लहू लानत है एलान-ए-जंग होने तक

।। कमलेश सिंह।।(इंडिया टुडे ग्रुप डिजिटल के प्रबंध संपादक)भारत अपनी पश्चिमी सीमा पर युद्ध लड़ रहा है. एक महीने से निरंतर पचासों जगहों पर गोली और गोलाबारी जारी है. हमारे सैनिक शहीद हो रहे हैं, हमने कई दुश्मन भी मारे हैं. सब ख्वामख्वाह, क्योंकि हम युद्ध को युद्ध नहीं कहते, जब तक युद्ध की औपचारिक […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 26, 2013 2:53 AM

।। कमलेश सिंह।।
(इंडिया टुडे ग्रुप डिजिटल के प्रबंध संपादक)
भारत अपनी पश्चिमी सीमा पर युद्ध लड़ रहा है. एक महीने से निरंतर पचासों जगहों पर गोली और गोलाबारी जारी है. हमारे सैनिक शहीद हो रहे हैं, हमने कई दुश्मन भी मारे हैं. सब ख्वामख्वाह, क्योंकि हम युद्ध को युद्ध नहीं कहते, जब तक युद्ध की औपचारिक घोषणा नहीं हो जाये. बिना घोषणा होना तो होना भी नहीं है. मोदीजी बीजेपी में कतई कद्दावर हो जायें, आडवाणीजी की वाणी का खराश उदास उस दिन हुआ जिस दिन इसकी औपचारिक घोषणा हुई. बच्चे ने जनम लिया, किलकारी भी सुनी, पर नोटिस तभी लेंगे जब कोई थाली खड़कायेगा. पुल बनके तैयार है, लोग जा भी रहे हैं, पर उसे खुला तभी माना जायेगा, जब मंत्रीजी फीता काटेंगे.

भयंकर सूखे में भूखे किसान की पेट-पीठ एक होकर मदद को चिल्लाते रहें, पर सरकार जब तक जिले को सूखाग्रस्त घोषित न कर दे, राहत की रसद रसीद नहीं होती. गर्दन तक पानी में सरकारी अमला बाढ़ग्रस्त घोषित होने का इंतजार करता है. गरीबी की रेखा है, इसके नीचे आइये. जाति प्रमाणपत्र भी साथ लाइये. कायदे-कानून का हिसाब है, चीख-ओ-पुकार का जवाब है कि आते हैं, बस घोषणा हो जाने दो. महंगाई दर की घोषणा होती है, जिसमें महंगाई बढ़ती भी है और घटती भी. हकीकत में किसी ने घटते नहीं देखा, पर हकीकत से औपचारिकता को लेना क्या और देना क्या. मुंह औपचारिक है, उसमें राम रहते हैं, बगल अनौपचारिक है, वहां छुरी का निवास है. औपचारिक से फायदा तो राम जानें, पर छुरी की धार से नुकसान होता ही है. जब तक हमको कोई औपचारिक रूप से नहीं काटता, हम बहते खून को भी जख्म मानने से इनकार करते हैं. शरीफ के प्रधानमंत्री बनने पर हम औपचारिक तौर पर बड़े गदगद हुए. हमारे अग्रिम पंक्ति ने बयान दिये कि एक लोकतांत्रिक और सशक्त पाकिस्तान भारत के हित में है. अरे भैया, लोकतांत्रिक और सशक्त पाकिस्तान तो पाकिस्तान के हित में होना चाहिए, पर हकीकत से औपचारिकता को लेना क्या और देना क्या. अगर आपका दुश्मन सशक्त होता है और आपको उसमें आपका हित नजर आता है, तो नजर की कमजोरी का इलाज करवाइये. छ: दशकों से आपके बालू के शांतिस्तूप भसक रहे हैं और आप एक कबूतर कांख में लिए ठसक रहे हैं.

रिश्ते की डोर तार-तार है, पर औपचारिक तौर पर तोड़ना नहीं चाहते. करगिल भी औपचारिक तौर पर संघर्ष ही रहा. युद्ध कहते किसको हैं? लड़ने को या लड़ने की घोषणा को. माना कि उसके पास भी बम है, पर लड़ाइयां बम से नहीं, दम से जीती जाती हैं. दुश्मन में दम नहीं, खम है और उसको ये भरम है कि उसने आपका दम आजमा लिया है. हर नश्तर के बाद आप चिचियाएंगे, धमकाएंगे और जब जख्म भरना शुरू हो जायेगा तो फिर हाथ मिलाएंगे. ये भरम बेवजह नहीं है. बीस सालों में उसने यही देखा है. भरम बम से नहीं, दम से टूटेगा. औपचारिक घोषणा करनी पड़ेगी कि हमारे नहीं का मतलब नहीं ही होता है.

हाफिज सईद तुम्हें अजीज है तो खुदा हाफिज. जब तक तुम्हारी आदतें नहीं बदलती, चूल्हा-चौका अलग. आना-जाना बंद. खाना-खिलाना बंद. खेलना-गाना बंद, दिखावे का दोस्ताना बंद. वे सारे मुल्क, जो हमारे पड़ोसी से रिश्ता रखेंगे, उनसे यह सीधा संवाद कि या उसकी सुनो, या हमको चुनो. भारत सबसे बड़ा बाजार होने का दम भरता है, पर कभी उस दम का उपयोग नहीं करता. औपचारिक तौर पर दुनिया को बताना पड़ेगा कि हमारे दुश्मन से रिश्ता रखेंगे तो हमारे रिश्ते में खटास का एक पुट आयेगा, जोरन दूध में जायेगा. और चीज एक बार खट्टी हो जाये, तो उसे खराब होने में देर नहीं लगती.

पर करें कैसे? औपचारिक तौर पर हम दुश्मन ही नहीं हैं. घोषणा जो नहीं हुई. बाइबल की लाइन अटलजी दुहरा गये कि हम दोस्त चुन सकते हैं, पड़ोसी नहीं. सही है. पर बदकिस्मती यही है कि ऐसा पड़ोसी मिला है. पड़ोसी को दोस्त बनाना जरूरी नहीं है. पड़ोसी अगर मित्र हो तो सोने पर सुहागा. पर सुहागे के चक्कर में सोने को अभागा ही लुटाता है.

हमें शिकायत है कि वह हमें मोस्ट-प्रेफर्ड नेशन का दर्जा नहीं देता. पाकिस्तान के पास देने को है क्या आतंक के सिवा? बांग्लादेश से जमीन की अदलाबदली पर समझौता हो गया है, दस्तखत नहीं होने से रिश्ते पर खतरा है. नेपाल अब भी चीन की गोद में नहीं बैठा, पर हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे, तो उठ बैठेगा इक दिन. अपने अच्छे पड़ोसियों और दुनिया के दोस्तों के लिए वक्त ही नहीं है, क्योंकि हम उलङो हुए हैं एक पड़ोसी को सुलझाने में पैंसठ साल से. हमसे उलझता रहता है, हम उसे समझाते रहते हैं. नासमझ आग लगाता है, हम बुझाते हैं. हमको बुझाता नहीं कि इतनी लगन कहीं और लगायी होती तो कम-अज-कम जाया न होती!

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