ट्रांसजेंडरों को मिले समान अवसर

अंजलि सिन्हा महिला मामलों की जानकार तीसरे जेंडर के रूप में पहचान स्वीकृत होने के बाद काॅमन एडमिशन टेस्ट (कैट) में ट्रांसजेंडरों की संख्या में अच्छी वृद्धि देखने को मिली है. अस्सी की संख्या में वे इस बार कैट की परीक्षा में बैठनेवाले हैं. साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने इन्हें तृतीय लिंगी पहचान के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 13, 2015 11:57 PM

अंजलि सिन्हा

महिला मामलों की जानकार

तीसरे जेंडर के रूप में पहचान स्वीकृत होने के बाद काॅमन एडमिशन टेस्ट (कैट) में ट्रांसजेंडरों की संख्या में अच्छी वृद्धि देखने को मिली है. अस्सी की संख्या में वे इस बार कैट की परीक्षा में बैठनेवाले हैं. साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने इन्हें तृतीय लिंगी पहचान के लिए सभी स्थानांे पर औपचारिक हिस्सेदारी की व्यवस्था करने का निर्देश दिया था.

इसके बाद वे किसी भी परीक्षा में बैठने के लिए फार्म पर अपनी स्वतंत्र पहचान का विकल्प चुन सकते हैं. पहले भी वे पढ़ाई कर रहे थे, लेकिन औपचारिक प्रक्रियाओं के लिए वह स्त्री या पुरुष का विकल्प चुनने के लिए बाध्य थे. उम्मीद है कि समाज में तमाम उपेक्षाओं से भी इस समुदाय को निजात मिलेगी.

अभी ज्यादा दिन नहीं हुआ, जब दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रवेश के लिए पहली बार 66 ट्रांसजेंडरों ने आवेदन किया था. तब इस मसले पर माथापच्ची हुई थी कि उन्हें महिला कालेजों में प्रवेश दिया जाये या नहीं, जिस प्रस्ताव का कई प्रिंसिपलों ने विरोध किया था.

दिल्ली विश्वविद्यालय के स्कूल आफ लर्निंग की प्रथम वर्ष की एक ट्रांसजेंडर ने बताया कि थर्ड जेंडर को या तो सभी जगह प्रवेश की छूट हो या उनके लिए अलग कॉलेज का प्रबंध हो, क्योंकि महिला कॉलेजों या पुरुष कॉलेजों में पढ़ने में उन्हें कुछ दिक्कतें हैं.

सामाजिक अधिकारिता एवं न्याय मंत्रालय की एक समिति के शोध में बताया गया कि यह समस्या व्यावहारिक है, क्योंकि कुछ ट्रांसजेंडर पुरुषों जैसा व्यवहार करते हैं, तो कुछ महिलाओं जैसा. हालांकि, कई अध्ययन सहशिक्षा को स्वस्थ विकास में सहायक मानते हैं. ऐसे में महज अपनी विशिष्ट पहचान बनाये रखने के लिए महिला कालेजों को बनाये रखना कोई प्रगतिशील समझ नहीं है.

ट्रांसजेंडरों को लेकर राज्य तथा समाज के स्तर पर चीजें बदल रही हैं. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में केंद्र तथा राज्य सरकारों को निर्देश दिया था कि इस समुदाय के लोगों को सामाजिक तथा शैक्षिक रूप से पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में शामिल किया जाये. इससे शिक्षा तथा नौकरियों में उनके लिए आरक्षण का रास्ता खुलेगा. अदालत ने यह भी स्पष्ट किया था कि उन्हें अलग पहचान बनाने का हक है, उन्हें फोटो पहचान पत्र, ड्राइविंग लाइसेंस, पासपोर्ट आदि सभी में हर सुविधा बराबरी से मिले तथा शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य सेवाओं में विशेष अवसर देकर उन्हें मुख्यधारा में लाया जाये.

राज्यों के स्तर पर ऐसे कदम उठाने में तमिलनाडु अग्रणी रहा है, जिसने इस तबके के लिए शिक्षा के विशेष उपाय के साथ ही रोजगार के लिए अवसर मुहैया कराये हैं. तमिलनाडु सरकार ने ट्रांसजेंडरों के पक्ष में नीतिगत फैसले लिये. इनके लिए राशन कार्ड देने का फैसला लिया गया. इन कार्डों पर लिंगदर्शक आद्याक्षर एम (मेल-पुरुष) और एफ (फीमेल-स्त्री) की तरह टी (ट्रांसजेंडर) लिखा होगा.

कुल मिला कर यह मुद्दा भविष्य के समाज के प्रति नजरिये का है. विकास सबका हो, अवसर समान हो, लेकिन वह सब कैसे हो, उसके लिए नीति क्या हो, इसके बारे में स्पष्टता होनी चाहिए.

Next Article

Exit mobile version