पहले मन के अंदर के रावण को जलायें
दशहरा में हर साल विजयादशमी को बांस की खपच्ची से बने रावण के पुतले को जलाया जाता है, लेकिन जो लोग रावन दहन कार्यक्रम का आयोजन करते हैं, उन्हें रावण के पुतले को जलाने के पहले दो मिनट रुक कर विचार करना चाहिए. सबसे पहले उन्हें भीड़ से उन रावणों की तलाश करनी चाहिए, जो […]
दशहरा में हर साल विजयादशमी को बांस की खपच्ची से बने रावण के पुतले को जलाया जाता है, लेकिन जो लोग रावन दहन कार्यक्रम का आयोजन करते हैं, उन्हें रावण के पुतले को जलाने के पहले दो मिनट रुक कर विचार करना चाहिए. सबसे पहले उन्हें भीड़ से उन रावणों की तलाश करनी चाहिए, जो प्रतिदिन देश की महिलाओं, बालिकाओं और युवतियों का शीलहरण करते हैं. इतना ही नहीं, वे उनका शीलहरण करने के बाद उनकी हत्या भी कर देते हैं.
दुखद यह है कि जिस त्रेतायुगीन रावण की कैद में रहने के बाद भी माता सीता का शील बचा रहा, उस रावण का पुतला जलाने से पहले आधुनिक समाज के रावणों के बारे में विचार करना होगा. आज देश के ज्यादातर लोगों के मन में रावणी प्रवृत्ति हावी हो रही है. बुराई का नाश करने के लिए लोग रावण के पुतले का दहन तो करते हैं, लेकिन अपने मन के अंदर के रावण का दहन नहीं करते. पहले उसका दहन करें.
परमेश्वर झा, दुमका