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महंगाई की मार आम जनता पर भारी
महंगाई ऐसी राक्षसी का रूप धारण कर चुकी है जो एक व्यक्ति की हाड़-तोड़ मेहनत की कमाई को इस कदर निगलती है कि आम आदमी के लिए अपने परिवार हेतु रोटी-कपड़ा का प्रबंध कर पाना भी मुश्किल हो जाता है. महंगाई के आर्थिक ही नहीं कई सामाजिक एवं राजनीतिक कारण भी हैं, जैसे मुद्रास्फीति, जनसंख्या […]
महंगाई ऐसी राक्षसी का रूप धारण कर चुकी है जो एक व्यक्ति की हाड़-तोड़ मेहनत की कमाई को इस कदर निगलती है कि आम आदमी के लिए अपने परिवार हेतु रोटी-कपड़ा का प्रबंध कर पाना भी मुश्किल हो जाता है.
महंगाई के आर्थिक ही नहीं कई सामाजिक एवं राजनीतिक कारण भी हैं, जैसे मुद्रास्फीति, जनसंख्या में तीव्र वृद्धि, मुनाफाखोरी, कालाबाजारी, धन का असमान वितरण, प्रशासनिक भ्रष्टाचार इत्यादि. मुद्रास्फीति के कारण न केवल वस्तुओं के मूल्य बढ़ते हैं बल्कि मुद्रा का मूल्य भी गिर जाता है. भारत की जनसंख्या जिस तीव्रता से बढ़ रही है, उस अनुपात में उसके लिए आवश्यक उपयोगी वस्तुओं के उत्पादन में वृद्धि नहीं हो रही है.
इससे वस्तुओं की मांग अधिक और आपूर्ति कम होने के फलस्वरूप उनके मूल्य में स्वाभाविक रूप से वृद्धि होती है. महंगाई का ही दुष्परिणाम है कि कुछ समय पहले जो दाल 60 रुपये प्रति किलो के दर से थी, उसकी कीमत अब 150 रुपये से भी आगे बढ़ चुकी है. इसके अलावा, अनाज एवं सब्जियों की कीमतें भी आसमान छूने लगी हैं.
आवश्यक उपयोगी वस्तुओं के मूल्य में वृद्धि के कारण आम आदमी की निर्धनता का ग्राफ बढ़ता जा रहा है. महंगाई के कारण भ्रष्टाचार को भी बढ़ावा मिलता है. आवश्यक उपयोगी वस्तुओं के मूल्यों में निरंतर वृद्धि, यानी महंगाई किसी भी अर्थव्यवस्था के लिए खतरनाक संकेत है. समय रहते यदि इस पर नियंत्रण नहीं किया गया, तो अनेक जटिलताओं को बढ़ावा मिलेगा. इससे देश की आर्थिक वृद्धि मंद पड़ जायेगी.
महंगाई की मार आम आदमी पर सर्वाधिक पड़ती है, जिससे उसका जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है. इन दिनों सरकार भी इससे परेशान है. अत: इस स्थिति को नियंत्रित करने की कोशिश करनी होगी.
– समीउर रहमान, रांची
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