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भारत-जर्मनी रिश्तों में नया आयाम

महेश झा संपादक, डॉयचे वेले, हिंदी पिछले दिनों एक खबर आयी कि उत्तर प्रदेश में चपरासी के 368 पदों के लिए 23 लाख आवेदन आये. 16,000 रुपये महीने की नौकरी के लिए आवेदन देनेवालों में डेढ़ लाख ग्रेजुएट और 255 डॉक्टरेट भी थे. यह भारत की समस्या को दिखाता है. लोगों के पास डिग्री है, […]

महेश झा
संपादक, डॉयचे वेले, हिंदी
पिछले दिनों एक खबर आयी कि उत्तर प्रदेश में चपरासी के 368 पदों के लिए 23 लाख आवेदन आये. 16,000 रुपये महीने की नौकरी के लिए आवेदन देनेवालों में डेढ़ लाख ग्रेजुएट और 255 डॉक्टरेट भी थे. यह भारत की समस्या को दिखाता है. लोगों के पास डिग्री है, लेकिन नौकरी लायक कुशलता नहीं है. भारत की आबादी का एक बड़ा हिस्सा युवा है, जो रोजगार चाहता है और अच्छी खुशहाल जिंदगी भी चाहता है.
यही भारत की संभावना भी है. व्यापक विकास के जरिये लोगों को अच्छी जिंदगी देने की संभावना. भारत को विकास के लिए तकनीक चाहिए और जर्मनी को कुशल कामगार और बड़ा बाजार. यहां जर्मनी की क्षमता और भारत की जरूरत एक-दूसरे के पूरक हैं.
जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल ने अपने भारत दौरे पर जर्मनी और भारत की जरूरतों में सामंजस्य बिठाने की कोशिश की है. भारत के साथ अच्छे रिश्तों में जर्मनी की दिलचस्पी इस बात से स्पष्ट है कि मर्केल अपने साथ चार कैबिनेट मंत्रियों और विभिन्न विभागों के 9 राज्य मंत्रियों को ले गयी थीं. जर्मन भारत द्विपक्षीय शिखर वार्ता में यह अब तक का सबसे बड़ा सरकारी प्रतिनिधिमंडल था.
जर्मनी ने इस फॉर्मेट में सबसे पहले फ्रांस के साथ बातचीत शुरू की थी, जिसके नतीजे दोनों देशों के बीच सदियों की दुश्मनी को भुलाने और रिश्तों की नयी मिसाल के रूप में सामने आये हैं. इस बीच जर्मनी इजरायल, रूस, चीन और ब्राजील के साथ इस फॉर्मेट में बातचीत कर रहा है, जिसका मकसद सरकारी बातचीत को विदेश मंत्रालय पर न छोड़ कर व्यापक बनाना और विभिन्न विभागों के जिम्मेवार मंत्रियों के बीच आपसी रिश्ता बनाना है. तभी समस्याओं पर बात हो सकती है, और उनका फौरी समाधान निकल सकता है.
भारत और जर्मनी के बीच कारोबार की समस्याएं कम नहीं हैं. जर्मन कंपनियां अत्यधिक लालफीताशाही, लाइसेंस के जंगल, कानूनी असुरक्षा और भ्रष्टाचार की शिकायत करती रही हैं. हालांकि, मुनाफे के हिसाब से भारत में सक्रिय जर्मन कंपनियों का अनुभव अच्छा रहा है, लेकिन भारत की छवि नये निवेशकों को रोकती रही है. चाहे धार्मिक असहिष्णुता और अकसर होनेवाले विवाद हों या महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार, जर्मनी में सुरक्षा के माहौल में रहनेवाला निवेशक भारत में निवेश करने से पहले कई बार सोचता है.
दूसरी ओर भारत में अधिकारियों का अहंकार भी निवेशकों को निराश करता रहा है, जो सोचते हैं कि भारत के बड़ा बाजार की वजह से विदेशी कंपनियों का भारत आना मजबूरी है. भारत की संभावना का पता चीन के साथ उसके कारोबार से चलता है, जो भारत के 16 अरब यूरो के मुकाबले 150 अरब यूरो है.
भारत और जर्मनी के व्यापारिक रिश्तों में मानसिकता भी एक समस्या रही है. सवा अरब आबादी वाले भारत की संभावनाएं और जरूरतें 8 करोड़ आबादी वाले जर्मनी से अलग हैं. उसे बराबरी के तराजू पर तौलने के बदले अपनी-अपनी जरूरतों के तराजू पर तौलना होगा. जर्मन कंपनियों की एक शिकायत कुशल कामगारों की कमी रही है, जिसका सामना भारत में सक्रिय कंपनियां खुद व्यावसायिक प्रशिक्षण देकर कर रही हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना सही है कि भारत और जर्मनी स्वाभाविक पार्टनर हैं. लेकिन इस पार्टनरशिप के लिए दोनों ही देशों में एक-दूसरे के लिए समझ बढ़ाने की जरूरत है.
इसकी शुरुआत स्कूली छात्रों के आदान-प्रदान से लेकर कॉलेज और विश्वविद्यालयों के बीच गहन आदान-प्रदान से हो सकती है. हालांकि, बीच-बीच में कुछ ऐसी पहलें हुई भी हैं. मसलन, केंद्रीय विद्यालयों में जर्मन भाषा की पढ़ाई. इसी तरह विश्वविद्यालयों में ऐसी संरचना बनानी चाहिए, जो दोनों देशों के छात्रों को छह महीने या साल भर के लिए एक-दूसरे के यहां रहने और पढ़ने की सुविधा दें. यही छात्र आगे चल कर भविष्य के सहयोग का मजबूत आधार बनेंगे.
जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल के इस दौरे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने अभूतपूर्व लचीलापन दिखाया है और निवेश के फैसलों को फास्ट ट्रैक करने की संधि इसका सबूत है. इसके अलावा जिन अन्य 17 समझौतों पर भारत और जर्मनी ने हस्ताक्षर किये हैं, वे पारस्परिक संबंधों में अहम भूमिका निभायेंगे. जर्मनी के व्यावसायिक प्रशिक्षण का इसके सैद्धांतिक और व्यावहारिक पहलू के कारण पूरी दुनिया में नाम है.
इसके तहत किशोर किसी कंपनी में काम करते हुए व्यावहारिक प्रशिक्षण पाते हैं, जबकि सप्ताह में एक दिन स्किल सेंटर में सैद्धांतिक ज्ञान प्राप्त करते हैं. कोर्स में बिजनेस मैनेजमेंट के हिस्से शामिल होने के कारण बहुत से ट्रेनी खुद अपना बिजनेस शुरू करने की हिम्मत भी जुटा पाते हैं.
स्किल डेवलपमेंट के अलावा आपदा प्रबंधन, कृषि अध्ययन में सहयोग, मैन्यूफैक्चरिंग में सहयोग और इंडो-जर्मन सौर ऊर्जा पार्टनरशिप महत्वपूर्ण है. जर्मनी ने खतरों के कारण परमाणु ऊर्जा से विदा लेने का फैसला किया है और अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए अक्षय ऊर्जा स्रोतों पर ध्यान दे रहा है. उसके पास सौर ऊर्जा की तकनीकी के अलावा पिछले वर्षों में इसके व्यापक इस्तेमाल का अनुभव भी है. भारत के पास सूरज की गरमी है. मकान बनाने में सौर ऊर्जा और अन्य ऊर्जा तकनीकों के इस्तेमाल से गरमी और ठंड जैसी समस्याओं से भी निबटा जा सकेगा.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इस साल अप्रैल में हनोवर दौरा जर्मनी और भारत के संबंधों के एक नये दौर की शुरुआत थी. हालांकि, जर्मन पक्ष में कुछ झिझक थी. लेकिन इस बीच समस्याओं पर खुल कर बात हो रही है और उनके हल निकाले जा रहे हैं.
पहली बार भारत-जर्मन संबंधों में उत्साह का माहौल है. चांसलर मर्केल ने प्रधानमंत्री मोदी के साथ इसके लिए जो आधार बनाया है, उसका हर स्तर पर इस्तेमाल किया जाना चाहिए. विदेशी यात्राओं की आलोचना के बदले उसे कुछ नया सीखने का मौका समझा जाना चाहिए.

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