क्षमा शर्मा
वरिष्ठ पत्रकार
मेरी सोसाइटी में आम के तीन पेड़ हैं. बेल के तीन, जामुन के दो, चकोतरे के दो, संतरे का एक, मौसमी का एक और शहतूत के दो पेड़ हैं. दिल्ली जैसे शहर में किसी सोसाइटी में फलों के इतने पेड़ होना किसी लग्जरी से कम नहीं. वरना हाल के दशकों में शहरीकरण ने तो पेड़ों की पहचान को भी भुला दिया है.
इतवार की बात है. सवेरे के दस बजे होंगे. बाजार से लौट रही थी. देखा कि मौसमी के पेड़ के नीचे खड़ा माली उस पर दनादन डंडे बरसा रहा था. पत्ते गिर रहे थे, साथ में फल भी. फलों को माली बोरे में रखता जा रहा था. न जाने मौसमी के पेड़ को कितनी चोट लग रही होगी, मगर उसकी सिसकियां हम तक नहीं पहुंचतीं. फलों के पेड़ों को खूब पिटाई सहनी पड़ती है, लेकिन उनके प्रति हिंसा करना अपराध की श्रेणी में नहीं आता. वे अपने प्रति हुए किसी अपराध की शिकायत भी नहीं कर सकते. संस्कृत कवि भट्ट भल्लट ने पेड़ों की ऐसी ही दुर्दशा देख कर एक श्लोक लिखा था. जिसका भावार्थ है- चौरास्ते पर क्यों हो, घनी छयावाले क्यों हो, छाया से युक्त हुए तो फलवाले क्यों हो… हे मित्र अच्छे वृक्ष, अपने ही कर्मों से अब डालियों का तोड़ा जाना सहो.
शोध बताते हैं कि जब कोई लकड़हारा पेड़ की तरफ कुल्हाड़ी लेकर बढ़ता है, तो पेड़ थर-थर कांपता है. यही नहीं, वह अपने आसपास वाले पेड़ों को खतरे का संदेश भी देता है. पेड़ों में जान होती है, हम जानते हैं, मगर इसकी परवाह नहीं करते. इसलिए कभी उनके प्रति हमारा व्यवहार भी नहीं बदलता.
बचपन याद आता है. स्कूल के पास इमली, आम, जामुन के पेड़ थे. मौसम में जब कुछ फल नीचे गिर जाते थे, तो बच्चों में उन्हें बटोरने की होड़ लगी रहती थी. और जिस दिन कोई फल नीचे गिरा नहीं मिलता था, बच्चे पत्थर मार कर फल तोड़ने की कोशिश करते थे. जिन पेड़ों पर फल नहीं लगते, उन पर कोई पत्थर नहीं फेंकता, न ही फल तोड़ने के लिए कोई उन पर लाठियां बरसाता है. जो कांटेदार पेड़-पौधे होते हैं, उनसे सब बच कर चलते हैं. आखिर ऐसा क्यों है? मनुष्य का यह विचित्र स्वभाव है- जो उसे नुकसान पहुंचाता है, वह उससे डरता है. जो उसकी मदद करता है, शालीनता और सभ्यता का व्यवहार करता है, वह उसकी जरा सी भी परवाह नहीं करता.
शादी या किसी उत्सव पर अकसर कोई न कोई रिश्तेदार ऐसा निकलता है, जो बात-बात पर रूठता है. हर काम में खोट निकालता है. खुशी के मौके पर कोई विघ्न न पड़ जाये, इसलिए सब उसे खुश करने की कोशिश में लगे रहते हैं. जबकि जो रिश्तेदार सीधे-सादे होते हैं, कोई उनकी परवाह नहीं करता. क्योंकि मान लिया जाता है कि वे तो बहुत अच्छे हैं. किसी बात का बुरा नहीं मानते.
इसीलिए कहा गया होगा कि वक्र चंद्र को राहु भी नहीं ग्रसता है और टेढ़े तनेवाले पेड़ पर लकड़हारे की कुल्हाड़ी भी आसानी से नहीं चलती. इसी तरह, अच्छे लोग फलदार पेड़ की तरह होते हैं. सब उनका फायदा उठा कर उनकी आलोचना करते हैं, उनका मजाक उड़ाते हैं. लेकिन, बुरे लोगों से डर कर दाएं-बाएं हो लेते हैं.