टीबी का कहर
स्वास्थ्य संबंधी कई मामलों में पिछले कुछ दशकों में हासिल उपलब्धियों के बावजूद ऐसे कई मोरचे हैं, जिन पर हमारी स्थिति चिंताजनक बनी हुई है. तपेदिक (टीबी) इन्हीं में से एक है. अनुमान है कि देश में 26 लाख लोग इस रोग से पीड़ित हैं. यह संख्या दुनिया के किसी भी देश से अधिक है. […]
स्वास्थ्य संबंधी कई मामलों में पिछले कुछ दशकों में हासिल उपलब्धियों के बावजूद ऐसे कई मोरचे हैं, जिन पर हमारी स्थिति चिंताजनक बनी हुई है. तपेदिक (टीबी) इन्हीं में से एक है. अनुमान है कि देश में 26 लाख लोग इस रोग से पीड़ित हैं. यह संख्या दुनिया के किसी भी देश से अधिक है.
चीन के बाद टीबी के ऐसे रोगियों की सर्वाधिक संख्या भी भारत में ही है, जिन पर दवाइयों का असर नहीं होता है. चुनौती की गंभीरता का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि दवाइयों के बेअसर होने से रोग की चपेट में अब टीबी अस्पतालों के कर्मचारी भी आने लगे हैं.
समाचार एजेंसी रॉयटर के मुताबिक, मुंबई के सेवरी सरकारी अस्पताल में 2011 के बाद से 69 कर्मचारियों को टीबी का संक्रमण हुआ है, जिनमें से 12 की मृत्यु हो चुकी है, जबकि 28 का उपचार पूरा किया गया. 2011 में आयी एक रिपोर्ट में बताया गया था कि 2007 से 2011 के बीच 65 स्वास्थ्यकर्मी टीबी के कारण मौत का शिकार हुए. यह रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गयी, पर उक्त एजेंसी ने इसे देखने का दावा किया है. सेवरी अस्पताल एशिया का सबसे बड़ा टीबी अस्पताल है.
यहां 1200 बिस्तर हैं और प्रतिदिन औसतन छह रोगियों की मौत हो रही है. इस रोग को लेकर जागरूकता फैलाने में लगे कार्यकर्ताओं का कहना है कि जिस देश में टीबी की आशंका मात्र से रोगी आत्महत्या का विचार करने लगते हैं, वहां कमजोर संक्रमण नियंत्रण, पर्याप्त देखभाल का अभाव, कर्मचारियों की नियमित जांच न करना आदि चिंताजनक हैं.
सेवरी अस्पताल की खराब दशा के बारे में अगस्त में 60 से अधिक विशेषज्ञों और कार्यकर्ताओं ने सरकारों को लिखा है. यह अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है कि अगर देश की वित्तीय राजधानी कहे जानेवाले मुंबई में इतने बड़े टीबी अस्पताल की हालत ऐसी है, तो देश के अन्य अस्पतालों की स्थिति कैसी होगी.
इस मसले को अन्य रोगों और स्वास्थ्य सेवाओं की समस्याओं के साथ जोड़ कर देखें, तो पूरा परिदृश्य परेशान करनेवाला है. जानकारों का कहना है कि स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने के प्रधानमंत्री मोदी के वादे के बावजूद, अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की कोशिशों के तहत इस क्षेत्र में खर्च को नियंत्रित किया जा रहा है.
उम्मीद है कि आनेवाले दिनों में केंद्र और राज्य सरकारें टीबी तथा अन्य जानलेवा संक्रामक बीमारियों की ओर अधिक ध्यान केंद्रित करेंगी, क्योंकि स्वास्थ्य जैसी बुनियादी जरूरतों को बेहतर किये बिना विकास की आकांक्षाएं फलीभूत नहीं हो सकेंगी.