दर्शक हैं आप, खेल का मजा लें
अनुज कुमार सिन्हा वरिष्ठ संपादक प्रभात खबर भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच कटक में खेला गया दूसरा टी-20 मैच ओड़िशा पर एक दाग छोड़ गया. भारत के खराब प्रदर्शन के बाद दर्शकों ने मैदान पर जिस तरीके से पानी के बोतल फेंके, उत्पात मचाया, वह शर्मनाक था. दो बार मैच को रोकना पड़ा. एक […]
अनुज कुमार सिन्हा
वरिष्ठ संपादक
प्रभात खबर
भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच कटक में खेला गया दूसरा टी-20 मैच ओड़िशा पर एक दाग छोड़ गया. भारत के खराब प्रदर्शन के बाद दर्शकों ने मैदान पर जिस तरीके से पानी के बोतल फेंके, उत्पात मचाया, वह शर्मनाक था. दो बार मैच को रोकना पड़ा. एक बार तो लगा कि आगे का मैच नहीं होगा और बिना खेले ही दक्षिण अफ्रीका को विजेता घोषित कर दिया जायेगा. अगर ऐसा होता तो और भी शर्मनाक होता. खैर, किसी तरह मैच पूरा हुआ.
भारत बुरी तरह हारा. दरअसल, दर्शकों में अब धैर्य नहीं रह गया है. वे चाहते हैं कि भारत हर मैच जीते. यह संभव नहीं है. यह खेल है, जहां हार-जीत दोनों होती है. कोई ऐसी टीम नहीं है, जो हर मैच जीते ही. कोई ऐसा खिलाड़ी नहीं है, जो लगातार बेहतर खेले ही. संभव हो कि टीम इंडिया समर्थक दर्शक इसलिए भड़के, क्योंकि यह शर्मनाक हार थी. सौ रन भी टीम इंडिया नहीं बना सकी थी. हारते लेकिन लड़ कर, टक्कर देकर.
माना कि भारतीय टीम का प्रदर्शन खराब था, लेकिन कोई भी खिलाड़ी खराब नहीं खेलना चाहता. हारना नहीं चाहता. लेकिन यह खेल है. अगर हार गये तो क्या मैदान पर पत्थर, बोतल फेंकेंगे. खिलाड़ियों को मारेंगे. उस खिलाड़ी को जिसे आप जीतने पर सिर पर बिठाते हैं.
यह उचित नहीं है. खिलाड़ियों को सम्मान देना होगा. तभी ये खिलाड़ी अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन मैदान पर दे सकते हैं. दर्शकों को अपने व्यवहार में बदलाव लाना होगा और बोर्ड को भी कड़ा होना होगा. कटक में चंद दर्शकों ने जो उत्पात मचाया, उसकी कीमत सभी को चुकानी पड़ी. स्टैंड को खाली कराया गया. जो मैच देखना चाहते थे, उन्हें भी निकाल दिया गया. अब तो कटक में भविष्य में मैच नहीं कराने की भी मांग हो रही है.
अगर ऐसा होता है तो यह क्रिकेट प्रेमियों के लिए एक झटका ही होगा. यह कोई पहली घटना नहीं है. भारत में या दुनिया में ऐसी घटनाएं पहले भी घटी हैं, लेकिन ऐसी घटनाएं अब बंद होनी चाहिए. याद कीजिए 1996 के वर्ल्ड कप के सेमीफाइनल का. कोलकाता में भारत और श्रीलंका के बीच मैच चल रहा था. श्रीलंका ने 50 ओवर में 251 रन बनाये थे.
भारत ने जब 120 रन पर आठ विकेट खो दिया और हार दिखने लगी, तो दर्शकों ने उत्पात मचाया. बोतल फेंका, कागजों में आग लगा दी. रिजल्ट यह निकला कि मैच वहीं पर खत्म कर दिया गया. पूरी दुनिया में भारत की बदनामी हुई. कई साल तक वहां मैच नहीं हुए. दर्शकों को उम्मीद थी, लेकिन अगर टीम हार गयी तो क्या उत्पात मचा देंगे. इसी प्रकार जब बांग्लादेश से हार कर टीम इंडिया वर्ल्ड कप से बाहर हो गयी थी, तो धौनी के घर पर पथराव किया गया था. उधर रैना के घर पर भी पथराव किया गया था.
अगर कोई खिलाड़ी किसी मैच में रन नहीं बनाये और उसके घरों पर हमले होने लगे, तो कौन खिलाड़ी क्रिकेट खेलना चाहेगा. ऐसे उत्पात से खेल बदनाम होता है.
भारतीय खेल के इतिहास में कई और घटनाएं हो चुकी हैं. जमशेदपुर में वनडे मैच में लोहे का नुकीला हिस्सा इंग्लैंड के खिलाड़ियों पर फेंका गया था. कोलकाता में ही 1982-83 में गावस्कर के खराब खेलने पर उनकी पत्नी मार्शनील गावस्कर पर फल फेंका गया था. दर्शकों को अपनी भावना पर काबू पाना चाहिए और खेल को खेल की तरह लेना चाहिए.
अगर क्रिकेट बोर्ड तकनीक पर गौर करे, थोड़ी चौकसी बरते, तो ऐसी घटनाएं नहीं घटेंगी. पानी का बोतल ले जाया जाये या नहीं, इस पर विवाद होता है. अगर स्टेडियम के अंदर ही पीने का पानी मिल जाये, तो बोतल ले जाना नहीं पड़ेगा. अब तो कैमरे का जमाना है. हर स्टैंड पर कैमरे से पूरी नजर. उत्पात करनेवाले दर्शक की पहचान तुरंत हो जायेगी. फिर उसी पर कार्रवाई हो. जाली लगाना एक और रास्ता है लेकिन ऐसी बंदिशों से खेल का मजा ही खत्म हो जायेगा.
बेहतर तो यह होगा कि दर्शक संयम बरतें और अपने व्यवहार में बदलाव लायें. उन्हें यह पता होना चाहिए कि उनके ऐसे व्यवहार से अगर खेल को रोक दिया जाता है, प्रतिबंध लगाया जाता है, तो इससे उन्हीं का ही नुकसान होगा.
खेल में उन्माद नहीं आना चाहिए. यह मैच भारत-दक्षिण अफ्रीका के बीच था. अगर यह मैच भारत-पाकिस्तान के बीच होता तो क्या होता? वहां तो और ज्यादा भावनाएं जुड़ी होती हैं.
अगर ऐसी घटनाएं घटती रहीं और किसी विदेशी खिलाड़ी पर किसी दर्शक ने हमला कर दिया, तो कौन भारत में खेलना चाहेगा. फिर भारत में क्रिकेट का वही हाल हो जायेगा, जो पाकिस्तान में है. कोई देश वहां जाना ही नहीं चाहता. इसलिए खेल का आनंद लेने के लिए यह जरूरी है कि दर्शक अनुशासित रहें. इसी में क्रिकेट का भला है.