आज देश का माहौल बिगड़ रहा है. धार्मिक आस्था के नाम पर नफरत की गंदी राजनीति की जा रही है. हर ओर अफवाहें फैल रही हैं. अफवाहों पर देश में भाईचारे का तानाबाना टूट रहा है और लोग एक-दूसरे की जान के दुश्मन बन गये हैं. आज राजनीति में भ्रष्टाचार से ज्यादा सांप्रदायिकता के पैर बढ़ने लगे हैं.
मजहब के नाम पर कत्लेआम हो रहा है और सियासतदां उसे अपनी-अपनी तरह से भुनाने में लगे हैं. दंगे में मारे जानेवालों की जान की बोली लगायी जा रही है.
लोगों की जान जा रही है, किसी का सुहाग उजड़ रहा है और किसी के घर का इकलौता चिराग बुझ रहा है, इसकी परवाह किसी को नहीं है. सभी को बस सत्ता पाने की परवाह है. फिलहाल, तो ऐसा ही लगता है कि सत्ता की नींव में सहिष्णुता अपना दम तोड़ रही है.
– अमृत कुमार, डकरा, खलारी