बचकाने मिथकों पर भरोसा
आकार पटेल कार्यकारी निदेशक, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया अपने देश और अपने बारे में अधिकतर भारतीयों की दो बड़ी मान्यताओं पर मैं लिखना चाहता था. कुछ दिन पहले केंद्रीय मंत्री वेंकैया नायडू ने एक कार्यक्रम में इन धारणाओं को दोहराया था. उन्होंने कहा, ‘आजकल कहा जा रहा है कि देश में सहिष्णुता कम होती जा रही […]
आकार पटेल
कार्यकारी निदेशक, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया
अपने देश और अपने बारे में अधिकतर भारतीयों की दो बड़ी मान्यताओं पर मैं लिखना चाहता था. कुछ दिन पहले केंद्रीय मंत्री वेंकैया नायडू ने एक कार्यक्रम में इन धारणाओं को दोहराया था. उन्होंने कहा, ‘आजकल कहा जा रहा है कि देश में सहिष्णुता कम होती जा रही है.
भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जहां सहिष्णुता है, भले ही वह सौ फीसदी नहीं है, फिर भी कम-से-कम 99 फीसदी तो है ही.’ बकौल नायडू, ‘भारत पर अनेक आक्रमण हुए, पर ऐसा एक भी उदाहरण नहीं है कि भारत ने किसी देश पर हमला किया हो. भारतीयों की मनोवृत्ति भी ऐसी नहीं है. हम सभी धर्मों का सम्मान करते हैं. यही भारत की महानता है. सहिष्णुता तो भारतीयों के खून में समाहित है.’
दो धारणाएं ऐसी हैं, जिन्हें अधिकतर भारतीय मानते हैं. पहली, भारत केवल आक्रमणों का शिकार रहा है और भारतीयों ने कभी दूसरे देश पर हमला नहीं किया. दूसरी, भारतीय (यहां इसका अर्थ हिंदुओं से है) अनोखे हैं, क्योंकि उनमें सहिष्णुता है. भारतीय एकमात्र ऐसे लोग हैं, जो अपने विजेताओं के साथ रहने को लेकर सहनशील हैं.
आइए, दूसरी धारणा पर पहले नजर डालते हैं. भारत इस मामले में अकेला देश नहीं है. फ्रांसीसियों ने 1066 में इंग्लैंड को जीता था, उसी शताब्दी में मुसलमानों ने उत्तर भारत में विजय प्राप्त की थी.
भारत के विपरीत, आज भी ब्रिटेन के उच्च एवं कुलीन वर्ग का अधिकांश विदेशी मूल का है. स्वयं महारानी एलिजाबेथ सैक्से-कोबर्ग गोथा के शाही वंश से हैं. जैसा कि नाम से ही ज्ञात होता है, यह अंगरेजी नहीं, जर्मन भाषा से है. विश्व युद्ध के दौरान जर्मन विरोधी भावनाओं के कारण इसका नाम बदल कर विंड्सर रखा गया था. परंतु ब्रिटेन का उच्च वर्ग अपनी विदेशी जड़ों पर गर्व करता है और इसकी वजह से जनमानस में उनके प्रति कोई असंतोष नहीं है.
बहरहाल, दो सौ साल बाद कुबलई खान के नेतृत्व में मंगोलों ने चीन को जीता था और वे उसी समाज के हिस्सा बन कर वहीं रह गये. चीन में यूवान के मंगोल वंश को आधिकारिक राजवंशों में सम्मान के साथ गिना जाता है, न कि एक विदेशी आक्रांता के रूप में.
उत्तर अफ्रीका के देश कई नस्लों को मिला कर बने हैं, जो 450 ईसा पूर्व या शायद इससे भी पहले घुल-मिल गये थे (लगभग उसी दौर में हेरोडोटस ने इतिहास की पहली किताब लिखी थी). वे हमारी तुलना में बहुत पहले से सहिष्णु हैं. तुर्की को मध्य एशियाई तुर्कों ने जीता था और उस पर यूनान समेत विभिन्न मूल के लोगों का शासन रहा था. तुर्की को अनातोलिया कहा जाता है, क्योंकि यूनानी भाषा में पूरब के लिए अनातोल शब्द है. इसी कारण से साइप्रस आधा तुर्की और आधा यूनानी है. भारत और पाकिस्तान की तरह दोनों देशों के लोग एक-दूसरे के प्रति बहुत विद्वेष की भावना रखते हैं.
हंगरी नाम हूणों ने दिया है, जो मध्य एशिया के एक कबीले से थे. उन्होंने यूरोप को जीता और उन्हीं में घुल-मिल गये. हंगेरियन इंडो-यूरोपीय भाषा-समूह का हिस्सा नहीं है. उज्बेक और ताजिक जैसी मध्य एशियाई नस्लें कई तरह के लोगों से मिल कर बनी हैं. यूनानी लोगों ने मिस्र पर सदियों से राज किया और उन्हीं में घुल-मिल गये.
ये कुछ उदाहरण हैं, जो याद आ रहे हैं. इस तरह के कई उदाहरण दिये जा सकते हैं. इसलिए वैंकेया नायडू का यह कहना गलत है कि हिंदू इस मायने में असाधारण हैं, क्योंकि हमने उन लोगों को ‘सहन’ किया या उनके साथ रहना स्वीकार किया जिन्होंने हमें जीता था.
अब इस दूसरी धारणा पर आते हैं कि भारतीयों ने कभी किसी दूसरे देश पर आक्रमण नहीं किया. इसके लिए हमें बहुत दूर जाने की जरूरत नहीं है. भारतीय शासक रणजीत सिंह के जनरलों ने काबुल को जीता था. यह सही है कि रणजीत सिंह स्वयं को ‘भारतीय’ के बजाय पंजाबी के रूप में देखते, क्योंकि तब भारत एक राष्ट्र-राज्य के रूप में स्थापित नहीं हुआ था, पर यह एक मामूली बात है.
सम्राट अशोक के प्रसिद्ध स्तंभों में से एक कंधार में है और मुझे संदेह है कि इन्हें सम्मान के साथ वहां स्थापित किया गया होगा. संभवतः या तो उन्होंने अफगानों पर हमला किया होगा या हमले की धमकी दी होगी.
कुछ लोग यह कह सकते हैं कि अफगानिस्तान भी भारत का ही हिस्सा है. इस पर मेरा यही कहना है कि महमूद गजनी, इब्राहिम लोधी और शेर खान सूरी के उत्तर भारत पर जीत का इतिहास देखें, तो यह भी कहा जा सकता है कि भारत अफगानिस्तान का हिस्सा है.
मेरी प्रमुख राय यह है कि हिंदुओं के शांति प्रेमी और संयमी होने की बात एक आधुनिक विचार है. हमें भारतीयों को अपने ही लोगों का खून बहाने में कभी कोई हिचक नहीं हुई. उदाहरण के लिए, मराठों ने गुजरात को विजित किया और आज भी बड़ौदा पर उनका ही कब्जा है. यह कोई शांतिपूर्ण या लोकतांत्रिक नियंत्रण नहीं था. इसमें कुछ भी गलत या अनैतिक नहीं है और सदियों तक खून-खराबे से जीत हासिल करने का सिलसिला दुनिया में चलता रहा था.
अशोक ने कलिंग पर विजय प्राप्त की और हजारों उड़िया लोगों का जनसंहार किया. इससे किसी को भी इनकार नहीं है. ऐसा नहीं था कि सहिष्णुता या वीजा मिलने में परेशानी ने उसे चीन या बर्मा या ऑस्ट्रेलिया में यही करने से रोक लिया था. ऐसा प्राकृतिक सीमाओं के कारण नहीं हो सका था.
उत्तर भारतीय राजवंशों के पास बहुत छोटा भौगोलिक दायरा था और वे उपमहाद्वीप से परे क्षेत्रों को जीतने में सक्षम नहीं थे. दक्षिण में हमें दूसरे उदाहरण मिलते हैं. उत्तर भारत में मुसलमानों के आक्रमण और इंग्लैंड पर फ्रांस के आक्रमण के दौर में ही चोल वंश के नेतृत्व में तमिलों ने दक्षिण-पूर्व एशिया पर आक्रमण किया, क्योंकि वे उन कुछ भारतीय राजवंशों में थे, जिनके पास सक्षम नौसेना थी. नायडू ने उन्हें अज्ञानतावश उल्लिखित नहीं किया या इस कारण कि उनसे भारतीय शांति का उनका सिद्धांत खारिज होता है?
यह सब जो भी मैंने लिखा है, सर्वविदित है और मैं कुछ भी नया नहीं बता रहा हूं. लेकिन यह महत्वपूर्ण है कि इसके बावजूद अधिकतर भारतीय और यहां तक कि केंद्रीय कैबिनेट के मंत्री भी ऐसे बचकाने मिथकों पर भरोसा करते हैं.