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ऑर्डर! ऑर्डर!
सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में 99वें संविधान संशोधन और राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग कानून को निरस्त करते हुए न्यायाधीशों की नियुक्ति में सरकार की भूमिका को नामंजूर कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीशों की खंडपीठ में से चार ने संविधान संशोधन और कानून को असंवैधानिक करार दिया है. पीठ ने कहा […]
सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में 99वें संविधान संशोधन और राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग कानून को निरस्त करते हुए न्यायाधीशों की नियुक्ति में सरकार की भूमिका को नामंजूर कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीशों की खंडपीठ में से चार ने संविधान संशोधन और कानून को असंवैधानिक करार दिया है. पीठ ने कहा है कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता संविधान का एक बुनियादी सिद्धांत है, जिसमें किसी तरह का बदलाव नहीं किया जा सकता.
फिलहाल ऊपरी अदालतों में न्यायाधीशों की नियुक्ति 1993 में स्थापित कॉलेजियम प्रणाली के तहत ही होगी. हालांकि खंडपीठ ने इस प्रणाली को पारदर्शी और बेहतर बनाने के लिए सरकार और याचिकाकर्ताओं से तीन नवंबर तक सुझाव देने को कहा है. केंद्रीय कानून मंत्री सदानंद गौड़ा ने फैसले पर अचंभा व्यक्त किया है, जबकि सरकार की ओर से अदालत में पैरवी कर रहे अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने इसे दोषपूर्ण माना है.
दूसरी तरफ, सुप्रीम कोर्ट के कई वरिष्ठ वकीलों ने इस निर्णय का स्वागत किया है. लेकिन, इस पूरे प्रकरण को किसी एक पक्ष की हार या जीत के रूप में देखने-समझने की कोशिश सही नहीं होगी. हमारे संविधान में कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिक के कार्य-क्षेत्र निर्धारित हैं. देश का हित इसी में है कि राज्य के तीनों अंग संतुलन के साथ अपने कार्यों का निष्पादन करें. अभी यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि इस फैसले पर सरकार और संसद का रुख क्या होगा, पर यह उल्लेखनीय है कि कॉलेजियम प्रणाली की बेहतरी के सुझाव मांग कर सुप्रीम कोर्ट ने परोक्ष रूप से उसकी खामियों को स्वीकार किया है.
विभिन्न हाइकोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्ति में भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार के आरोप कई बार लग चुके हैं. यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस मार्कंडेय काटजू भी कई मौकों पर ऐसे खुलासे कर चुके हैं. ऐसे में जरूरत इस बात की है कि संबद्ध पक्ष एवं कानूनविद् किसी एक खेमे का पक्ष लेने की जगह न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली को दोषमुक्त बनाने में अपना योगदान दें, जिससे देश की न्याय प्रणाली पर लोगों का भरोसा और मजबूत हो.
साथ ही, सरकार को उन शंकाओं के समाधान का भी प्रयास करना चाहिए, जिनमें राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग को न्यायपालिका के कार्य-क्षेत्र में कार्यपालिका का हस्तक्षेप माना जा रहा था. हमारी संवैधानिक एवं लोकतांत्रिक संस्थाएं अनुभवी और परिपक्व हैं. इस आधार पर यह उम्मीद जगती है कि वे इस फैसले से उत्पन्न स्थिति का सर्वोत्तम समाधान शीघ्र निकाल लेंगी.
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