जबरन चंदा उगाही पर लगे लगाम
गणेशोत्सव के बीतने के बाद त्योहारों का ‘पीक सीजन’ शुरू हो चुका है़ इसके साथ ही आस्था के नाम पर चंदे का धंधा भी जोरों पर है़ मंजे हुए चंदेबाज अब सक्रिय गये हैं. चंदे के धंधेबाजों में कई प्रकार के अराजक तत्वों की घुसपैठ हमेशा से रही है. यूं तो त्योहारों की रौनक लोगों […]
गणेशोत्सव के बीतने के बाद त्योहारों का ‘पीक सीजन’ शुरू हो चुका है़ इसके साथ ही आस्था के नाम पर चंदे का धंधा भी जोरों पर है़ मंजे हुए चंदेबाज अब सक्रिय गये हैं. चंदे के धंधेबाजों में कई प्रकार के अराजक तत्वों की घुसपैठ हमेशा से रही है. यूं तो त्योहारों की रौनक लोगों के लिए खुशियों की सौगात लाती है.
वहीं, इन दिनों चंदा उगाहनेवाली टोलियों की दबंगई से माहौल गंदा हो जाता है.धर्म के नाम पर चंदा उगाहने वाले इन चंदाखोरों पर कानूनी शिकंजा क्यों नहीं कसा जा रहा, यह बात समझ से परे है़ इन दिनों घर-घर घूमती चंदाखोरों की टोली लोगों के लिए सरदर्द बन गयी है. चूंकि ऐसे आयोजनों के पीछे लोगों का समूह काम करता है और इसमें चमक-दमक के लिए भारी धनराशि का जुगाड़ करना होता है, जो जनसहयोग से ‘मैनेज’ होता है.
यहां जनसहयोग का मतलब होता है चंदा. शर्ट की आस्तीन चढ़ाये चार-छह मुस्टंडे लोगों के मकान-दुकान में कभी भी पहुंच जाते हैं और अपने मन से चंदे की रसीद काट देते हैं. टोकने पर वे लड़ने-भिड़ने पर उतारू हो जाते हैं. पर्व-त्योहार हमारी संस्कृति का अहम हिस्सा हैं. ये हमारे जीवन में खुशियां लेकर आते हैं. इन्हें उत्साह से मनाना भी चाहिए, लेकिन हमारी संस्कृति यह नहीं कहती कि किसी से जबरन पैसा वसूलो़ राज्य के लगभग हर हिस्से में ऐसी घटनाएं हो रही हैं. कहीं कम तो कहीं ज्यादा, पर विरोध कोई नहीं कर पाता.
विरोध करे कौन? अगर किसी ने विरोध किया, तो आस्था का सवाल उठा दिया जाता है़ राज्य के मुखिया और पुलिस प्रमुख से मेरा अाग्रह है कि वे चंदा के नाम पर अपनी दुकानदारी चलानेवालों पर लगाम लगाने का प्रयास करें. धार्मिक कार्यों के लिए चंदा जरूरी तो है, लेकिन दबंगई से नहीं.
– रवींद्र सिंह, मोरहाबादी, रांची