राहुल का बयान और जनभावना
जनभावना को समझना, उसकी अभिव्यक्ति के लिए सटीक शब्द और वक्त का चुनाव करना सफल संप्रेषण की बुनियादी शर्त है. संप्रेषण की सफलता नेता को लोकप्रिय बनाती है. परंतु, जनभावनाएं बहुधा किसी घटना से संबंधित आधे-अधूरे तथ्यों या अफवाहों के आधार पर बनती हैं. इसलिए, जनभावनाओं की अभिव्यक्ति अपने संस्कार की भी मांग करती है. […]
जनभावना को समझना, उसकी अभिव्यक्ति के लिए सटीक शब्द और वक्त का चुनाव करना सफल संप्रेषण की बुनियादी शर्त है. संप्रेषण की सफलता नेता को लोकप्रिय बनाती है. परंतु, जनभावनाएं बहुधा किसी घटना से संबंधित आधे-अधूरे तथ्यों या अफवाहों के आधार पर बनती हैं. इसलिए, जनभावनाओं की अभिव्यक्ति अपने संस्कार की भी मांग करती है. ऐसे में सफल नेता की जिम्मेवारी दोहरी हो जाती है.
एक तो उसे किसी मुद्दे के इर्द-गिर्द उभरी जनभावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए सटीक शब्द व माकूल वक्त का चयन करना पड़ता है, दूसरे यह भी देखना पड़ता है कि जनभावनाओं की अभिव्यक्ति अधपके ढंग से न हो. अगर नेता राहुल गांधी सरीखा हो तो यह और भी जरूरी हो जाता है, क्योंकि वे अपनी पार्टी में अत्यंत महत्वपूर्ण पद पर तो हैं ही, साथ ही उनकी छवि एक ऐसा नेता की है जो युवा पीढ़ी और आम आदमी के लिए नये किस्म की राजनीति की बात करता है. इस लिहाज से देखें तो एक चुनावी सभा में राहुल का यह कहना कि मुजफ्फरनगर के दंगा-पीड़ित परिवारों के नौजवानों से आइएसआइ (पाक की कुख्यात गुप्तचर संस्था) संपर्क साध रही है, असावधानी भरा बयान है, भले ही इसे जनभावनाओं की नुमाइंदगी की मंशा से कहा गया हो.
अब तक यह बात न तो यूपी सरकार ने कही है, न ही केंद्र सरकार या उसकी किसी जांच एजेंसी ने. ऐसे में राहुल के इस बयान को एक तो भारत की खुफिया और सुरक्षा-व्यवस्था को लचर करार देना माना जायेगा, दूसरे दंगा-पीड़ित परिवारों के नौजवानों के बारे में यह संकेत भी जायेगा कि उन्हें राष्ट्र विरोधी तत्व अपनी जरूरत के हिसाब से फुसला सकते हैं. यह ठीक है कि चुनावी वेला में नेताओं की बात पर स्वयं के संयम का अंकुश तनिक ढीला पड़ जाता है और वे ऐसी बहुत सी बातें कह जाते हैं जिनका वास्ता तथ्यों से कम, अफवाहों से ज्यादा होता है. पर, संयम का अंकुश हर बात की अभिव्यक्ति में ढीला नहीं छोड़ा जा सकता, खास कर तब जब बात सीधे-सीधे देश के अल्पसंख्यक तबके या किसी पड़ोसी देश से बननेवाले संबंध से जुड़ी हो. ऐसी बातें अतिरिक्त सतर्कता की अपेक्षा करती हैं. उम्मीद की जानी चाहिए कि नयी पीढ़ी के राजनेता के रूप में राहुल इस अपेक्षा को पूरा करने पर ध्यान देंगे.