विश्वास बहाली की दिशा में अहम करार

भारत-चीन संबंधों का हालिया विरोधाभास यह है कि एक तरफ जहां दोनों देशों के बीच व्यापार बढ़ा है, दूसरी तरफ आपसी विश्वास में कमी आयी है. संबंधों का यही विरोधाभास दोनों देशों की एक-दूसरे से की जानेवाली अपेक्षाओं को तय करता है. अविश्वास इतिहास की देन है. इसका एक सिरा अगर दोनों देशों के बीच […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 25, 2013 2:57 AM

भारत-चीन संबंधों का हालिया विरोधाभास यह है कि एक तरफ जहां दोनों देशों के बीच व्यापार बढ़ा है, दूसरी तरफ आपसी विश्वास में कमी आयी है. संबंधों का यही विरोधाभास दोनों देशों की एक-दूसरे से की जानेवाली अपेक्षाओं को तय करता है. अविश्वास इतिहास की देन है.

इसका एक सिरा अगर दोनों देशों के बीच की सीमा रेखा अपरिभाषित छूट जाने से जुड़ा है, तो दूसरा सिरा इस सीमा रेखा के इर्द-गिर्द चीनी सेना की भड़काऊ चहलकदमियों और सीमा के आर-पार बहनेवाली नदियों का रुख मोड़ने की चीनी कवायद से. इसलिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की चीन-यात्रा की सफलता की जांच इस आधार पर की जानी चाहिए कि चीन के साथ संबंधों के विरोधाभास दूर करने के लिए समझौते की शक्ल में क्या-क्या हासिल हुए हैं. चीन के साथ नौ करारों पर हस्ताक्षर हुए हैं और इन करारों का प्रमुख स्वर सीमा विवाद को हल करना है.

सीमा-विवाद पर हुए करार के मुताबिक दोनों देशों के सैन्य मुख्यालयों के बीच प्राथमिकता के आधार पर संवाद बहाल किया जायेगा और सीमा पर तैनात सैनिकों की गतिविधियों पर अंकुश रखने के लिए दोनों देश कठोर नियम बनायेंगे. करार में यह भी कहा गया है कि दोनों देश सीमा के इर्द-गिर्द अपनी जरूरत के मुताबिक सैन्य-क्षमता मजबूत करने के लिए स्वतंत्र हैं. इससे चीन के साथ लगती सीमा पर भारत के लिए अपनी सैन्य उपस्थिति को मजबूत करने का रास्ता खुला है. जहां तक द्विपक्षीय व्यापार का सवाल है, भारत में इंडस्ट्रियल पार्क स्थापित कर चीन व्यापार घाटा कम करने की दिशा में पहल करने पर राजी हुआ है.

भारत ने व्यापार घाटे के मद्देनजर पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि वह फिलहाल क्षेत्रीय व्यापार संधि या मुक्त व्यापार संधि करने के मूड में नहीं है. एक अहम करार सीमा के आर-पार बहनेवाली नदियों पर बननेवाले ढांचे से संबंधित जरूरी सूचनाओं के आदान-प्रदान पर भी हुआ है. स्टेपल वीजा का मुद्दा उठा कर भारत ने वीजा संबंधी नियमों में चीन द्वारा चाही गयी ढील देने से भी इनकार किया. संक्षेप में, चीन के साथ संबंधों के हालिया इतिहास में पहली बार भारत व्यापार के सवाल को सीमा पर शांति और स्थिरता के सवाल से जोड़ने में सफल हुआ है. इस लिहाज से प्रधानमंत्री का चीन दौरा उपलब्धिपूर्ण कहा जायेगा.

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