आस्था की आड़ में चंदा वसूली गलत
हमारा समाज आस्था प्रधान है, लेकिन कुछ धार्मिक लोग ही आस्था पर प्रहार करते नजर आते हैं. जब भी सामूहिक तौर पर पूजा-अर्चना अथवा किसी धार्मिक अनुष्ठान का समय आता है, तो उसके आयोजक सड़कों और गलियों में चंदा वसूलते नजर आते हैं. दुख तो तब होता है, जब लोग चंदा के नाम पर लोगों […]
हमारा समाज आस्था प्रधान है, लेकिन कुछ धार्मिक लोग ही आस्था पर प्रहार करते नजर आते हैं. जब भी सामूहिक तौर पर पूजा-अर्चना अथवा किसी धार्मिक अनुष्ठान का समय आता है, तो उसके आयोजक सड़कों और गलियों में चंदा वसूलते नजर आते हैं. दुख तो तब होता है, जब लोग चंदा के नाम पर लोगों से जोर-जबरदस्ती करते नजर आते हैं.
देश में अभी एक बड़े धार्मिक अनुष्ठान का समापन ही हुआ है कि आयोजक अभी से ही दूसरे और तीसरे अनुष्ठान की तैयारी में जुट गये हैं. युवकों का समूह बाजारों की दुकानों और मोहल्लों के मकानों से अलग-अलग टोलियों में चंदा वसूलने निकलते हैं. चंदा वसूलनेवालों के व्यवहार से लोग की भावना आहत होती है. यहां तक कि लोग मार-पीट करने से भी बाज नहीं आते. सामाजिक और धार्मिक कार्यों में हर किसी का सहयोग अपेक्षणीय है, लेकिन जोर-जबरदस्ती के साथ किसी से सहयोग लेना भी गलत है.
– अनुपम सिन्हा, रांची