भारत-रूस संबंध : नये दौर में पुराने रिश्ते की मजबूती!
।। हरिवंश ।। मास्को : रूस से 65 साल पहले भारत के गहरे रिश्ते की शुरुआत हुई. राजनयिक स्तर पर 17.04.1974 को. मित्रता, सहयोग का नया दौर. ‘हिंदी, रूसी, भाई–भाई‘का मुहावरा, महज प्रतीक नहीं था. गुजरे 20-25 वर्षो में रूस ने भी अनेक उतार–चढ़ाव देखे हैं. सोवियत रूस, बिखरा. बोरिस येल्सतीन युग में रूस खुद […]
।। हरिवंश ।।
मास्को : रूस से 65 साल पहले भारत के गहरे रिश्ते की शुरुआत हुई. राजनयिक स्तर पर 17.04.1974 को. मित्रता, सहयोग का नया दौर. ‘हिंदी, रूसी, भाई–भाई‘का मुहावरा, महज प्रतीक नहीं था. गुजरे 20-25 वर्षो में रूस ने भी अनेक उतार–चढ़ाव देखे हैं. सोवियत रूस, बिखरा. बोरिस येल्सतीन युग में रूस खुद कई गंभीर सवालों से, चुनौतियों से घिरा रहा. लोकतंत्र के प्रयोग और बाजारवाद के साथ नये प्रयोग के परिणाम भी, ‘90 के दशक में रूस ने झेला. अब रूस की जनता उस दौर का दोहराव नहीं चाहती. वह सुरक्षित और स्थायी सरकार चाहती है. बेहतर, समृद्ध और सुखी भविष्य भी.
फिलहाल ब्लादिमीर पुतिन, भारत के लिए खास महत्व रखते हैं. वर्ष 2000 में ही भारत से विशेष रिश्ते के लिए उन्होंने पहल की. रूस पहला देश था, जिसने 11 वीं शिखर वार्ता के दौरान, 2010 में भारत के साथ‘स्ट्रेटिजिक पार्टनरशिप’(रणनीतिक साझेदारी) की. भारत –रूस ने अपने रिश्ते को एक नया मुकाम दिया, ‘स्पेशल एंड प्रिविलेज्ड स्ट्रेटिजिक पार्टनरशिप’(विशेष व खास रणनीतिक साझेदारी) दर्जा देकर. दुनिया के तमाम देशों से भारत के संबंध हैं, पर इस बीच भी यह खास रिश्ता, रूस–भारत के बीच ही है. इस विशेष दर्जा या संबंध का यही आशय था.
दोनों देश, धार्मिक उन्माद के अनुभव, आतंकवाद पाबंदी, अवैध नशा दवाओं की तस्करी, अफगान–पाक सीमा के अनुभव साझा करते ही रहे हैं. दुनिया के अनेक सवालों पर भी एक तरह सोचते हैं. मसलन, ईरान की परमाणु संयंत्र की योजना, अरब देशों के हालात वगैरह पर , जिन्हें सेना के बदले राजनयिक प्रयासों से बदलने की रणनीति पर दोनों भरोसा करते हैं. पर सबसे गहरा रिश्ता हथियारों के बाजार का है. आज भी भारतीय रक्षा द्वारा प्रयोग होनेवाली इक्विपेमेंट (हथियार), 60 फीसदी रूस मूल के ही हैं. भारत–रूस में कई महत्वपूर्ण रक्षा सौदों में आपसी सहयोग चल रहा है. मसलन, देश में ही विकसित–निर्मित पहली परमाणविक पनडुब्बी अरिहंत परियोजना, लड़ाकू विमानों का पांचवां विकसित रूप (फिफ्थ जेनरेशन फाइटर एयरक्राफ्ट) विकसित करने का संयुक्त काम. दक्षिण भारत के कोड़ानकुलम में दो परमाणु बिजली संयंत्र लगाने का काम रूस ही कर रहा है. इसी जगह दो और परमाणु बिजली परियोजनाएं लगाने पर बातचीत चल रही है. अंतरिक्ष–उपग्रह, ऊर्जा समेत अनेक क्षेत्रों में आपसी सहयोग की बात. भारत में ऊर्जा की कमी है, रूस ऊर्जा संपन्न देश है. इस तरह अनेक क्षेत्रों में दोनों देशों के बीच पुराने, गहरे और भरोसेमंद रिश्ते हैं.
पुराने भरोसेमंद मित्र रूस के साथ तैयारी है कि भारत अनेक अन्य मुद्दों पर बात करेगा, पर खासतौर से ऊर्जा पर बात होगी. भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह‘बाइलेट्रल एनुअल सम्मिट’(द्विपक्षीय वार्षिक सम्मेलन) के अवसर पर रूस पहुंचे हैं. शिखर वार्ता में दोनों देशों के हित के कई सवालों पर परामर्श व बातचीत होगी. इस माह के आरंभ में भारत के विदेश व वाणिज्य मंत्री रूस आ चुके हैं. रूस के उप प्रधानमंत्री इस बातचीत में हिस्सा ले चुके हैं. भारत–रूस अंतर सरकार आयोग की बैठक में आर्थिक, वैज्ञानिक सांस्कृतिक सहयोग पर चर्चा हुई. मॉस्को में हुई ये बैठक प्रधानमंत्री के शिखर वार्ता की तैयारी की पृष्ठभूमि में ही हुई.
* ऊर्जा, खास मुद्दा है!(भारत–रूस संबंध-2)
ऊर्जा के बिना भविष्य नहीं और भारत में ऊर्जा संकट (एनर्जी डेफिसिट देश) है. उधर, रूस, ऊर्जा संपन्न (एनर्जी सरप्लस) मुल्क है. स्वाभाविक है, भारत के बेहतर भविष्य के लिए रूस से प्रगाढ़ संबंध जरूरी है.
पिछले माह एशिया–पेसिफिक सम्मिट में रूस के प्रधानमंत्री दिमित्री मेदेव ने भारत–रूस संबंध के सकारात्मक पहलू का उल्लेख किया. खासतौर से आणविक बिजली उत्पादन सहयोग का. उन्होंने कुडनकुलम–एक (दक्षिण भारत), पहले फेज का नाम लिया. उसकी सफलता की चर्चा की. भारत के तमिनलाडु में रूस के सहयोग से तैयार यह परमाणु बिजली उत्पादन परियोजना कुछ ही सप्ताह में फंक्शनल या ऑपरेशनल (काम करने लगेगी) हो जायेगी. इससे एक हजार मेगावाट बिजली उत्पादित होगी. ऊर्जा संकट या कमी झेल रहे इस मुल्क के लिए यह एक उल्लेखनीय उपलब्धि होगी. छह महीने बाद ही कुडनकुलम का दूसरा फेज काम करने लगेगा (क्रिटिकल स्टेज में).
भारत के ऊर्जा क्षेत्र में रूस की निर्णायक भूमिका हो सकती है. बहस, प्रतिरोध, आंदोलन और विरोध के बावजूद परमाणु बिजली संयंत्र अब न टालनेवाले यथार्थ और विकल्प हैं. कोयला संकट है, नदियां सूख रही हैं या हैं भी, तो बड़े बांध बना कर बिजली उत्पादन की प्रक्रिया, अब कठिन काम है. कोयला, पानी से बिजली उत्पादित नहीं हो सकती, तो बढ़ती बिजली की मांग पूरी कहां से होगी? यह यथार्थ है.
आज फ्रांस जैसे विकसित देश में कुल जितनी बिजली की खपत है, उसकी आधी से अधिक आपूर्ति तो न्यूक्लियर एनर्जी (परमाणु ऊर्जा) से ही हो रही है. भारत को तेज रफ्तार से आर्थिक प्रगति करनी है, उपभोक्ता और उद्योगों की बिजली की मांग पूरी करनी है, इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास करना है, तो ऊर्जा की मांग और बढ़नेवाली है.
स्थिति या विरोधाभास यह है कि एक ओर भारत में बिजली की मांग बढ़नेवाली है, दूसरी ओर इसका उत्पादन बहुत ही कम है. आज भारत, दुनिया में ऊर्जा उपयोग–खपत करने में चौथे नंबर पर है और दुनिया का छठा बड़ा आयातक देश है, लिक्विड नेचुरल गैस (तरल प्राकृतिक गैस) का.
इस तरह दुनिया के दूसरे उन मुल्कों, मसलन, चीन, जहां बड़ी ऊर्जा की मांग है, से भारत की प्रतियोगिता–स्पर्धा है. आज चीन पूरी दुनिया से ऊर्जा एकत्र करने का नेटवर्क बन चुका है. अफ्रीका से सेंट्रल एशिया तक. रूस से भी ऊर्जा सहयोग व चीन की जरूरत के अनुसार ऊर्जा आपूर्ति की व्यवस्था चीन ने की है. इसलिए भारत–रूस का रिश्ता प्रगाढ़ होना, भारत के हित में भी है. ब्रिक्स जैसे महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय मंच पर दोनों देश मिलते ही हैं.
जी-20 में भी. पर हर साल वार्षिक शिखर सम्मेलन (बगैर बाधा या व्यतिक्रम के), अंतरराष्ट्रीय रिश्तों–संबंधों में भारी उतार–चढ़ाव के बीच होना, रूस–भारत की खास मित्रता संबंध का परिचायक है. रक्षा तथा अन्य आर्थिक सवालों पर सहयोग के मुद्दे छोड़ भी दें, तो संकट में रूस, भारत के साथ खड़ा होता रहा है.
कुडनकुलम परमाणु बिजली उत्पादन संयंत्र को अंतिम मुकाम तक पहुंचाने में रूस का ही सहयोग निर्णायक रहा है. इसका विरोध कई संगठनों, गुटों या देशों द्वारा हो रहा है. उदाहरण है, जब 2006 में तारापुर परमाणु बिजली संयंत्र के लिए ईंधन की समस्या हुई, तो रूस ने आपूर्ति की.
परमाणु ऊर्जा आज दुनिया में साफ व सुरक्षित मानी जाती है, भारत के ऊर्जा आपूर्ति का महत्वपूर्ण स्रोत हो सकती है. वैज्ञानिक एपीजे अब्दुल कलाम ने इस वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत के समर्थन में पूरी मजबूती से बात कही है. चर्चा है कि कुडनकुलम फेज–तीन व चार की चर्चा अंतिम चरण में है, इसके बाद दोनों देशों के इस पर हस्ताक्षर होने है.
इसके अतिरिक्त भारत, रूस में तेल व प्राकृतिक गैस खोज में सहयोग कर सकता है. रूस में ये दोनों चीजें प्रचुर मात्र में हैं. साकलिन ने भारत में 2.7 बिलियन डॉलर के निवेश का विरोध किया है. ओएनजीसी के एक अंग इंपीरियल एनर्जी ने रूस के तोम्स्क में अपना केंद्र खोला है. भारत ने रूस के यमाल गैस क्षेत्र में, खुदाई में सहयोग की इच्छा प्रकट की है. यह वेस्टर्न आर्कटिक क्षेत्र में है. फिलहाल यमाल में 50 फीसदी हिस्सा रूसी कं पनी नोवाटेक का है.
20 फीसदी हिस्सा (स्टेक) चीन के प्राकृतिक पेट्रोलियम कॉरपोरेशन और फ्रांस की टोटल एस ए ने लिया है. इस परियोजना में भारत साझेदार बनता है, तो भारत को ऊर्जा संकट हल करने में मदद मिलेगी. साथ में रूस में निवेश भी होगा. यमाल क्षेत्र में 20 ट्रिलियन क्यूबिक फुट गैस होने का अनुमान है. इसे फ्रीट्रेड जोन के रूप में विकसित करने की योजना है. रूस, बेलारूस और कजाकिस्तान इस योजना को विकसित करनेवालों में हैं. इस तरह ऊर्जा रक्षा के मामले में भारत के लिए रूस खास मददगार हो सकता है.