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कांग्रेस की रुदाली

कहावत आम है कि खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिका दौरे की गूंज के बीच कांग्रेस की दशा बहुत-कुछ ऐसी ही है. प्रधानमंत्री की उम्मीद से लबरेज दौरों और मेजबान देशों के उत्साह का माहौल कांग्रेस को नागवार गुजरते हैं और इसी नागवारी के भाव के साथ वह खंभा नोचना शुरू कर […]

कहावत आम है कि खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिका दौरे की गूंज के बीच कांग्रेस की दशा बहुत-कुछ ऐसी ही है. प्रधानमंत्री की उम्मीद से लबरेज दौरों और मेजबान देशों के उत्साह का माहौल कांग्रेस को नागवार गुजरते हैं और इसी नागवारी के भाव के साथ वह खंभा नोचना शुरू कर देती है कि लगता ही नहीं कि यही वह पार्टी है, जो दशकों तक देश की नैया की खेवनहार रही है. इस बार भी कांग्रेस को शायद यह बात अच्छी नहीं लगी कि प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा से ‘डिजिटल इंडिया’ के महत्वाकांक्षी मिशन को अपनी उड़ान के लिए नये पंख लगे हैं और निवेश की आकर्षक मंजिल के रूप में भारत की छवि ज्यादा चमकदार हुई है. भारत ‘डिजिटल इंडिया’ मिशन या भारत-अमेरिका के मजबूत होते रिश्ते और इन रिश्तों के भीतर से विदेश के मोर्चे पर तय होते भारत के अनुकूल बननेवाले नये समीकरणों के बारे में सोच रहा है, लेकिन कांग्रेस प्रधानमंत्री के परिवारिक दायरों में ताक-झांक कर ऐसी टिप्पणियां कर रही है, जिसमें राजनीतिक सूझ कम, व्यक्तिगत विद्वेष ज्यादा है.

मसलन, कांग्रेस को इस यात्रा में सबसे महत्वपूर्ण बात यह लगी कि फेसबुक के मुखिया से बातचीत के वक्त मां का जिक्र आने पर वे रोये क्यों? कांग्रेस ने प्रधानमंत्री के आंसुओं को ड्रामा करार देते हुए कहा कि ‘उन्होंने अपने शपथ ग्रहण समारोह में मां को नहीं बुलाया, उन्हें एक जिम्मेदार बेटा बनना चाहिए.’ इस वरिष्ठ नेता ने मीडिया को यह बताना भी जरूरी समझा कि प्रधानमंत्री का यह कहना कि उनकी मां दूसरों के घरों में बर्तन मांजती थी, ‘बिल्कुल झूठ है, वे अपनी मां की बेइज्जती कर रहे हैं.’ अगर कोई एकदम ही व्यक्तिगत स्तर पर जाकर निंदापुराण में रस लेने लगे, तो उसे तैयार रहना चाहिए कि उसके साथ भी वैसा ही व्यवहार होगा. भाजपा ने इसका करारा जवाब देते हुए कांग्रेस पर काबिज ‘मां-बेटे’ को निशाना बनाया. भाजपा का पलटवार रहा कि सोनिया गांधी ‘अपने अयोग्य पुत्र के प्रति मोह’ के चलते कांग्रेस को ‘तबाह’ कर रही हैं, और राहुल गांधी भारतीय राजनीति के ‘बिगड़ैल बच्चे’ हैं. राहुल गांधी के भीतर ‘बिगड़ैल बच्चा’ देखने-दिखाने के लिए भाजपा ने तर्क दिया ‘अमेरिका में कहीं भूमिगत होने और किसी कथित सम्मेलन की एक धुंधली सी तस्वीर पोस्ट करने के बजाय, उनके लिए बेहतर होता कि वह सामने आकर बताते कि वह कहां हैं और क्या कर रहे हैं. हां, अगर वह कहीं बिना बात की छुट्टियां मना रहे हैं, तो बात अलग है.’

सरसरी तौर पर देखने से जान पड़ेगा कि यह दो राजनीतिक दलों की, व्यक्तिगत स्तर तक जाती, आपसी तकरार है, जिसमें दोनों एक-दूसरे पर जैसे-को-तैसा वाली शैली में प्रहार कर रहे हैं. लेकिन, इस तू-तू मैं-मैं के पीछे कुछ गहरे संकेत भी छिपे हैं. आजादी के बीते 68 सालों में कांग्रेस ने करीब पांच दशक तक देश पर शासन किया है और इन दशकों में पार्टी ने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की है कि देश नेहरू-गांधी परिवार की विरासत के रूप में जान पड़े. एक आकलन के मुताबिक बीते 23 सालों में केंद्र और राज्यों में चली करीब 450 परियोजनाओं, कार्यक्रमों अथवा संस्थाओं के नाम कांग्रेसी शासन में इंदिरा गांधी, राजीव गांधी या जवाहर लाल नेहरू के नाम पर रखे गये.

इस तथ्य की पहचान करते हुए सत्ता में आने के बाद एनडीए ने ठीक ही कहा था कि कुल 650 परियोजनाओं, योजनाओं और संस्थाओं का नामकरण नेहरू-गांधी परिवार के सदस्यों पर करने की रवायत की वह समीक्षा करेगी. परिवारवाद को सांस्थानिक तौर पर भारतीय राजनीति में प्रतिष्ठित करने की कांग्रेस की कोशिश का रंग मोदी सरकार के आने के बाद से उतरता जा रहा है. प्रधानमंत्री एक नये भारत का निर्माण करने की कोशिश कर रहे हैं और यह कोशिश सुभाषचंद्र बोस, सरदार पटेल तथा लाल बहादुर शास्त्री सरीखे उन नायकों को भी सामने लाकर की जा रही है, जिन्हें कांग्रेस ने अपनी पारिवारिक तिकड़ी के आगे कभी तरजीह नहीं दी. कांग्रेस का खिसियानी बिल्ली की तर्ज पर खंभा नोंचना दरअसल मोदी सरकार की इसी कोशिश का परिणाम जान पड़ता है. लगातार हाशिये पर जाती कांग्रेस इस हास्यास्पद स्थिति से जितनी जल्दी उबरे, उसके भविष्य के लिए उतना अच्छा होगा.

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