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गीता की वापसी

करीब 15 साल पाकिस्तान के एक अनाथालय में गुजारने के बाद गीता भारत आ गयी है. वर्षों पहले जब गीता भटकती हुई पाकिस्तानी सुरक्षाकर्मियों को मिली थी, तब अपने और अपने परिवार के बारे में कुछ नहीं बता सकती थी, क्योंकि वह जन्म से ही मूक और बधिर थी. पर, अब्दुल सत्तार ईधी, बिल्किस ईधी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 27, 2015 12:49 AM
करीब 15 साल पाकिस्तान के एक अनाथालय में गुजारने के बाद गीता भारत आ गयी है. वर्षों पहले जब गीता भटकती हुई पाकिस्तानी सुरक्षाकर्मियों को मिली थी, तब अपने और अपने परिवार के बारे में कुछ नहीं बता सकती थी, क्योंकि वह जन्म से ही मूक और बधिर थी.
पर, अब्दुल सत्तार ईधी, बिल्किस ईधी और फैसल ईधी के समाजसेवी संगठन की छांव में उसे डेढ़ दशक तक पनाह मिली. ईधी फाउंडेशन गीता जैसे हजारों मासूमों, गरीबों और लाचारों के लिए किसी घर से कम नहीं है. इस संस्था के अलावा, पाकिस्तान के जाने-माने मानवाधिकार कार्यकर्ता अंसार बर्नी और दोनों देशों की सरकारों के प्रयासों से गीता अपने देश वापस आ सकी है. उम्मीद है कि वह जल्द ही अपने परिजनों के साथ होगी.
यह चर्चा आम है कि दो माह पहले प्रदर्शित बॉलीवुड फिल्म ‘बजरंगी भाईजान’ की वजह से गीता की वापसी संभव हो सकी है. लेकिन, इस तरह की बहस फिजूल है, क्योंकि गीता के घर-परिवार को खोजने की कोशिशें 2007 से ही चल रही हैं. वैसे भी किसी भारतीय और पाकिस्तानी के भटक कर पड़ोसी देश चले जाने के विषय पर दोनों देशों में फिल्में बन चुकी हैं.
इसका सीधा कारण है कि ऐसी घटनाओं का लंबा सिलसिला है. ऐसे में, गीता के भारत आने की परिघटना दोनों देशों के बीच तनाव और द्वेष के माहौल पर मानवीय सरोकारों और सुख-चैन की संभावनाओं की जीत का एक उदाहरण है. भारत और पाकिस्तान के विभाजन के बाद चार युद्धों, असंख्य हिंसक झड़पों और छद्म संघर्षों में दोनों ओर के कुल एक लाख से अधिक लोग मारे जा चुके हैं.
कूटनीतिक दांव-पेचों के कारण वीजा न मिलने से अकसर लोग सरहद पार बसे अपने परिजनों से नहीं मिल पाते हैं. सामाजिक-सांस्कृतिक गतिविधियों से जुड़े लोगों को भी एक-दूसरे देश की यात्रा करने में काफी मुश्किलें उठानी पड़ती हैं. परस्पर द्वेष और अविश्वास की भावना सिर्फ सरकारी या आधिकारिक स्तर पर ही नहीं है, यह काफी हद तक जन-मानस में भी पैठी हुई है. इसी वजह से क्रिकेट का मैदान भी संघर्ष क्षेत्र बन जाता है. दोनों देशों में कई बार ऐसा हो चुका है, जब लोगों ने एक-दूसरे के हाथों पराजित होने पर अपने खिलाड़ियों के साथ अभद्र व्यवहार किया है.
यह अफसोस की बात है कि दोनों ही देशों में राजनीतिक तत्व कटुता की इस भावना का दोहन अपने राजनीतिक स्वार्थों के कारण करते रहे हैं. सीमा के दोनों तरफ ऐसे तत्वों की भी बड़ी तादाद है, जो राजनीतिक और कूटनीतिक मसलों के आधार पर लेखकों, कलाकारों तक की गतिविधियों को रोकने का काम करते हैं. इधर अगर गजल गाने से किसी को रोका जाता है, तो उधर किसी फिल्म पर पाबंदी लगाने की मांग होती है. जरा ठहर कर सोचा जाये कि अगर दोनों देशों के बीच संबंध सामान्य होते और भरोसे का माहौल होता, तो क्या गीता को इतने वर्षों तक अपने वतन और परिवार से दूर किसी अनाथालय में रहना पड़ता!
इस समय भारत-पाक की जेलों में दोनों देशों के सैकड़ों लोग बंद हैं. इनके अलावा कई सैनिक युद्ध-बंदी भी हैं. युद्धों को खत्म हुए दशकों बीत गये हैं, पर बंदियों की सूची पर भी दोनों देशों में मतभेद हैं.
यही हाल जेलों में बंद लोगों की संख्या को लेकर भी है. इनमें से अधिकतर लोगों पर मामूली अपराधों के मामले हैं और उनमें से कई संविधान में निर्धारित सजा से अधिक समय सलाखों के पीछे काट चुके हैं. गीता की वापसी दोनों देशों, खासकर सरकारों, कूटनीतिज्ञों और राजनीतिक संगठनों, के लिए एक संदेश है कि हमें मानवता के उच्चतम आदर्शों के अनुरूप आचरण करना चाहिए, ताकि किसी भूली-भटकी गीता या राह भटक गये रमजान के लिए घर की दूरी बरसों में न हो.
यह एक तथ्य है कि दो पड़ोसी देश शांति और भाईचारे के साथ ही बेहतर भविष्य का निर्माण कर सकते हैं. विभाजन के बाद की तमाम हिंसा, मौतों, तबाहियों का सबक भी यही है कि भारत और पाकिस्तान के सत्ता-प्रतिष्ठान दोनों देशों के बीच अमन-चैन और भरोसे की बहाली के लिए हर-संभव कोशिश करें.
ऐसा माहौल बनाने के लिए आम नागरिकों, यात्रियों, लेखकों और कलाकारों की आवाजाही को सुनिश्चित करना आवश्यक शर्त है. संवादों और संसर्गों से ही लोग एक-दूसरे को नजदीक से समझ सकेंगे तथा पड़ोसी के रूप में प्यार से रहने का जरूरी भरोसा पैदा कर सकेंगे. सिविल सोसायटी और सामाजिक कार्यकर्ताओं के प्रयास से कभी-कभी इस दिशा में पहल होती रही है तथा गाहे-ब-गाहे इनमें सरकारी मदद भी मिलती है.
जरूरी है कि दोनों देशों के नागरिक संगठन मेल-मिलाप तथा आवाजाही बढ़ाने की दिशा में और अधिक सक्रियता दिखाएं, ताकि भविष्य में किसी भटके भारतीय या पाकिस्तानी को वतन लौटने में सालों का वक्त न लगे.

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