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डेंगू के आगे बेबस
दिल्ली सत्ता की नगरी कही जाती है, लेकिन सत्ता की यही नगरी स्थायी तौर पर डेंगू की नगरी भी बनने जा रही है. बात विचित्र है, लेकिन डेंगू से संबंधित इस साल के आधिकारिक आंकड़े यही संकेत कर रहे हैं. 19 साल पहले दिल्ली में डेंगू के सवा दस हजार से ज्यादा मामलों की पुष्टि […]
दिल्ली सत्ता की नगरी कही जाती है, लेकिन सत्ता की यही नगरी स्थायी तौर पर डेंगू की नगरी भी बनने जा रही है. बात विचित्र है, लेकिन डेंगू से संबंधित इस साल के आधिकारिक आंकड़े यही संकेत कर रहे हैं. 19 साल पहले दिल्ली में डेंगू के सवा दस हजार से ज्यादा मामलों की पुष्टि हुई थी. इस साल अक्त्ूबर के शुरू में ही यह आंकड़ा साढ़े दस हजार को पार कर गया है. दिल्ली को डेंगू के महानगरी के रूप में तबदील हुए दो दशक बीत गये, लेकिन इससे निपटने की सरकारी तैयारी आज भी पुख्ता नहीं हो सकी है.
आलम यह है कि 1996 में दिल्ली में सवा चार सौ की तादाद में डेंगू के मरीजों की मौत हुई थी, तो इस साल भी डेंगू से मरनेवालों की तादाद सरकारी तौर पर 30 बतायी जा रही है. इस आंकड़े का राजनीतिक अर्थ बड़ा स्पष्ट है. चाहे देश की सत्ता के नियंत्रण की डोर थामनेवाली सरकार हो या मात्र दिल्ली की सत्ता की बागडोर संभालनेवाली सरकार, दोनों डेंगू के मच्छर को काबू करने में असफल रही हैं. दिल्ली में तो इसी बात पर भी बहस जारी है कि दिल्ली के नागरिकों के स्वास्थ्य का जिम्मा केंद्र सरकार का है या प्रदेश सरकार का.
बेकाबू होते डेंगू के लिए दोनों एक-दूसरे को दोषी ठहरा रहे हैं. डेंगू के आतंक के साये में आती दिल्ली में जब मीडिया ने आलोचना में मुंह खोला, तो प्रदेश सरकार ने कुछ सजावटी उपाय किये. अस्पतालों में बेड बढ़ाने की घोषणाएं हुईं, डेंगू की जांच को सस्ता करने की बात कही गयी, कुछ विशेष उपचार केंद्र बनाने के आदेश जारी हुए. लेकिन डेंगू का पसरना और अस्पतालों में डेंगू के मरीजों की भीड़ जारी रही. इश्तेहारों के जरिये बचने का सरकारी नुस्खा सुझाया गया कि डेंगू तो मच्छर के काटने से होता है, सो डेंगू के मच्छर को मत पनपने दीजिए. दरअसल, जिसे समाधान बता कर पेश किया जा रहा है, समस्या भी वही है.
सरकार डेंगू के फैलाव को रोकने की जिम्मेवारी नागरिकों पर डाल रही है, जबकि अनियंत्रित विकास की जिम्मेवार वह स्वयं है और डेंगू के लगातार होते विस्तार का रिश्ता अनियंत्रित विकास से है. डेंगू के सबसे ज्यादा मामले निर्माणाधीन जगहों पर प्रकाश में आये हैं, जैसे मेट्रो-निर्माण की साइट या फिर कॉमनवेल्थ खेलों के समय हुए निर्माण-कार्य वाली जगहें.
दिल्ली और गुड़गांव ही नहीं, रायपुर, जयपुर और पटना तक, जहां भी बगैर सुचिंतित शहरी योजना के निर्माण-कार्य हुए हैं, डेंगू के मच्छरों को वहीं अपना पंख पसारने में ज्यादा सहूलियत हुई है. जाहिर है, अनियंत्रित विकास पर जब तक लगाम नहीं लगता, डेंगू का मच्छर बेकाबू ही रहेगा.
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