देश-दुनिया के साथ हमारा समाज भी तेजी से बदल रही है. अरस्तु ने कहा था कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है. हम समाज के साथ जीते भी हैं. इसके विपरीत इसका दूसरा पहलू यह भी है कि समाज का एकाकीपन हमारे अंदर नीरसता भी पैदा करता है. दुनिया भर में आ रहे बदलाव का असर भारत के जनजीवन पर भी पड़ता दिखाई दे रहा है.
आज हम विकासशील देश की अवस्था से निकलकर विकसित देश की ओर कदम बढ़ा रहे हैं. इस बदलाव के दौर में हमारा सामाजिक ताना-बाना भी कमजोर होता दिखाई दे रहा है, जहां परिवार की इज्जत के नाम पर बेटियों का कत्ल किया जा रहा है, तो कहीं वंशबेल बढ़ाने के लिए कोख में ही कन्या भ्रूण की हत्या कर दी जा रही है. यह हमारी सामाजिक विद्रूपता की सच्चाई है.
देश और समाज में हो रहे बदलाव के इस दौर में आज हम यह सोचने को मजबूर हैं कि क्या आज हमारा समाज टूटन का शिकार नहीं हो गया है? यह हमारा वही समाज है, जहां देश की महिलाओं को देवी के समान दर्जा दिया जाता रहा है. हमारे मनीषियों ने तो यहां तक कह दिया है कि जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता का वास होता है. आज उसी समाज में बेटियों की भ्रूण हत्या या फिर पैदा होने के बाद जीवन के एक खास मुकाम पर हत्या कर दिया जाना हमारे रिश्तों के बीच पनपते दरार को दर्शाता है. यह हमारे समाज की विडंबना ही है कि हमारे समाज में जन्मदाता और पालनकर्ता पिता ही अपनी बच्चियों के साथ अनैतिक संबंध बना कर रिश्तों को तार-तार कर रहा है. आज समय रहते हम भारतीयों को यह विचार लेना चाहिए कि हमें अपने सामाजिक ताने-बाने को अक्षुण्ण बनाये रखने के साथ समाज में बढ़ रहे रिश्तों की दरार को कैसे कम किया जा
सकता है?
डॉ अमरजीत कुमार, ई-मेल से