नेपाल-भारत संबंध

नेपाल में गत 20 सितंबर को नया संविधान मंजूर होने के बाद से जारी आंतरिक राजनीतिक अस्थिरता का असर भारत के साथ उसके संबंधों पर भी पड़ा है. नेपाल की तीन प्रमुख पार्टियों और संविधान का समर्थन कर रहे अन्य समूहों का आरोप है कि भारत ‘बड़ा भाई’ बन कर कुछ संवैधानिक प्रावधानों को बदलने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 6, 2015 12:17 AM
नेपाल में गत 20 सितंबर को नया संविधान मंजूर होने के बाद से जारी आंतरिक राजनीतिक अस्थिरता का असर भारत के साथ उसके संबंधों पर भी पड़ा है. नेपाल की तीन प्रमुख पार्टियों और संविधान का समर्थन कर रहे अन्य समूहों का आरोप है कि भारत ‘बड़ा भाई’ बन कर कुछ संवैधानिक प्रावधानों को बदलने का दबाव बना रहा है.
दूसरी तरफ, संविधान में अपने हितों की अनदेखी को लेकर आंदोलनरत मधेसी संगठन भारतीय समर्थन की आस लगाये बैठे हैं. उनके आंदोलन के चलते भारत से आवश्यक वस्तुओं की आपूर्त्ति प्रभावित हो रही थी. नेपाल ने इसे ‘आर्थिक नाकेबंदी’ बता कर संयुक्त राष्ट्र से हस्तक्षेप की गुहार लगायी है और भारत को चेतावनी दी है कि मजबूरन उसे चीन समेत अन्य देशों से मदद लेनी पड़ सकती है. हालांकि, भारत ने इन आरोपों को बेबुनियाद बताया है.
सरकार के प्रयास से सीमा पर वाहनों की आवाजाही सामान्य हो रही है, लेकिन इस पूरे प्रकरण के चलते दोनों देशों के प्रगाढ़ संबंधों में आयी दरार को पाटने में समय लग सकता है. जानकारों का कहना है कि यह स्थिति भारत सरकार की कूटनीतिक और प्रशासनिक विफलता का उदाहरण है.
भारत और नेपाल के बीच परस्पर आर्थिक एवं सांस्कृतिक संबंध दोनों के लिए महत्वपूर्ण हैं. भारत ने कई बार नेपाल के राजनीतिक संकटों को सुलझाने में सकारात्मक भूमिका निभायी है. इसलिए सोचना जरूरी है कि पिछले कुछ हफ्तों में ऐसा क्या और क्यों हुआ, जिससे भारत के कथित रुख की नेपाल में आलोचना हो रही है.
अगर नेपाल में भारतीय हितों को थोड़ा भी नुकसान होता है, तो चीन और पाकिस्तान इसका लाभ उठाने की हर मुमकिन कोशिश करेंगे. नेपाल में गृहयुद्ध समाप्त कर माओवादियों को मुख्यधारा में लाने तथा नेपाल को संवैधानिक लोकतंत्र की राह पर अग्रसर करने में भारत के योगदान के कारण उम्मीद बनी थी कि दक्षिण एशिया में भारत के कूटनीतिक, सामरिक और आर्थिक प्रभाव का विस्तार होगा.
इस कड़ी में कुछ उम्मीदें नेपाल से भी थीं. परंतु, परस्पर विश्वास के माहौल पर ग्रहण लगता दिख रहा है. इसलिए जरूरी है कि नेपाल की शिकायतों को भारत सरकार गंभीरता से सुने और भरोसे की बहाली के लिए समुचित प्रयास करे.
आपसी विवादों का अगर अंतरराष्ट्रीयकरण हुआ, तो यह भारत के व्यापक हित में नहीं होगा. आशा है कि भारतीय राजनेता और राजनयिक नेपाल की सरकार और विभिन्न पार्टियों के साथ खुले मन से बातचीत कर तनातनी के माहौल को समाप्त करने के लिए प्रयासरत होंगे.

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