यह खेल तो सिर्फ नेता खेलते हैं!
।।दीपक कुमार मिश्र ।। (प्रभात खबर, भागलपुर) इस दुर्गा पूजा में सपरिवार गांव में था. कुछ पुराने मित्र भी गांव आये हुए थे. मौसम नाराज था, इसलिए कहीं बाहर निकलने का मौका नहीं मिला. पुराने मित्रों के साथ घर में बैठ कर पुरानी यादें ताजा कीं. सब लोगों के संस्मरणों ने बचपन के दिन याद […]
।।दीपक कुमार मिश्र ।।
(प्रभात खबर, भागलपुर)
इस दुर्गा पूजा में सपरिवार गांव में था. कुछ पुराने मित्र भी गांव आये हुए थे. मौसम नाराज था, इसलिए कहीं बाहर निकलने का मौका नहीं मिला. पुराने मित्रों के साथ घर में बैठ कर पुरानी यादें ताजा कीं. सब लोगों के संस्मरणों ने बचपन के दिन याद दिला दिये. बचपन में खेले जानेवाले खेल धुआ और राजा कबड्डी, गोबर काठी, कित-कित से लेकर पीट्टो तक और पादकंदुक से लेकर क्रिकेट तक की चर्चा हुई. लेकिन, बात खेल से शुरू होकर राजनीति पर आकर खत्म हुई. पूजा के बाद जब गांव से शहर लौटा तो मेरे बेटे ने कहा- ‘‘पापा गांव में अंकल लोग के साथ आप राजनीति और दल-बदल खेल की बात कह रहे थे. यह कौन सा खेल है और कैसे खेला जाता है, हम तो अब तक यह खेल नहीं खेले हैं.’’
मैं जवाब नहीं देना चाहता था, पर बेटे की जिद पर कहा- ‘‘अभी परीक्षा है. इसके बाद इस खेल के बारे में बतायेंगे.’’ पर मन में एक सुकून था कि वह राजनीति का खेल नहीं समझता है और भगवान से मन ही मन प्रार्थना भी की कि वह यह खेल जीवन भर न समङो. इन दिनों बिहार में अदला-बदली का खेल खूब चल रहा है. पता नहीं राजनीतिक दलों को इससे कितना लाभ होगा. जिस तरह टीवी चैनलों में अपनी टीआरपी बढ़ाने की गलाकाट प्रतियोगिता होती रहती है, उसी तरह अपने यहां के दो दल जो कल तक गलबहियां कर रहे थे, उन्हें यह खेल कुछ अधिक ही भा गया है. खेल के परिणाम को खूब प्रचारित किया जाता है. दोनों दल के नेता इस खेल को लेकर जितना मजा लें या खेल के प्रति गंभीर हों, लेकिन ‘ये जो पब्लिक है सब जानती है’ की तर्ज पर आम जनता पूरे खेल को समझती है.
राजनीति शब्द हमारे लिए कितना ‘पवित्र’ है, इसे इसी से समझा जा सकता है कि लोग बात-बात में कह देते हैं, हमसे राजनीति मत करना. लोकसभा चुनाव तक अदला-बदली का यह खेल खूब खेला जायेगा. वैसे यह खेल देश के हर सूबे में लोकप्रिय है, पर अपने बिहार में भी दो-तीन लोग ऐसे हैं, जिन्हें खुद पता नहीं कि वे कितनी बार पाला बदल चुके हैं. वे दल-बदल को हृदय परिवर्तन कहते हैं. अनाप-शनाप बोलने के माहिर और ‘बाबा’ व पिता के नाम पर अपनी जातिगत राजनीति करनेवाले एक नेता इसके चैंपियन हैं. दल- बदल की पिच के माहिर खिलाड़ी को ‘दिव्य ज्ञान’ उसी समय प्राप्त होता है, जब वह दूसरे दल में शामिल हो जाता है. जिस नये दल में जाता है, वह गंगा की तरह पवित्र और पुराना घर बुराइयों का भंडार घर लगता है.
अपने को मर्यादा से बंधे रहने और हर कमजोरी व बुराई से दूर रहने का दावा करनेवाले नेताओं को दल-बदल का खेल खेलने में खूब मजा आता है. जिस तरह देश के कुछ नेताओं ने खेल संघों को अपनी जेबी संस्था बना कर उन पर एकाधिकार कर लिया है, उसी तरह दल- बदल खेल को भी राजनीतिक दलों ने पेटेंट करा लिया है.