कृषि लोन व बीमा का मायाजाल

डॉ भरत झुनझुनवाला अर्थशास्त्री केंद्र सरकार ने फसल बीमा पर दी जानेवाली सब्सिडी को बढ़ा दिया है. अब किसानों द्वारा दिये गये प्रीमियम पर 40 से 75 प्रतिशत तथा ज्यादा जोखिम वाली फसलों पर 75 प्रतिशत सब्सिडी मिलेगी. पूर्व में सब्सिडी की मात्रा कम थी. सरकार की मंशा अच्छी है. प्राकृतिक कारणों से फसल बर्बाद […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 29, 2015 12:53 AM
डॉ भरत झुनझुनवाला
अर्थशास्त्री
केंद्र सरकार ने फसल बीमा पर दी जानेवाली सब्सिडी को बढ़ा दिया है. अब किसानों द्वारा दिये गये प्रीमियम पर 40 से 75 प्रतिशत तथा ज्यादा जोखिम वाली फसलों पर 75 प्रतिशत सब्सिडी मिलेगी. पूर्व में सब्सिडी की मात्रा कम थी. सरकार की मंशा अच्छी है. प्राकृतिक कारणों से फसल बर्बाद होने पर किसान को बीमा से मुआवजा मिल जायेगा और वह अपनी जीविका चला सकेगा.
परंतु इसी प्रकार की बीमा योजनाएं पूर्व में फेल हुई हैं, चूंकि मूल समस्या प्रीमियम की नहीं है, इंश्योरेंस कंपनियों की कार्य प्रणाली की है. वर्तमान योजना में सब्सिडी बढ़ाने से कंपनियों को फर्जीवाड़ा करने के अधिक प्रलोभन मिल जायेंगे और योजना विफल होगी.
बीमा की मुख्य समस्या कंपनी की नौकरशाही की है. मेरी आल्टो कार का मैंने कंप्रेहैंसिव इंश्योरेंश कराया था. एक छोटी दुर्घटना हो गयी. मैंने वर्कशाप से एस्टीमेट बनवाया और क्लेम दाखिल किया.
सर्वेयर साहब के आने के समय गाड़ी को लेकर वर्कशाप पहुंचा. सर्वेयर साहब द्वारा जांच करने के बाद गाड़ी की मरम्मत करायी. सर्वेयर साहब ने मुझसे लिखवा लिया कि जो क्लेम दिया जायेगा, मुझे स्वीकार होगा. इस पूरी प्रक्रिया में मुझे 10 दिन लग गये. इस अवधि में मुझे टैक्सी का खर्च वहन करना पड़ा. यदि इंश्योरेंश के झंझट में न पड़ता, तो तीन दिन में गाड़ी की मरम्मत हो जाती. इस मशक्कत के बाद 12 हजार के क्लेम पर मिला सिर्फ सात हजार रुपये.
किसान की स्थिति भी ऐसी ही है. मान लीजिए किसान ने 50 हजार की फसल का बीमा कराया. इस पर 10 प्रतिशत से कुल प्रीमियम 5,000 रुपये बैठा. इसमें 2,500 रुपये किसान ने दिये और 2,500 की किसान को सब्सिडी मिली. मान लीजिए ओले पड़े और आधी फसल बरबाद हो गयी. किसान ने 25,000 रुपये का क्लेम दाखिल किया. इस क्लेम को पाने के लिए उसे दस बार सर्वेयर तथा इंश्योरेंश कंपनी जाना पड़ा. जिसका खर्च लगभग 5,000 रुपये पड़ा. उसका कुल खर्च लगभग 7,500 रुपये हुआ. इसके बाद उसे क्लेम मिला 15,000 रुपये का. वह भी छह माह बाद. 15,000 रुपये का क्लेम लेने में उसके 7,500 रुपये लग गये. इस छोटी रकम को पाने के लिए उसके लिए इंश्योरेंश कराना घाटे का सौदा हो जाता है.
सरकार की चिंता किसानों द्वारा की जा रही आत्महत्याएं हैं. किसान बैंक से अथवा साहूकार से लोन लेते हैं. फसल बरबाद हो जाये तो किसान लोन का रीपेमेंट नहीं कर पाते हैं. फलस्वरूप किसान आत्महत्या को मजबूर हो जाते हैं. किसान को इस दर्द से बचाने के लिए सरकार ने बीमा के प्रीमियम पर दी जानेवाली सब्सिडी बढ़ा दी है. किसान यदि लोन न ले, तो बीमा के झंझट में उसे पड़ने की जरूरत नहीं है. अतः आत्महत्या से बचने के लिए दो रास्ते हैं. या तो किसान द्वारा लोन लेकर बीमा कराया जाये, या वह लोन ही न ले.
लोन लेने से खेती में आय नहीं बढ़ती है. किसान पूर्व में भी यूरिया खरीद कर खेतों में डालता था. लोन लेने के बाद भी यूरिया ही खरीद कर डालता है. लोन लेने का परिणाम प्रतिकूल होता है.
ब्याज अदा करने में उसकी आय घट जाती है. मान लीजिए पूर्व में किसान की आय 50,000 रुपये तथा यूरिया और सिंचाई में खर्च 20,000 रुपये था. आय तीस हजार रुपये थी. अब 25 हजार का लोन लिया. इस पर 2,500 रुपये का ब्याज दिया. लोन लेने के कारण बीमा कराना पड़ा. 1,250 रुपये प्रीमियम भी दिया. किसान पर 3,750 का अतिरिक्त खर्च पड़ा. उसकी आय 3,750 कम हो गयी. अतः लोन और बीमा किसान को चूसने के रास्ते हैं न कि उसे राहत देने के.
किसान की समस्या लोन या बीमा की नहीं, बल्कि कृषि उत्पादों के गिरते मूल्यों की है. महंगाई के अनुपात में सरकार द्वारा घोषित समर्थन मूल्य गिर रहे हैं. 2011 से 2015 के बीच धान के समर्थन मूल्य में 36 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी. इसी अवधि में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में 42 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. यानी कृषि उत्पादों के मूल्य महंगाई की तुलना में कम बढ़ रहे हैं. कृषि उत्पादों के मूल्य पिछड़ने के कारण खेती घाटे का सौदा होता जा रहा है.
फलस्वरूप किसान लोन लेने को मजबूर हो रहे हैं. लोन लेने के बाद वे ब्याज और बीमा के प्रीमियम भी अदा करते हैं. उनकी आय पहले ही कम थी. अब उसमें एक हिस्सा सरकारी बैंकों तथा बीमा कंपनियों के हिस्से चला जाता है. किसान गरीब होता जा रहा है. किसान को राहत पहुंचानी है, तो सरकार से कृषि मूल्यों में महंगाई से अधिक वृद्धि करनी चाहिए. तब किसान को लोन लेने और बीमा की जरूरत नहीं रह जायेगी.

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