दशहरे के दिन राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की एक मुख्य सड़क पर कार-मुक्त यातायात (कार-फ्री डे) के आयोजन के उत्साहवर्द्धक नतीजे सामने आये हैं. पर्यावरण अध्ययन की संस्था सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वायर्नमेंट के अनुसार लाल किले से इंडिया गेट तक सुबह सात से रात 12 बजे तक कारों के बिना ट्रैफिक से उस क्षेत्र में वायु प्रदूषण में अन्य दिनों की अपेक्षा 60 फीसदी की कमी रही.
आम दिनों में उस सड़क पर और उसके इर्द-गिर्द प्रदूषण का स्तर राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता के स्तर से सात गुना और विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों से 16 गुना अधिक होता है.
ग्रीनपीस के आकलन के मुताबिक, कार-मुक्त यातायात के बाद यह स्तर राष्ट्रीय गुणवत्ता स्तर से तीन गुना और वैश्विक मानक से सात गुना अधिक रहा. कुछ दिन पहले दिल्ली से सटे गुड़गांव शहर में भी ऐसी एकदिवसीय पहल हुई थी. वायु प्रदूषण के मामले में दिल्ली भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया में अव्वल माना जाता है.
इसका बड़ा कारण वाहन से होनेवाला प्रदूषण है. शहर में करीब 85 लाख कारें हैं और रोजाना 1,400 नयी कारें सड़क पर आती हैं. यातायात-संबंधी प्रदूषण में 62 फीसदी हिस्सा अकेले कारों से होनेवाले प्रदूषण का है. यह स्थिति दिल्ली तक ही सीमित नहीं है. देश के तमाम महानगरों एवं शहरों में वायु की गुणवत्ता लगातार खराब हो रही है. इसका कारण यह है कि भारत में ज्यादातर वाहन अब भी पेट्रोल और डीजल पर चलते हैं, जो पर्यावरण के लिहाज से अत्यधिक खतरनाक ईंधन हैं. सरकार ने हाल में संयुक्त राष्ट्र में वादा किया है कि 2030 तक देश की ऊर्जा जरूरतों के 40 फीसदी हिस्से को अक्षय ऊर्जा से पूरा किया जायेगा.
बहरहाल, दिल्ली के इस आयोजन को सांकेतिक भले माना जाये, पर इसके संदेश निश्चित रूप से गहरे हैं. यदि लोग कारों और अन्य वाहनों का प्रयोग सीमित कर सार्वजनिक वाहन या स्वस्थ साधनों से यात्रा करें, तो प्रदूषण की गंभीर होती समस्या पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है.
वर्ष 2010 के बाद देश में सांस की गंभीर बीमारियों के शिकार लोगों की संख्या में 30 फीसदी की बढ़त दर्ज की गयी है और चिकित्सकों ने वायु की गुणवत्ता में तेजी से हो रही गिरावट को इसका कारण माना है. इससे पहले कि मसला अनियंत्रित हो जाये, सरकारों को इस दिशा में ठोस एवं सुविचारित कदम उठाना चाहिए. प्रदूषण के गंभीर होते खतरों के मद्देनजर लोगों को भी कारों के कम-से-कम इस्तेमाल के बारे में सोचना चाहिए.