सुविधा की राजनीति

जैसे विचारों को तंग लिबास पसंद नहीं होते, उसी तरह गीत-संगीत को भी किसी सरहद के भीतर नहीं बांधा जा सकता. आज के इंटरनेटी जमाने में तो और भी नहीं, क्योंकि कोई किताब हो या फिर गीत-संगीत की कोई प्रस्तुति, इंटरनेट पर आते ही एकबारगी सारे संसार को उपलब्ध हो जाती है. शिवसेना को आज […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 9, 2015 6:51 AM

जैसे विचारों को तंग लिबास पसंद नहीं होते, उसी तरह गीत-संगीत को भी किसी सरहद के भीतर नहीं बांधा जा सकता. आज के इंटरनेटी जमाने में तो और भी नहीं, क्योंकि कोई किताब हो या फिर गीत-संगीत की कोई प्रस्तुति, इंटरनेट पर आते ही एकबारगी सारे संसार को उपलब्ध हो जाती है.

शिवसेना को आज की इस सच्चाई से कोई मतलब नहीं है. गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी देकर पहले उसने मशहूर गायक गुलाम अली का मुंबई का कार्यक्रम रद्द करने पर मजबूर किया, फिर पुणे का. शिवसेना को गुलाम अली के भीतर सुरीला कंठ नहीं दिखता, सिर्फ उनका पाकिस्तानी नागरिक होना दिखता है और शिवसेना का राजनीतिक व्याकरण कहता है कि हर पाकिस्तानी नागरिक भारत का शत्रु है.

यह सोच तो बर्बर कहे जानेवाले पुराने जमाने के सोच से भी नहीं मेल खाती. पुराने जमाने को चाहे जितना कोसा जाये, लेकिन उसमें भी कला और विचार को लेकर एक विशेष विवेक मौजूद था. पुराने जमाने में पराये देश ही नहीं, शत्रु-देश के भी सैनिकों के साथ जो बरताव किया जाता था, वैसा ही बरताव विचारकों और कलावंतों के साथ नहीं किया जाता था. पुराना जमाने में भी यह मान्यता थी कि साहित्य-संगीत, ज्ञान-विज्ञान किसी एक देश, धर्म या भाषा में बंधे नहीं होते, बल्कि समूची दुनिया की थाती होते हैं.

संस्कृति को लेकर शिवसेना की राजनीति न तो नये जमाने की इंटरनेटी वास्तविकता के अनुकूल है, न ही पुराने जमाने के विवेक के. वह खालिस सुविधा की राजनीति है, जिसका उद्देश्य नफरत की भावनाओं को निरंतर भड़का कर लगातार लोगों के मन-मानस में अपनी पहचान दर्ज करना और लोगों को अपनी तरफ गोलबंद करना है. शिवसेना अपने नाम के अनुरूप सैन्यकर्म और संस्कृति-कर्म में फर्क नहीं करती और ठीक इसी कारण सैन्य-कार्रवाइयों का जवाब वह संस्कृति के मैदान में देने की हामी रही है. शिवसेना का तर्क है कि सीमा पर पाकिस्तान गोलीबारी कर रहा है, तो हम किसी पाकिस्तानी कलाकार का स्वागत क्यों करें. और इस तर्क की ओट से उसने यह सच्चाई ढंक दी कि गुलाम अली तो हर संगीतप्रेमी के दिल में बसते हैं.

गुलाम अली अगर दिल में ना तो बसते, तो धर्मनगरी काशी में, जो प्रधानमंत्री मोदी का निर्वाचन-क्षेत्र भी है, इस साल की जनवरी में गुलाम अली संकटमोचन मंदिर में अपना प्रोग्राम नहीं करते. वहां उन्होंने भजन गाया था. शिवसेना भारतीय लोकतंत्र और संस्कृति के विपरीत पड़नेवाली राजनीति से जितनी जल्दी बाज आये, देश के लिए उतना ही अच्छा होगा.

Next Article

Exit mobile version