स्त्रीवाद के पक्ष में हैं या खिलाफ!

सुजाता स्वतंत्र टिप्पणीकार हाशिये के विमर्शों के फलने-फूलने के दो परिणाम हुए. एक तो जो बड़ी संख्या में दबी-छिपी आवाजें लगातार सामने आ रही हैं और दूसरा, जो उन्हें हलके में लिये जाने का मुख्यधाराई अवचेतन तैयार हुआ है. किसी ने पिछले दिनों कहा, ‘आप स्त्री विषयों के अलावा कुछ और नहीं लिख सकतीं? कुछ […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 27, 2015 12:48 AM

सुजाता

स्वतंत्र टिप्पणीकार

हाशिये के विमर्शों के फलने-फूलने के दो परिणाम हुए. एक तो जो बड़ी संख्या में दबी-छिपी आवाजें लगातार सामने आ रही हैं और दूसरा, जो उन्हें हलके में लिये जाने का मुख्यधाराई अवचेतन तैयार हुआ है.

किसी ने पिछले दिनों कहा, ‘आप स्त्री विषयों के अलावा कुछ और नहीं लिख सकतीं? कुछ गंभीर और पॉलिटिकल!’ यह अटपटी सी बात थी, लेकिन सच यही है कि बहुसंख्य बुद्धिजीवी स्त्री मुद्दों को अराजनीतिक और अगंभीर मानते हैं. यह सिद्ध भी करता है कि इंटेलिजेंसिया के बीच प्रमाणपत्र देने का अधिकार किसके पास है और क्यों है!

जब हम मुख्यधारा के राजनीतिक मुद्दों के सामने सिरे से स्त्रीवाद को नकारते हैं, तो उसके साथ स्त्री-संघर्ष के पूरे इतिहास को भी नकार देते हैं.

स्त्रीवादी आंदोलन की शुरुआत ही स्त्री के राजनीतिक अधिकारों को लेकर हुई थी. एक लंबे संघर्ष के बाद औरतों को एक सम्मानित नागरिक की तरह वोट डालने का अधिकार मिला. स्त्रीवाद का पहला चरण स्त्री मुद्दों के राजनीतिकरण का ही दौर है. द्वितीय और तृतीत चरण तक मोर्चेबद्ध रूप से विश्वभर की स्त्रियों ने स्त्री शिक्षा, स्वास्थ्य, बराबरी, समान कानून और रोजगार के कई मुद्दों को राजनीतिक बहसों में पहुंचाया और कई महत्वपूर्ण मकाम हासिल किये हैं.

इस राजनीतिक चाल को पहचाना गया कि पर्सनल और प्राइवेट मसला कह कर स्त्रियों के साथ हर स्तर पर भेदभाव और अन्याय हुआ है. पर्सनल कहते ही घरेलू हिंसा, कन्या भ्रूण हत्या, दहेज और घरों, दफ्तरों व सड़कों पर होनेवाली स्त्री के खिलाफ हिंसा नजरअंदाज कर दी जाती है. जब तक कि एक‌ बड़ा आंदोलन चला कर घरेलू उत्पीड़न के मुद्दे का राजनीतिकरण नहीं किया गया, तब तक यह मुद्दा ‘घर की बात घर में ही’ वाले अंदाज में दबा रहा.

दरअसल, यथास्थिति को बनाये रखने के लिए स्त्रीवादी मुद्दों को नजरअंदाज किया जाता है. हम नहीं चाहते कि लड़कियों के कपड़े पहनने, सड़कों पर वक्त-बेवक्त घूमने की आजादी, वैवाहिक बलात्कार जैसे तमाम मुद्दे राजनीतिक हों और उन पर खुली बहसें हों. इसलिए दुनिया की आधी आबादी अराजनीतिक होकर जीने को विवश है. आशय यह कि स्त्री से जुड़े मुद्दे राजनीतिक मुद्दे हैं, यह समझना जितना समझ की दरकार रखता है, उतना ही नीयत की भी.

स्त्रीवाद एक राजनीतिक और दार्शनिक अवधारणा है. इसके पीछे कई आंदोलनों और संघर्षों का इतिहास है. स्त्रीवाद एक पॉलिटिकल स्टैंड है. राजनीति विज्ञान के तहत इसे पढ़ाया जाता है.

फेमिनिस्ट थ्योरीज बाकी राजनीतिक दर्शनों की तरह ही उन बौद्धिक औजारों का इस्तेमाल करती है, जिनके जरिये आप स्त्री शोषण को एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में समझ सकते हैं और आगे की रणनीतियां तैयार करते हैं. जैसे आपकी राजनीतिक पक्षधरता है, तो आप पूछते हैं- पार्टनर, तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है! ऐसे ही आज यह जायज सवाल होना चाहिए कि आप स्त्रीवाद के पक्ष में हैं या खिलाफ. तट पर स्थित रहनेवालों के लिए राजनीति नहीं है.

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