खुदरा व्यापारियों के बदलने का वक्त

राजीव रंजन झा संपादक, शेयर मंथन देशभर के गल्लों पर बैठे सेठ जी आजकल ऑनलाइन आक्रमण से परेशान हैं. ऑनलाइन रिटेलरों ने त्योहारी मौसम को लूट लिया है. खरीदारी की उस धूम को हथिया लिया है, जो हर साल खुदरा दुकानों पर उमड़ा करती थी. इसीलिए खुदरा व्यापारियों के संगठन ने इनके खिलाफ मोर्चा खोल […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 21, 2015 4:50 AM
राजीव रंजन झा
संपादक, शेयर मंथन
देशभर के गल्लों पर बैठे सेठ जी आजकल ऑनलाइन आक्रमण से परेशान हैं. ऑनलाइन रिटेलरों ने त्योहारी मौसम को लूट लिया है. खरीदारी की उस धूम को हथिया लिया है, जो हर साल खुदरा दुकानों पर उमड़ा करती थी. इसीलिए खुदरा व्यापारियों के संगठन ने इनके खिलाफ मोर्चा खोल रखा है और इनके विरुद्ध नीतिगत व कानूनीविरोध से लेकर खुद उनके ही मंच पर, यानी ऑनलाइन बाजार में अपनी अलग दुकान खोलने जैसे तमाम कदम उठाये हैं.
फिर भी नवरात्रि शुरू होने पर ऑनलाइन सेल ने जो धूम मचायी है, उससे यही साबित होता है कि ऑनलाइन खरीदारी ने इस साल अपने पांव ज्यादा जमा लिये हैं. हालांकि अभी खरीदारी के दीवाली धमाके होने बाकी हैं, लेकिन त्योहारी सेल के शुरुआती दिनों में ही फ्लिपकार्ट के बिग बिलियन डे सेल और जवाब में अमेजन और स्नैपडील वगैरह पर मिल रही छूट ने ग्राहकों को खींचा है.
फ्लिपकार्ट ने पिछले साल के केवल एक दिन के बिग बिलियन डे सेल की तुलना में इस बार 13 से 18 अक्तूबर तक यह सेल जारी रखा. इसने मोबाइल एप्प पर ज्यादा छूट देने की रणनीति अपनायी, तो करीब 50 लाख लोगों ने इसके एप्प को डाउनलोड किया. फ्लिपकार्ट ने सेल के इन दिनों में 2000 करोड़ रुपये के सामान बेचे. अमेजन ने भी इन्हीं दिनों में अपनी सेल सजायी और स्नैपडील ने दीवाली तक हर सोमवार को सेल का ऐलान कर दिया है. फ्लिपकार्ट की औसत मासिक बिक्री 80 लाख सामानों की हो गयी है. लेकिन बिग बिलियन सेल के दौरान हफ्ते भर में ही इसने 80 लाख सामानों की बिक्री कर ली.
अमेजन और स्नैपडील के आंकड़े भी लगभग इसी तरह के हैं. क्या खुदरा व्यापारी इस ऑनलाइन आक्रमण के आगे टिक पायेंगे? आज हर हाथ में मोबाइल है, उस मोबाइल में ये ऑनलाइन दुकानें खुल गयी हैं और कीमत के मामले में खुदरा व्यापारी उनसे प्रतिस्पर्धा करने की हालत में नहीं हैं. खुदरा व्यापारियों के संगठन कभी सरकार से संरक्षण के लिए नीतियों में बदलाव की मांग करते हैं, कभी तमाम राज्य सरकारों को बताते हैं कि इ-कॉमर्स उनके राजस्व को नुकसान पहुंचा रहा है, कभी अदालत का दरवाजा खटखटाते हैं, तो कभी कहते हैं कि वे खुद अपना पोर्टल खोलने जा रहे हैं.
खुदरा व्यापारियों की बेचैनी स्वाभाविक है, क्योंकि उनका बाजार छिन रहा है. लेकिन क्या यह सरकार का काम है कि पहले से जमे व्यापारियों के हितों की रक्षा के लिए वह एक उभरते बाजार पर अंकुश लगा दे? क्या यह उपभोक्ता हित में होगा?
क्या खुले बाजार के युग में एक पक्ष को बचाने के लिए दूसरे पक्ष पर कृत्रिम बंदिशें लगाना उचित होगा? या फिर बेहतर यह होगा कि व्यापारी खुद ही बदलते समय के मुताबिक खुद को ढाल कर इस ऑनलाइन आक्रमण का जवाब दें और साथ ही खुद भी इंटरनेट और मोबाइल पर उपलब्ध होनेवाले अवसरों का फायदा उठाने के लिए खुद को तैयार करें?
यह दूसरी बात बहुत हद तक हो भी रही है. फ्लिपकार्ट, अमेजन, स्नैपडील और पेटीएम जैसे मंचों पर सामान कौन लोग बेच रहे हैं? अधिकतर मामलों में ये वेबसाइटें खुद विक्रेता नहीं हैं.
इन्होंने खुद को मार्केटप्लेस के तौर पर विकसित किया है, यानी किसी भी विक्रेता के लिए उन्होंने एक मंच उपलब्ध करा दिया है. एक तरफ अगर व्यापारी का बाजार छिन रहा है, तो दूसरी तरफ देश भर का विशाल बाजार उसके लिए खुल भी रहा है. और यह बाजार केवल दिल्ली में बैठे किसी व्यापारी के लिए ही नहीं खुल रहा है. ऑनलाइन बाजार आपके सामने देश भर में अपने सामान बेचने का विकल्प खोल देता है.
लेकिन जब भी खेल बदलता है, तो कुछ पुराने नियम टूटते हैं, कुछ नये नियम बनते हैं. एक उपभोक्ता के रूप में शायद आपने भी इसे महसूस किया होगा.
अभी एक कैमरा खरीदने के लिए खोजबीन की तो एक ही मॉडल किसी वेबसाइट पर 33,000 रुपये का दिखा तो कहीं 36,000 का, और कहीं 40,000 का भी. कंपनी के शोरूम में गया तो 41,000 रुपये कीमत बतायी गयी और छूट के साथ 40,000 रुपये. लेकिन जब ऑनलाइन कीमतें सामने रखीं, तो उसी शोरूम की कीमत घट कर 36,000 रुपये पर आ गयी, हालांकि कीमत घटाने की तकलीफ दुकानदार के चेहरे पर दिख गयी!
आप पूछ सकते हैं कि अगर किसी वेबसाइट पर वही कैमरा 33,000 रुपये का भी मिल रहा था तो मैंने उससे क्यों नहीं लिया? आखिर मैंने 3,000 रुपये ज्यादा देकर शोरूम से क्यों खरीदा? यह विश्वास का प्रीमियम है.
खुद उस दुकानदार ने कहा कि लोग ऑनलाइन कीमत देखते हैं, पर आकर खरीदते शोरूम से ही हैं. मगर यह पूरा सच नहीं है, क्योंकि हर तरह के सामानों की ऑनलाइन बिक्री साल-दर-साल नहीं, बल्कि महीने-दर-महीने बढ़ रही है.
अपने इसी उदाहरण को लूं, तो 33,000 रुपये में ऑनलाइन कैमरा नहीं खरीदने का एक कारण यह भी था कि मैंने उस विक्रेता को ईमेल करके कुछ जानकारियां मांगी और अगले दिन तक मुझे उसका जवाब नहीं मिला. जो विक्रेता बिक्री से पहले ही जवाब देने में सुस्त है, वह सामान खरीदने के बाद किसी शिकायत को कितना सुनेगा! जहां एक तरफ शिकायतें आती हैं कि किसी ने फलां वेबसाइट पर मोबाइल खरीदा और घर आये पैकेट में मोबाइल के बदले साबुन निकला, वहीं ऐसी खबरें भी आयी हैं कि ग्राहकों की फर्जी शिकायतों से तंग आकर बहुत से उद्यमियों ने इ-कॉमर्स से तौबा कर ली.
पर इतना तो साफ है कि बदलती तकनीक आपके बाजार को बदल रही है. देश के खुदरा कारोबार का बड़ा हिस्सा अब भी परंपरागत खुदरा कारोबारियों के हाथों में है, पर हर साल उनके कारोबार का कुछ हिस्सा छिन कर ऑनलाइन की ओर चला जा रहा है. यह चलन आनेवाले वर्षों में तेजी से बढ़ेगा ही, कम नहीं होगा.
ऐसे में न केवल व्यापारी वर्ग इससे जुड़ कर लाभ उठा सकता है, बल्कि अब तक व्यापार जगत से दूर रहे ऐसे लोग भी इस क्षेत्र में उतर सकते हैं जो उद्यमिता की सोच रखते हों और इस अवसर को सही ढंग से पहचान सकें. अब गल्ले पर बैठे सेठ जी को तय करना है कि वे बदलते बाजार में बने रहना चाहते हैं या नहीं. उन्हें इस बदले बाजार में रहना है तो इसके नये नियमों के हिसाब से लड़ना होगा.

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