वे रहीम नर धन्य हैं रिश्वतखोरी अंग!
डॉ. सुरेश कांत वरिष्ठ व्यंग्यकार जिस तरह मारनेवाले से बचानेवाला महान होता है, कुछ उसी तरह रिश्वत देनेवाले से रिश्वत लेनेवाला महान नहीं तो मेन यानी मुख्य अवश्य होता है, क्योंकि रिश्वतखोरी का सारा ठीकरा उसी के सिर फूटता है और इसे वह पूरी शिद्दत से अपने एकमेव सिर पर झेलता है. शायद रिश्वत की […]
डॉ. सुरेश कांत
वरिष्ठ व्यंग्यकार
जिस तरह मारनेवाले से बचानेवाला महान होता है, कुछ उसी तरह रिश्वत देनेवाले से रिश्वत लेनेवाला महान नहीं तो मेन यानी मुख्य अवश्य होता है, क्योंकि रिश्वतखोरी का सारा ठीकरा उसी के सिर फूटता है और इसे वह पूरी शिद्दत से अपने एकमेव सिर पर झेलता है.
शायद रिश्वत की यह महिमा ही उसे यह सब झेलने का हौसला देती है कि रिश्वत लेते पकड़े भी गये तो रिश्वत देकर ही छूट जाएंगे. सब लोग यही देखते हैं कि उसने रिश्वत ली है, कोई यह नहीं देखता कि किसी ने दी है, तब उसने ली है. गोविंदा द्वारा अपनी किसी फिल्म में बोले गये इस डायलॉग की तरह, कि मैंने गाली दी तो उसने ली क्यों, वह बेचारा यह भी नहीं कह पाता कि माना कि मैंने रिश्वत ली, पर देनेवाले ने रिश्वत दी क्यों?
क्योंकि उसका सारा जोर तो यह साबित करने पर रहता है कि यह जो रिश्वत मैंने ली है, असल में रिश्वत नहीं है, बल्कि या तो मेरे द्वारा की जानेवाली समाजसेवा का चंदा है, या वह उधार है जो रिश्वत देनेवाले को मैंने बहुत पहले दिया था और बहुत कोशिश करने के बाद अब जाकर वापस मिला है, या मैंने ही उससे उधार लिया है जिसे यथासमय चुका दूंगा (इनमें से जो भी जांचकर्ताओं को ठीक लगे, उस पर सही का निशान लगा लें).
रिश्वत लेना व देना दोनों अपराध की श्रेणी में रखे गये हैं, हालांकि क्यों रखे गये हैं पता नहीं, पर जब रख ही दिये गये हैं तो दोनों को एक आंख से तो देखा जाये! आंकड़े बताते हैं कि इस तथाकथित अपराध में रंगे हाथ पकड़े जानेवाले 99 प्रतिशत लोग रिश्वत लेनेवाले ही होते हैं.
वैसे काफी दिनों तक मैं यह सोच कर भी हैरान होता रहा कि रिश्वत लेनेवालों का यह कैसा शौक है, जो वे हमेशा रंगे हाथ पकड़े जाते हैं? ‘मेहंदी लगाके रखना’ वाले गाने की तरह क्या जांचकर्ता उनसे यह कहते हैं कि हाथों पर रंग लगा कर रखना, ताकि हम आकर तुम्हें रंगे हाथ पकड़ सकें?
अथवा क्या रिश्वत लेने के बावजूद वे कुछ ऐसा काम करते हैं कि रहीम के शब्दों में यह कहा जा सके कि वे रहीम नर धन्य हैं पर उपकारी अंग, यानी क्या वे दूसरों को मेहंदी लगाने जैसा कोई पार्ट टाइम धंधा भी करते हैं, जिससे ‘बांटनवारे को लगै ज्यों मेहंदी को रंग’ की तरह उनके हाथ पर अपने आप रंग लग जाता है और वे रंगे हाथ पकड़े जाते हैं?
वह तो बाद में पता चला कि रिश्वत मांगनेवालों की पूर्व सूचना मिलने पर भ्रष्टाचार निरोधक विभाग नोटों पर एक पाउडर छिड़क देता है, जो रिश्वत में उन्हें लेनेवाले के हाथों पर लग जाता है. पाउडर लगे हाथों पर पानी डालने से वे लाल रंग के हो जाते हैं. यही रंगे हाथ पकड़े जाना है.
लेकिन यह तो सरासर विश्वासघात है. कोई आदमी आप पर विश्वास करके आपका ही काम करना चाहता है और आप उसे रंगे हाथ पकड़वा देते हैं! अरे, वह तो अपने को रंगे हाथ पकड़ने वालों के हाथों को रिश्वत के रंग से रंग कर किसी-न-किसी तरह छूट जायेगा, लेकिन आप अब अपना काम किसके हाथों करवाएंगे?