कर्ज की उलटबांसी

अर्थव्यवस्था में खेती के योगदान और महत्व से हम परिचित हैं. हम इस बात से भी परिचित हैं कि प्राकृतिक कारणों और सरकारी नीतियों की खामियों से किसान बहुत परेशान है. फसल की बर्बादी और कर्ज के बोझ से किसानों की आत्महत्याओं की खबरें भी आम हो चुकी हैं. अकसर हम यह भी सुनते हैं […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 20, 2015 6:22 AM
अर्थव्यवस्था में खेती के योगदान और महत्व से हम परिचित हैं. हम इस बात से भी परिचित हैं कि प्राकृतिक कारणों और सरकारी नीतियों की खामियों से किसान बहुत परेशान है. फसल की बर्बादी और कर्ज के बोझ से किसानों की आत्महत्याओं की खबरें भी आम हो चुकी हैं. अकसर हम यह भी सुनते हैं कि सरकारें आसान शर्तों पर खेती के लिए ऋण और अनुदान देती हैं. पर यह चिंताजनक तथ्य है कि बैंकों की नीतियों के कारण किसानों को कर्ज मिलना एक कठिन प्रक्रिया है और उन्हें अधिक ब्याज दर भी चुकाना पड़ता है.
ऐसे में उन्हें मिलनेवाला अनुदान भी अर्थहीन हो जाता है. इसके विपरीत शहरी क्षेत्रों में नौकरीपेशा और व्यापारी वर्ग के लिए बैंकों की तिजोरियां खुली हुई हैं. खेती पर दिये जानेवाले कर्ज पर बैंक आम तौर पर करीब 14 फीसदी की दर से ब्याज वसूलते हैं, जबकि कार खरीदने के लिए 10 फीसदी पर कर्ज उपलब्ध है. इसके अलावा किसान को अनावश्यक दस्तावेज जमा करने होते हैं और सत्यापन के नाम पर अतिरिक्त शुल्क भी अदा करना होता है. परंतु, यदि आपको शहर में कार या घर खरीदना है, तो बैंक के कर्मचारी खुद ही आपके पास आ जाते हैं. रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने कहा है कि यदि नौ फीसदी विकास दर हासिल करना है, तो हमें मांग और आपूर्ति को बेहतर करना होगा.
ध्यान रहे, कृषि क्षेत्र एक बड़ा आपूर्तिकर्ता है और अर्थव्यवस्था की मजबूती ग्रामीण क्षेत्रों में मांग पर निर्भर करती है. इसका सीधा मतलब यह है कि यदि हमारे नीति-निर्धारकों ने कृषि पर समुचित ध्यान नहीं दिया, तो इसका नकारात्मक असर उत्पादन पर पड़ेगा. इस कारण अनाज और अन्य फसलों की कीमत और गुणवत्ता प्रभावित होगी. कम उत्पादन और आमदनी की स्थिति में ग्रामीण क्षेत्रों में औद्योगिक वस्तुओं की मांग घटेगी. पिछले कुछ वर्षों से ग्रामीण भारत की यही स्थिति है. इस वर्ष मॉनसून की कमजोरी ने भी खेती से जुड़ी चिंताओं को बढ़ा दिया है.
रघुराम राजन ने अफसोस जताते हुए कहा है कि नीतियों को बनाने और उनके कार्यान्यवयन को संचालित कर सकने के लिए जरूरी बुद्धिमत्ता और क्षमता रखनेवाले आर्थिक विशेषज्ञों की बड़ी कमी है. निश्चित रूप से इस अभाव का असर उपलब्धियों पर पड़ रहा है. ऐसे में यह बहुत जरूरी है कि सरकारें विभिन्न अकादमिक तथा वित्तीय संस्थाओं के साथ मिल-बैठ कर किसानों के साथ भेदभाव कर उनका दोहन करनेवाली परिस्थितियों में बदलाव की गंभीर कोशिशें करें.

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