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बरबादी से अच्छा लाचारों की करें मदद

किसी बड़ी असाध्य बीमारी से ग्रस्त किसी व्यक्ति के इलाज में उसका पूरा परिवार जब आर्थिक रूप से इतना तबाह हो जाता है कि उसकी हालत किसी भिखारी से कम नहीं रह जाती. वह अपने जीवन को आगे चलाने की खातिर एक-एक रुपये के लिए न जाने किस-किस अधिकारियों, उद्योगपतियों तथाअपने रिश्तेदारों के आगे गिड़गिड़ाता […]

किसी बड़ी असाध्य बीमारी से ग्रस्त किसी व्यक्ति के इलाज में उसका पूरा परिवार जब आर्थिक रूप से इतना तबाह हो जाता है कि उसकी हालत किसी भिखारी से कम नहीं रह जाती. वह अपने जीवन को आगे चलाने की खातिर एक-एक रुपये के लिए न जाने किस-किस अधिकारियों, उद्योगपतियों तथाअपने रिश्तेदारों के आगे गिड़गिड़ाता है.
जो रोगी पहले से ही कमज़ोर है, वह मदद के लिए दर-दर भटके, यह उचित नहीं. जब वह व्यक्ति मदद के लिए किसी सरकारी अधिकारी के पास गुहार लगाने जाता है, तो उसे विभिन्न प्रकार के बहानों से टाल दिया जाता है. सरकारी अधिकारी कहते हैं कि हमारे पास पर्याप्त रकम मौजूद नहीं. एकाध लाख से ज्यादा हमारी सीमा नहीं. यह अधिकार हमारे पास नहीं.
ऐसी स्थिति में रोगी कहीं से भी मदद न पाकर गलत कदम उठाने को मजबूर हो जाता है. यदि किसी को मदद मिले भी, तो वह भी इतने धक्के खाने पर और रकम इतनी कम मिलती है कि इलाज शुरु होते ही वह समाप्त हो जाती है. वहीं, प्रतिदिन सुनने-पढ़ने को मिलता है कि फलां जगह इतने करोड़ की संपत्ति बेकार हो गयी. इतने करोड़ के घोटाले हुए या लूटे गये.
अरबों पानी में बह गये. लाखों के माल सड़ गये. ये बरबाद होते लाखों-करोड़ों के धन का दशांश भी यदि इन निशक्तों को जांच के आधार पर बिना किसी हील-हवाला के सहयोग रूप में दिया जाये, तो कई बिना किसी परेशानी के अपना इलाज करा सकते हैं.
उन्हें जीने का नया मार्ग दिखेगा. इस तरह धन के दुरुपयोग से अच्छा है कि उसका इस्तेमाल लाचारों की जान बचाने किया जाये. यही उसका वास्तविक सदुपयोग होगा. अधिकारी और मंत्रीगण यह समझें कि यदि ये लाचार स्वस्थ-सुखी जीवन जीयेंगे.
– जगदीप जोशी, रांची

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