हम हैं राजनीतिक वंशवाद के जिम्मेवार
राजनीति में कुछ नेता वंशवाद के मुद्दे को जोर-शोर से उठाते रहते हैं. लेकिन, मेरी नजर में हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था में वंशवाद कोई मुद्दा है ही नहीं. इस वंशवाद को कैसे रोका जा सकता है? आज वंशवाद सिर्फ राजनीति में ही नहीं, बल्कि समाज के हर कार्यक्षेत्र में हावी है. बात चाहे चिकित्सा की हो […]
राजनीति में कुछ नेता वंशवाद के मुद्दे को जोर-शोर से उठाते रहते हैं. लेकिन, मेरी नजर में हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था में वंशवाद कोई मुद्दा है ही नहीं. इस वंशवाद को कैसे रोका जा सकता है? आज वंशवाद सिर्फ राजनीति में ही नहीं, बल्कि समाज के हर कार्यक्षेत्र में हावी है. बात चाहे चिकित्सा की हो या शिक्षा, प्रशासन, कला, वकालत, व्यवसाय, खेल आदि किसी अन्य पेशे की, हर जगह हमें इसका प्रभाव मिलता है.
पुराने जमाने में भी तो पंडित का बेटा पंडित और राजा का बेटा राजा बनता था. क्या वह वंशवाद नहीं था? वंशवाद तो तभी खत्म हो गया, जब हमने लोकतांत्रिक व्यवस्था को अंगीकार किया. आज के जमाने में किसी नेता का बेटा या रिश्तेदार खुद ही जीत कर संसद या विधानसभा में तो प्रवेश नहीं पाता, उसे जनता वोट देती है और तब वह जनप्रतिनिधि चुना जाता है. इस तरह देखें, तो वंशवाद के लिए इस देश की जनता ही जिम्मेवार है.
-पंकज द्विवेदी, बोकारो