ऐसी साजिशों से भ्रमित नहीं होंगे हम

कन्नड़ लेखक एमएम कलबुर्गी की हत्या, उत्तर प्रदेश में दादरी हत्याकांड, पाकिस्तान के गजल गायक गुलाम अली के मुंबई में पदार्पण पर प्रतिबंध व मुंबई में ही पाक के विदेश मंत्री के पुस्तक लोकार्पण समारोह में एक सांसद के चेहरे पर कालिख पोते जाने की घटना शर्मसार करनेवाली है. प्रसिद्ध साहित्यकार नयन तारा सहगल, अशोक […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 20, 2015 6:19 AM
कन्नड़ लेखक एमएम कलबुर्गी की हत्या, उत्तर प्रदेश में दादरी हत्याकांड, पाकिस्तान के गजल गायक गुलाम अली के मुंबई में पदार्पण पर प्रतिबंध व मुंबई में ही पाक के विदेश मंत्री के पुस्तक लोकार्पण समारोह में एक सांसद के चेहरे पर कालिख पोते जाने की घटना शर्मसार करनेवाली है. प्रसिद्ध साहित्यकार नयन तारा सहगल, अशोक वाजपेयी सहित अन्य साहित्यकारों ने अपने-अपने पुरस्कार लौटा दिये.
ऐसी घटनाओं से देश की संस्कृति, आपसी एकता व भाईचारा कलंकित हुआ है, लेकिन इन घटनाओं के विरुद्ध प्रत्यक्ष आरोप केंद्र की सरकार पर थोपा जाना न्यायोचित नहीं है. प्रथम दृष्टया ऐसी घटनाओं के लिए संबंधित राज्य की सरकारें जिम्मेवार हुआ करती हैं. इन घटनाओं ने देश के सियासी हलकों में भूचाल खड़ा कर दिया है. देश में बढ़ती असहिष्णुता व सांप्रदायिकता का आरोप लगाकर लेखकों, साहित्यकारों द्वारा साहित्य अकादमी पुरस्कार भी लौटाये जा रहे हैं.
विभिन्न राजनीतिक पार्टियों द्वारा केंद्र सरकार पर आरोप मढ़ने की बात समझ में आती है, लेकिन साहित्यकारों द्वारा मन की भड़ास निकालने का यह तरीका उचित नहीं है. पुरस्कार लौटाने की कवायद में शामिल साहित्यकारों का आरोप है कि कलम की जगह पर गोलियां बरसायी जा रही हैं. लोकतांत्रिक अधिकार छीने जा रहे हैं. गंगा-यमुनी तहजीब खतरे में है.
लेकिन, 125 करोड़ की आबादीवाले इस मुल्क में हिंदू, मुसलिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन, पारसी, अलग रीति-रिवाज, खान-पान और सरोकारों सहित आपसी एकता व भाईचारे के साथ सदियों से भारत भूमि में साथ रहते आये हैं. ऐसे में ऐसी तुच्छ घटनाओं पर राजनीति हम कभी सफल नहीं होने देंगे.
-अमर कु वर्मा, केवटपाड़ा, दुमका

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