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दंगों की राजनीति

दंगे होते नहीं, करवाये जाते हैं. राजस्थान के एक पुलिस अधिकारी का यह वाक्य हाल में अखबार की सुर्खियों में था. अब उत्तरप्रदेश के मुजफ्फरनगर में हुए दंगों की जांच के लिए बनी न्यायाधीश विष्णु सहाय समिति का निष्कर्ष भी कुछ ऐसा ही है. समिति की रिपोर्ट प्रदेश के राज्यपाल को सौंपी गयी है. रिपोर्ट […]

दंगे होते नहीं, करवाये जाते हैं. राजस्थान के एक पुलिस अधिकारी का यह वाक्य हाल में अखबार की सुर्खियों में था. अब उत्तरप्रदेश के मुजफ्फरनगर में हुए दंगों की जांच के लिए बनी न्यायाधीश विष्णु सहाय समिति का निष्कर्ष भी कुछ ऐसा ही है. समिति की रिपोर्ट प्रदेश के राज्यपाल को सौंपी गयी है. रिपोर्ट अभी सार्वजनिक नहीं हुई है, पर खबरों के मुताबिक जांच समिति ने मुजफ्फरनगर दंगों के लिए इलाके में सक्रिय समाजवादी पार्टी और भाजपा के नेताओं को प्राथमिक रूप से जिम्मेवार माना है.
दंगों में मारे गये और घायल लोगों की त्रासद छवियों के साथ हजारों विस्थापित परिवारों की याद लोगों के जेहन में ताजा है. जाड़े की ठिठुरती रातों में चंद समाजसेवी संस्थाओं के रहमो-करम पर छोड़ दिये गये उन परिवारों के दूधमुंहे बच्चे सिर्फ इस वजह से काल के गाल में समा गये, क्योंकि सरकार पीड़ितों को राहत पहुंचाने में लापरवाह रही. नेताओं की भड़काऊ भूमिका, प्रशासन की निष्क्रियता तथा राहत और बचाव में शिथिलता जैसी बातें कमो-बेश हर दंगे के बारे में कही जाती हैं.
इस लिहाज से इस रिपोर्ट में कुछ नया नहीं है. इसके निष्कर्ष आम समझ की एक प्रकार से आधिकारिक पुष्टि हैं. सपा और भाजपा को जांच रिपोर्ट से कुछ शर्मिंदगी उठानी पड़ सकती है और इस कारण से दोनों ही दल इस पर एतराज भी जता सकते हैं. यह भी हो सकता है कि दोनों एक-दूसरे पर आरोप लगायें. वैसे भी जांच-समिति के निष्कर्ष बाध्यकारी तो होते नहीं हैं कि किसी सरकार या दल को जवाबदेह मान कर कोई कानूनी कार्रवाई की जा सके.
दंगों के राजनीतिक कारणों से प्रायोजित होने के बारे में बरसों से चली आ रही समझ को रेखांकित करनेवाली सहाय समिति की रिपोर्ट फिर भी महत्वपूर्ण है. रिपोर्ट के निष्कर्ष कम-से-कम इस बात की तरफ संकेत करते प्रतीत होते हैं कि दंगे की वजह जब सर्वज्ञात हैं, तो फिर क्यों नहीं दलगत प्रतिबद्धताओं से ऊपर उठ कर कुछ ऐसे वैधानिक तथा प्रशासनिक उपाय किये जायें कि दंगों की पुनरावृत्ति न हो और निर्दोष नागरिक अमन-चैन से गुजर-बसर कर सके. मुजफ्फरनगर दंगों के बारे में आयी इस जांच रिपोर्ट के निष्कर्ष को एक नजीर मानते हुए राजनीतिक दलों को चाहिए कि वे एक-दूसरे को दंगों का दोषी ठहराने की पुरानी रीत से उबर कर पूरे मसले पर सामाजिक हित और सुरक्षा के नजरिये से विचार करें और दंगों को रोकने के लिए एक कारगर व्यवस्था बनाने के लिए पुरजोर कोशिश करें.

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