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नेपाल का संविधान और भारत

पुष्परंजन ईयू-एशिया न्यूज के दिल्ली संपादक नेपाल के संविधान में बदलाव के लिए साउथ ब्लाॅक से सात प्रस्ताव भेजे गये हैं, और यह भी कहा गया है कि मधेस के हितों का ध्यान रखा जाये. एक देश में कैसा संविधान हो, इसके लिए क्या वास्तव में भारत को निर्देश देने की जरूरत है? इसे हम […]

पुष्परंजन
ईयू-एशिया न्यूज के दिल्ली संपादक
नेपाल के संविधान में बदलाव के लिए साउथ ब्लाॅक से सात प्रस्ताव भेजे गये हैं, और यह भी कहा गया है कि मधेस के हितों का ध्यान रखा जाये. एक देश में कैसा संविधान हो, इसके लिए क्या वास्तव में भारत को निर्देश देने की जरूरत है? इसे हम कूटनीतिक परिपक्वता कैसे कहें? नेपाली संविधान लागू करने के छठवें दिन भारतीय विदेश सचिव एस जयशंकर काठमांडो में थे.
शुक्रवार को उन्होंने बयान दिया, ‘हम उम्मीद करते हैं कि नेपाल के नये संविधान से तराई में और हिंसा न भड़के.’ कूटनीति में यह होता है कि सौ अच्छी बातों में दो कड़वी बात कहें, तो उसके उलट अर्थ निकलने शुरू हो जाते हैं. मोदी जी के विशेष दूत व विदेश सचिव एस जयशंकर के बयान के फौरन बाद एनेकपा (माओवादी) नेता प्रचंड ने कहा कि हम भारत का ‘यस मैन’ नहीं बनना चाहते. नेकपा-माओवादी नेता मोहन वैद्य किरण ने इसे नेपाल के आंतरिक मामले में हस्तक्षेप बताया. इन बयानों को भारत को गंभीरता से लेना चाहिए.
पांच साल पहले नेपाल से हिंदू राष्ट्र का दर्जा छीन लिया गया. यह वहां संसद के जरिये हुआ. इस समय नये संविधान में उसकी पुनरावृत्ति हुई, तो भारत में कइयों को कष्ट है. 28 मई, 2008 को जब नेपाल में राजशाही समाप्त कर उसे ‘संघीय लोकतांत्रिक गणतंत्र’ घोषित किया गया, तब वहां की 81.3 प्रतिशत हिंदू जनता सड़क पर नहीं उतरी. लेकिन आज नये संविधान में नेपाल को हिंदू राष्ट्र बनाने की मांग पर आम नेपाली सड़क पर उतरता है, तो यह उनका आंतरिक मामला है.
भारत के हिंदूवादी नेता इस अग्नि को भड़कायें, इससे नयी दिल्ली की छवि बिगड़ती है. खासकर इस समय मोदी सरकार के जो अनुषंगी संगठन हैं, उनके नेताओं को बयान देते समय संयम की जरूरत है. चीन, यूरोपीय संघ को ताली पीटने दीजिए.
चीन ‘बधाई’ पर वाहवाही लूट रहा है. चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता होंग लेई ने नये संविधान लागू करने के लिए नेपाल को बधाई दी, और आशा व्यक्त की कि इस देश में स्थिरता और एकता का माहौल बनेगा. नेपाल में इस पर निराशा व्यक्त की जा रही है कि भारत ने अब तक नये संविधान के लिए बधाई नहीं दी. अब इस बधाई में विलंब, और चूक के लिए हमें चीन को दोष नहीं देना चाहिए.
नेपाल के प्रधानमंत्री सुशील कोइराला संयुक्त राष्ट्र के 70वें महासभा में भाग लेने न्यूयाॅर्क नहीं जा रहे हैं. विदेशी मामलों के सलाहकार दिनेश भट्टराई इसकी वजह नेपाल में उथल-पुथल बताते हैं. राष्ट्रपति रामवरण यादव तक ने बयान दिया कि प्रधानमंत्री कम से कम हमें जनकपुर जाने लायक छोड़ें.
जनकपुर तराई में है, और राष्ट्रपति का गृह नगर है. रामवरण यादव स्वयं नेपाली कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे हैं, ऐसे समय में उनका बयान यह संदेश देता है कि नेपाली कांग्रेस में अंदर सब कुछ ठीक नहीं है. रामवरण यादव को राष्ट्रपति पद पर रहते आठ साल हो गये. उनके अवकाश का समय भी आ गया लगता है. राष्ट्रपति चाहते हैं कि पीएम कोइराला तराई के छोटे-छोटे दलों से बात कर सहमति व सद्भाव का रास्ता निकालें.
नेपाल में सोशल मीडिया के कारण अफवाहों का बाजार गरम है. वस्तुस्थिति समझने के लिए भारतीय राजदूत रणजीत राइ को नयी दिल्ली बुलाया गया, तो हल्ला हुआ कि भारत ने राजदूत वापस बुला लिया है.
सुरक्षा कारणों से नेपाली नंबर की गाड़ियों से माल ढुलाई भारतीय सीमा से हो रही है, तो अफवाह फैली कि भारत ने नाकेबंदी कर दी है. नेपाल तराई में अशांति के कारण सड़कों पर जाम है, इसलिए पेट्रोलियम से लेकर आवश्यक वस्तुएं दुर्गम इलाकों तक पहुंचाने में देरी हो रही है. पेट्रोल पंप पर लंबी लाइन से बेहाल नेपाली जनता को बरगलाया जा रहा है कि भारत ने दबाव बनाने के वास्ते ऐसा किया है. जबकि बीरगंज भंसार कार्यालय के प्रमुख मित्रलाल रेग्मी ने कहा कि किसी तरह का अवरोध भारत से नहीं है.
भारतीय सीमा स्थित रक्सौल कस्टम के असिस्टेंट कलक्टर कमलेश कुमार ने भी कहा कि कस्टम क्लिरिंग एजेंट के नहीं आने, असुरक्षा, और जाम के कारण ऐसा हो रहा है. ताज्जुब है कि इन दोनों अधिकारियों की बातों पर काठमांडो से दिल्ली तक बैठे नेता ध्यान नहीं दे रहे हैं.
बुधवार सुबह काठमांडो के बालुआटार स्थित प्रधानमंत्री निवास पर तीन पार्टियों- नेपाली कांग्रेस, नेकपा ‘एमाले’, और एनेकपा (माओवादी) की बैठक में यह तय हुआ कि भारत से गलतफहमी दूर करेंगे, और सीमा पार से सामानों की आवाजाही में बाधा न हो, यह सुनिश्चित करेंगे.
एमाले अध्यक्ष केपी शर्मा ओली ने बयान दिया, ‘मुझे नहीं लगता कि नेपाली संविधान भारत को स्वीकार नहीं है, और ‘नाकेबंदी’ जैसी कोई बात है. माल ढुलाई में कोई समस्या हो सकती है.’ भारतीय विदेश मंत्रालय को चाहिए कि ऐसी भ्रम की स्थिति को आगे बढ़ने से रोके, और तुरंत बयान जारी करे.
बहुतों को पता नहीं है कि मधेसी नेता चाहते क्या हैं? प्रत्यक्ष रूप से यही लग रहा है कि मधेस का सीमांकन मुख्य मुद्दा है. लेकिन मेची से महाकाली तक मांगों की फेहरिस्त बड़ी लंबी है.
प्रदेश सीमांकन, नागरिकता, देश के उच्च पदस्थ अधिकारियों की नियुक्ति, जनसंख्या के आधार पर संसद में सीट का निर्धारण, समानुपातिक समावेशी प्रतिनिधित्व, संसदीय निर्वाचन क्षेत्र का पुनरावलोकन 20 के बदले दस वर्षों में करने जैसी मांगें हैं. मधेस नेता इसका दावा कर रहे हैं कि तराई की आबादी देश की कुल आबादी के पचास प्रतिशत से अधिक है, इसलिए संसद की सीट आबादी के अनुरूप आबंटित हो.
नेपाली संविधान के अनुच्छेद 283 में व्यवस्था है कि राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, प्रधान न्यायाधीश, संसद के सभामुख, ऊपरी सदन के अध्यक्ष, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, विधानसभाओं के सभामुख, सुरक्षा अंगों के प्रमुख पदों पर उनको बैठाया जाये, जिनकी नागरिकता वंशज के आधार पर मिली हुई है. वे चाहते हैं जो जन्मजात नागरिक हैं, या जिन्हें नागरिकता का अधिकार प्राप्त है, वैसे लोग भी इन सर्वोच्च पदों पर आसीन हों. यह दिलचस्प है कि ऐसे ही सात सुझाव भारत की ओर से भेजे गये हैं.
मंगलवार को ‘संयुक्त मधेसी’ नेता नयी दिल्ली स्थित नेपाल दूतावास के आगे धरने पर बैठे थे. भारत की राजधानी में ऐसा दृश्य उपस्थित हो, इससे क्या बचने की आवश्यकता नहीं थी? हम क्यों भूल जाते हैं कि नेपाल, भारत का कोई सूबा नहीं है!

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