विधवाओं की दशा पर भी सोचे समाज
आज देश-दुनिया के लोग चांद और मंगल पर घर बसाने की बात सोच रहे हैं, लेकिन देश की विधवाओं की दशा ज्यादा नहीं बदली. आज भी उन्हें सामाजिक प्रताड़ना का शिकार होना पड़ रहा है. देश के कई िहस्सों में आज भी िवधवाओं को कई तरह के सामाजिक प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता है. न […]
आज देश-दुनिया के लोग चांद और मंगल पर घर बसाने की बात सोच रहे हैं, लेकिन देश की विधवाओं की दशा ज्यादा नहीं बदली. आज भी उन्हें सामाजिक प्रताड़ना का शिकार होना पड़ रहा है.
देश के कई िहस्सों में आज भी िवधवाओं को कई तरह के सामाजिक प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता है. न तो वे खुलकर हंस-बोल सकती हैं और न ही किसी प्रकार का साज-शृंगार ही कर सकती हैं. यहां तक कि कई बार उनके िलए अच्छा पहनने और खाने की भी मनाही होती है.
दुख तो तब होता है, जब विवाह आदि मांगलिक कार्यों में उनका प्रवेश शुभ नहीं माना जाता है. यह हमारे उसी भारतीय समाज का दूसरा चेहरा है, जो प्रतिष्ठा के नाम पर युवतियों को मौत के घाट उतार देता है. आज वही समाज विधवाओं की दशा पर विचार क्यों नहीं करता?
– दक्ष श्रीवास्तव, रांची