विद्या के मंदिर में खाने की कवायद

हमारे देश में लोगों को मुफ्तखोरी की आदत हो चुकी है. यह आदत बचपन से ही लगा दी जाती है. सरकारी स्कूलों में बच्चों के लिए यूनिफॉर्म, साइकिल, किताबें और छात्रवृत्ति का प्रावधान किया गया है. शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए यहां तक तो ठीक है, लेकिन विद्या के मंदिर में मध्याह्न भोजन के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 20, 2015 6:18 AM
हमारे देश में लोगों को मुफ्तखोरी की आदत हो चुकी है. यह आदत बचपन से ही लगा दी जाती है. सरकारी स्कूलों में बच्चों के लिए यूनिफॉर्म, साइकिल, किताबें और छात्रवृत्ति का प्रावधान किया गया है.
शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए यहां तक तो ठीक है, लेकिन विद्या के मंदिर में मध्याह्न भोजन के लिए बच्चों को अपने घर से थाली लेकर जाना पड़ रहा है. यह कैसी शिक्षा व्यवस्था है? यह तो एक तरह से बच्चों के मन में शुरू दौर से ही हीन भावना का बीज बोने जैसा है.
यदि यही व्यवस्था रही, तो बच्चे पढ़-लिख कर बहुत तरक्की करेंगे, इसकी उम्मीद करना बेमानी है. दूसरी तरफ, स्कूल के मास्टर साहब को अब पढ़ाने-लिखाने से ज्यादा इस बात की चिंता रहती है कि बच्चे आज क्या खाना खायेंगे. मध्याह्न भोजन का हिसाब-किताब भी इनका ही सिरदर्द है. ऐसे में ये बच्चों को कैसी शिक्षा देते होंगे, यह सहज समझा जा सकता है. फिर प्रतिस्पर्धा के दौर में बच्चों के भविष्य की गारंटी कौन लेगा?-सत्येंद्र कुमार दास, देवघर

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