मर कर भी नहीं मरता रावण

डॉ सुरेश कांत वरिष्ठ व्यंग्यकार यह दशहरा भी निकल गया. आज के राम ने रावण को इस साल भी मार दिया और अगले साल फिर मारने के लिए अपने धनुष-बाण दीवार पर लटका दिये. अब वे पूरे साल उसे देखेंगे भी नहीं, ताकि उसे फिर से जीवित होने का मौका मिल सके. तभी तो वे […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 24, 2015 12:12 AM

डॉ सुरेश कांत

वरिष्ठ व्यंग्यकार

यह दशहरा भी निकल गया. आज के राम ने रावण को इस साल भी मार दिया और अगले साल फिर मारने के लिए अपने धनुष-बाण दीवार पर लटका दिये. अब वे पूरे साल उसे देखेंगे भी नहीं, ताकि उसे फिर से जीवित होने का मौका मिल सके. तभी तो वे अगले दशहरे पर उसे फिर से मार सकेंगे. कभी-कभी मैं सोचता हूं कि रावण को जब मारा गया था, तो क्या वाकई मारा भी गया था?

श्रीलंका में तो यह आम धारणा है कि रावण मरा नहीं था, सिर्फ बेहोश हुआ था और उसके नागवंशीय अनुचर उसके शरीर को उठा ले गये थे. श्रीलंकाई लेखक मिरांदो ओबेशेकरे ने गहन शोध के बाद पुरातात्त्विक साक्ष्यों के आधार पर लिखी अपनी पुस्तक ‘रावण, किंग आफ लंका’ में भी यही दावा किया है.

रावण आसानी से मरनेवाला बंदा था भी नहीं. दस-दस मुंह लिये उसका चलना-फिरना मुहाल रहता हो. जुकाम होने पर तो उसकी हालत और भी खराब हो जाती होगी. हम एक मुंह होने पर ही जुकाम से हफ्ते भर परेशान रहते हैं. फिर दवा किसी एक मुंह को दी जाती होगी, या सभी मुंहों में डाली जाती होगी?

खाना क्या सारे मुंह खाते होंगे? नहीं, उसके पास दस मुंह नहीं थे, बल्कि दस मस्तिष्कों जितनी बुद्धि अकेले के पास थी. तभी तो वह सभी देवताओं को कैद कर सका था. यम देवता उसकी कैद में था, जिसका मतलब है कि उसके राज में लोग आसानी से बीमार नहीं पड़ते थे, अकाल मृत्यु को प्राप्त नहीं होते थे.

अग्नि देवता उसकी कैद में था, जैसे आज वह गैस चूल्हे, गीजर, लाइटर, माचिस वगैरह में कैद है. यानी जो उपलब्धियां आज हमारे पास हैं, वे रावण के पास हजारों साल पहले ही थीं.

रावण के पास उस समय भी पुष्पक विमान था. वह गधा नहीं था, असुंदर भी नहीं था, जैसा कि हम उसे चित्रित करते हैं. वह शिवजी का इतना बड़ा भक्त था कि दस बार अपना शीश उन्हें अर्पित कर चुका था. कवि, संगीतज्ञ तो वह था ही. आज के अमेरिका की तरह उनकी एक समृद्ध आर्थिक और खुली सामाजिक व्यवस्था थी, जिसमें कोई स्त्री किसी को पसंद करने पर उससे प्रणय-निवेदन कर सकती थी, जैसा कि शूपर्णखा ने राम और लक्ष्मण से किया था.

राम और लक्ष्मण शूर्पनखा से स्पष्ट कह सकते थे कि हम शादीशुदा हैं और तुम्हारा प्रणय-निवेदन स्वीकार नहीं कर सकते, बजाय उसकी नाक काटने यानी अपमान करने के. रावण ने भी अपनी बहन का बदला लेने के लिए ही सीता का अपहरण किया, कोई बेगैरत भाई ही होता जो ऐसा न करता. रावण ने सीता की मर्यादा भंग नहीं की, फिर भी मर्यादा-पुरुषोत्तम हमने उन श्रीराम को कहा, जिन्होंने अपनी पत्नी के अपहृत होने का दंड अग्निपरीक्षा लेकर दिया.

इन सबके बावजूद जब त्रेता-युग में राम ने रावण को मार दिया, तो फिर वह आज तक जीवित कैसे है? अभी भी हर साल राम उसे मार देता है, तो भी वह मरता क्यों नहीं? राम उसे मारता भी है, या जो मारता है, वह राम होता भी है? लेकिन छोड़िए इन सवालों को और चलिए, मिल कर अगले दशहरे पर उसके फिर मारे जाने का इंतजार करें.

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