अमरावती से आशाएं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को आंध्र प्रदेश की नयी राजधानी अमरावती की आधारशिला रखी. प्रदेश की पुरानी राजधानी हैदराबाद के नये राज्य तेलांगाना में चले जाने के बाद विजयवाड़ा और गुंटूर के पास 7,420 वर्ग किलोमीटर के दायरे में नयी राजधानी विकसित की जा रही है. इस क्षेत्र में ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्व का […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 24, 2015 12:13 AM
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को आंध्र प्रदेश की नयी राजधानी अमरावती की आधारशिला रखी. प्रदेश की पुरानी राजधानी हैदराबाद के नये राज्य तेलांगाना में चले जाने के बाद विजयवाड़ा और गुंटूर के पास 7,420 वर्ग किलोमीटर के दायरे में नयी राजधानी विकसित की जा रही है. इस क्षेत्र में ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्व का शहर अमरावती भी है, इसलिए नयी राजधानी का नामकरण इसी के नाम पर किया गया है.
सिंगापुर की तर्ज पर बसनेवाला अमरावती शहर उससे करीब 10 गुना बड़ा होगा. इस समय देश में चार राज्यों की राजधानियों को नियोजित शहरों की श्रेणी में गिना जाता है- गांधीनगर, चंडीगढ़, भुवनेश्वर और नया रायपुर. ऐसे में अमरावती को एक अत्याधुनिक शहर के रूप में विकसित करने की महत्वाकांक्षी परियोजना नियोजित शहरीकरण का अप्रतिम उदाहरण हो सकती है.
सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की सहभागिता से पूरी होनेवाली यह परियोजना आर्थिक संभावनाओं से भी लबरेज है. हालांकि, इसके लिए अधिगृहित कुछ भूमि को लेकर कुछ प्रश्न और विवाद हैं, पर अब तक जिस तरह से 33 हजार एकड़ जमीन किसानों से ली गयी है और जिन शर्तों पर करार किये गये हैं, वह एक उदाहरण हो सकता है.
इसमें किसानों को दस वर्षों तक मुआवजा देने के साथ ही नये शहर में आवासीय एवं वाणिज्यिक उपयोग के लिए जमीन आवंटन का प्रस्ताव भी है. नयी राजधानी को उसके सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संदर्भों से जोड़ने की पहल सराहनीय है. इससे यह उम्मीद भी बढ़ी है कि अमरावती निवेशकों और कारोबारियों का ही नहीं, जनता की आकांक्षाओं को पूरा करने का केंद्र बनेगा. सिंगापुर एक विकसित नगर-गणराज्य है. वहां की सरकार और नागरिकों की उद्यमशीलता तथा सार्वजनिक जीवन में पारदर्शिता उसकी समृद्धि का आधार है.
यदि अमरावती उन कसौटियों पर खरा उतरता है, तो यह देश की अन्यतम उपलब्धि होगी, जो अन्य शहरों के लिए अनुकरणीय भी होगी. हालांकि, हमारे देश में शहरी नियोजन की त्रासदी है कि उसमें दूरदर्शिता का अभाव होता है और जल्दी ही नियोजन के उद्देश्य बिखरने लगते हैं.
ऐसे में यह जरूरी है कि आंध्र सरकार दीर्घकालीन परिदृश्य के अनुरूप योजनाओं का कार्यान्वयन करे और पर्यावरण संरक्षण पर भी उचित ध्यान दे. साथ ही कृषि भूमि के अधिग्रहण से उपजी खाद्यान्न उत्पादन कम होने की चिंताओं से निपटने के लिए भी सरकार को कोई दूरदर्शी नीति पेश करनी चाहिए.

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