सूखे से त्रस्त किसानों के लिए बने नीति

भारत एक कृिष प्रधान देश है. यहां की 60 फीसदी आबादी अब भी खेती पर ही आश्रित है. वहीं, खेती भी पूरी तरह से मॉनसून पर निर्भर है. इस साल मॉनसून विदाई के कगार पर है, मगर देश में बारिश सामान्य से भी कम है. इससे इस साल भी देश के ज्यादातर भागों में सूखा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 24, 2015 12:11 AM
भारत एक कृिष प्रधान देश है. यहां की 60 फीसदी आबादी अब भी खेती पर ही आश्रित है. वहीं, खेती भी पूरी तरह से मॉनसून पर निर्भर है. इस साल मॉनसून विदाई के कगार पर है, मगर देश में बारिश सामान्य से भी कम है.
इससे इस साल भी देश के ज्यादातर भागों में सूखा के आसार दिखायी दे रहे हैं. यह बीते सौ वर्षों में चौथी बार ऐसा होने जा रहा है, जब देश में लगातार दो वर्षों तक सूखा पड़ा हो. मौसम की इस बार से बचाव के लिए कुशल प्रबंधन और स्थायी नीितयों का अभाव स्पष्ट रूप से दिखायी दे रहा है.
ऐसे में यह कहना गलत न होगा कि देश का िकसान न केवल बेकारी का शिकार होगा, बल्कि उसका पूरा परिवार भुखमरी की भी चपेट में आ जायेगा. एक तो वैसे ही कृषि ऋण व अन्य महाजनी कर्जों के बोझ तले दब कर किसान परेशान हैं. ऐसे में सरकार को चाहिए कि वे किसानों के परिवार के भरण-पोषण के लिए एक नयी नीति बनाये.
– लोकेश सिंह, ई-मेल से

Next Article

Exit mobile version