत्ति 1500 मिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की है.
डालमिया आइसीसी के भी अध्यक्ष रहे. इस पद पर जानेवाले वे पहले भारतीय थे. अनेक बड़े फैसले लिये.दक्षिण अफ्रीका की टीम पर लंबे समय से प्रतिबंध लगा हुआ था. आइसीसी के अनेक अध्यक्ष बने, लेकिन किसी ने प्रतिबंध हटाने की हिम्मत नहीं की. अंतत: डालमिया ने दक्षिण अफ्रीका की टीम की वर्ल्ड क्रिकेट में वापसी का रास्ता निकाला. बांग्लादेश की टीम को टेस्ट टीम का दर्जा दिलाया.
दरअसल डालमिया के पास दूरदृष्टि थी. वे जानते थे कि क्रिकेट का तेजी से व्यवसायीकरण हो रहा है. ऐसे तो कैरी पैकर के जमाने से ही क्रिकेट में पैसा बरसना आरंभ हो गया था, लेकिन यह पैसा भारत में नहीं आ रहा था (क्योंकि भारतीय खिलाड़ी पैकर की टीम में नहीं गये थे).
इसलिए डालमिया ऐसे रास्ते की तलाश में थे जिसके कारण क्रिकेट में बड़ा पैसा आये, खिलाड़ियों को भी पैसा ज्यादा मिले और इसका क्रेज तेजी से बढ़े. डालमिया ने इस बात को समझ लिया था कि अगर बीसीसीआइ का ब्रॉडकॉस्टिंग राइट पर कब्जा हो जाये, तो आगे का रास्ता आसान हो जायेगा.
इसी कारण उन्होंने दूरदर्शन के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ी और जीती भी. बीसीसीआइ अन्य छोटे-छोटे देश (जो क्रिकेट खेलते हैं) को भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर मदद करता है. अगर विजन नहीं होता और बेहतर हालात नहीं मिला होता, तो आज बीसीसीआइ की हालत भी पाकिस्तान के क्रिकेट बोर्ड जैसा होता.
इसलिए बीसीसीआइ को मजबूत करने के साथ-साथ वर्ल्ड क्रिकेट में भारत का सिक्का मजबूत करने का श्रेय तो डालमिया को जाता ही है. अब विकल्प की तलाश हो रही है. लेकिन विकल्प तलाशने में इस बात का ध्यान रखना होगा कि जिस ऊंचाई पर बीसीसीआइ पहुंच चुका है, उससे कमजोर न हो, ताकि वर्ल्ड क्रिकेट में भारत का दबदबा बना रहे.